बिहार में जातीय जनगणना का रास्ता हुआ साफ : पटना हाईकोर्ट ने सभी याचिकाओं को किया खारिज, जल्द शुरू होगा कार्य

पटना। बिहार में जाति आधारित जनगणना का रास्ता साफ हो गया है। पटना हाई कोर्ट ने मंगलवार को हुई सुनवाई में इस पर लगी रोक हटा दी है। बिहार में जातीय जनगणना का मुद्दा पिछले दिनों से गर्म है। इस पर राजनीति भी खूब हो रही है। नीतीश कुमार सरकार ने कोर्ट में इसके पक्ष में दलील रखी थी। सरकार ने कहा था कि यह एक तरह का सर्वे है। वहीं कुछ याचिकाएं इसके खिलाफ दायर की गई थीं। जहां तक जाति जनगणना की हम बात करेंगे तो इसके पूर्व वर्ष 1931 तक भारत में जातिगत जनगणना होती थी। साल 1941 में जनगणना के समय जाति आधारित डेटा जुटाया ज़रूर गया था, लेकिन प्रकाशित नहीं किया गया। जातीय जनगणना के खिलाफ दायर याचिकाओं पर चीफ जस्टिस केवी चंद्रन की खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए यह कहा है कि- राज्य सरकार जातीय जनगणना करवा सकती है। जातिगत जनगणना का काम जनवरी 2023 से शुरू हुआ था। इसे मई तक पूरा किया जाना था, लेकिन हाई कोर्ट के रोक के बाद फिलहाल यह 80% ही पूरा हो पाया है। पटना हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस पार्थ सार्थी की खंडपीठ नेलगातार 3 से 7 जुलाई तक पांच दिनों तक इस मामले में याचिकाकर्ता और बिहार सरकार की दलीलें सुनीं थी। दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया गया था। अब कोर्ट ने इस मामले में अपना बड़ा फैसला सुनाया है। पटना हाईकोर्ट ने करीब 100 पन्नों का आदेश जारी किया है। मुख्य बात यह है कि कोर्ट ने उन सभी अर्जियों को खारिज कर दिया है, जिनमें यह दलील देते हुए रोक लगाने की मांग की गई थी कि जनगणना का काम सिर्फ केंद्र का है राज्य का नहीं। इसके बाद अब राज्य में एकबार फिर से जातिगत जनगणना का काम शुरू किया जाएगा। बिहार में जाति आधारित गणना की शुरुआत सात जनवरी से हुई थी। पहले फेज का काम पूरा होने के बाद दूसरे फेज का काम 15 अप्रैल से किया जा रहा था। जाति आधारित गणना का काम पूरा होने से पहले चार मई को पटना हाईकोर्ट ने अपने एक अंतरिम आदेश में जाति आधारित गणना पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दिया था। इसका करीब 80 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। 4 मई को पटना हाईकोर्ट ने जातीय गणना पर रोक लगा दी थी और सरकार से अब तक कलेक्ट किए गए डेटा को सुरक्षित रखने का निर्देश दिया था। अगली सुनवाई की तारीख 3 जुलाई तय थी। जहां लगातार 5 दिन बहस चली। पटना हाईकोर्ट ने 7 जुलाई को इस मामले में सुनवाई पूरी की। चीफ जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस पी सार्थी की बेंच के सामने पहले तीन दिन याचिकाकर्ता की ओर से दलील रखी गई। फिर दो दिन बिहार सरकार के एडवोकेट जनरल पी के शाही ने दलील पेश की। सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। सरकार का कहना है कि 80 फीसदी काम हो चुका है। इसके लिए 500 करोड़ का बजट था।

वही साल 1951 से 2011 तक की जनगणना में हर बार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का डेटा दिया गया, लेकिन ओबीसी और दूसरी जातियों का नहीं। इसी बीच साल 1990 में केंद्र की तत्कालीन विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार ने दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग, जिसे आमतौर पर मंडल आयोग के रूप में जाना जाता है, की एक सिफ़ारिश को लागू किया था। ये सिफारिश अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को सरकारी नौकरियों में सभी स्तर पर 27 प्रतिशत आरक्षण देने की थी। इस फ़ैसले ने भारत, खासकर उत्तर भारत की राजनीति को बदल कर रख दिया। वही जानकारों का मानना है कि भारत में ओबीसी आबादी कितनी प्रतिशत है, इसका कोई ठोस प्रमाण फ़िलहाल नहीं है। वही बिहार के भाजपा सांसद तथा केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने 20 जुलाई 2021 को लोकसभा में दिए जवाब में कहा था कि फ़िलहाल केंद्र सरकार ने अनुसूचित जाति और जनजाति के अलावा किसी और जाति की गिनती का कोई आदेश नहीं दिया है। पिछली बार की तरह ही इस बार भी एससी और एसटी को ही जनगणना में शामिल किया गया है। आज भले ही बीजेपी संसद में इस तरह के जातिगत जनगणना पर अपनी राय कुछ और रख रही हो, लेकिन 10 साल पहले जब बीजेपी विपक्ष में थी, तब उसके नेता ख़ुद इसकी माँग करते थे। बीजेपी के नेता, गोपीनाथ मुंडे ने संसद में 2011 की जनगणना से ठीक पहले 2010 में संसद में कहा था, “अगर इस बार भी जनगणना में हम ओबीसी की जनगणना नहीं करेंगे, तो ओबीसी को सामाजिक न्याय देने के लिए और 10 साल लग जाएँगे। हम उन पर अन्याय करेंगे।” इतना ही नहीं, पिछली सरकार में जब राजनाथ सिंह गृह मंत्री थे, उस वक़्त 2021 की जनगणना की तैयारियों का जायज़ा लेते समय 2018 में एक प्रेस विज्ञप्ति में सरकार ने माना था कि ओबीसी पर डेटा नई जनगणना में एकत्रित किया जाएगा। दूसरी राष्ट कांग्रेस की बात करें, तो 2011 में सोशियो इकोनॉमिक कास्ट सेंसस आधारित डेटा जुटाया था। चार हज़ार करोड़ से ज़्यादा रुपए ख़र्च किए गए और ग्रामीण विकास मंत्रालय और शहरी विकास मंत्रालय को इसकी ज़िम्मेदारी सौंपी गई।

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