जनप्रतिनिधियों का ‘सम्मान’ मामला, सरकारी फरमान भी बेअसर

-बनबिहारी/पटना। बिहार के सरकारी अधिकारी पदाधिकारी के रवैया से जनप्रतिनिधियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।परेशानी यह है कि जनता अपने समस्याओं को लेकर नेताओं के पास पहुंचती है।मगर जब नेता ऐसे मामलों को लेकर अधिकारियों के पास जाते हैं तो अधिकांश अधिकारी उन्हें कोई खास तवज्जो नहीं देते तथा कुछ पूरी तरह से उदासीन हो जाते हैं। नतीजा यह निकलता है कि सामान्य जनों के नजर में जनप्रतिनिधियों की हालत अयोग्य सरीखे हो जाती है।इस गंभीर मसले को लेकर गत 28 दिसंबर को सरकार ने सरकारी फरमान जारी करके विभिन्न संवर्गों के अधिकारियों को चेताया भी था।मगर स्थिति अब भी जस की तस बनी हुई है। सूबे में अफसरशाही का हाल किसी से छुपा नहीं रहा गया है। राजद-कांग्रेस आदि के विधायकों-सांसदों की बात छोड़ भी दी जाए तो सत्ता पक्ष जदयू-भाजपा -लोजपा के नेताओं के उचित सिफारिशों को भी अधिकारी वर्ग द्वारा ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है।समय-समय पर कई विधायक- सांसद या विधान पार्षद इस मुद्दे पर बगावती सुर का राग अलापते भी नजर आते रहे हैं।विपक्षी पार्टियां सीधे तौर पर इसके लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जिम्मेदार ठहराते रही है।बतौर विपक्ष मुख्यमंत्री ने जो अफसरशाही का मन मिजाज बढ़ाया है।उसी का प्रतिफल इस रूप में सभी पार्टी के नेताओं और आम जनता को भोगना पड़ रहा है।
उल्लेखनीय है कि नेताओं अफसरों के बीच इस प्रकार के मामले लंबे अर्से से चले आ रहे हैं।मगर गत वर्ष जब सरकार को जनप्रतिनिधियों का ‘सम्मान’ सच में खतरे में पड़ा दिखा तो सामान्य प्रशासन विभाग के द्वारा सभी विभागाध्यक्षों प्रमंडलीय आयुक्त एवं जिला अधिकारियों को गत 28 दिसंबर को सरकारी फरमान जारी किया गया।जिसमें सरकार की ओर से निर्देश जारी किया गया कि जनप्रतिनिधियों द्वारा सरकार को यह शिकायत की जाती है कि वह अपने क्षेत्र के समस्याओं को सरकारी अधिकारी के समक्ष रखते हैं तो उन्हें अपेक्षित सहयोग प्राप्त नहीं होता।यहां तक कि सरकारी अधिकारी दूरभाष तक नहीं उठाते हैं। सरकार निर्देश जारी करती है कि लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक है कि पदाधिकारी जनप्रतिनिधियों द्वारा उठाए गए मसलों पर नियमानुसार शीघ्र कार्रवाई करें।साथ ही हर हाल में उनका फोन भी अटेंड करें।सरकारी निर्देश का सख्ती से पालन एवं अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा अनुपालन की भी बात कही गयी।
मगर अब भी अधिकांश जनप्रतिनिधियों का मानना है कि हालात लगभग पूर्व की भांति ही है। अधिकांश अधिकारी आज भी उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों पर टालमटोल एवं बहाना बाजी ही करते हैं।

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