रवियोग में कामदा एकादशी कल, व्रत के साथ होगी नारायण की पूजा

पटना। शुक्रवार को चैत्र नवरात्र के अंतिम दिन विजयादशमी को माता के उपासक ने विधि-विधान देवी की विदाई कर सुख-समृद्धि एवं कोरोना महामारी से मुक्ति के लिए प्रार्थना किए। नवरात्र का उपवास या फलाहार करने वाले श्रद्धालुओं ने नौ दिवसीय अनुष्ठान को पूर्ण करने के बाद जयंती धारण कर पारण किये। आचार्य राकेश झा ने बताया कि माता जगदंबा की विदाई इस वर्ष हाथी पर हुई है, इससे आगामी वर्ष में अति वृष्टि का योग बना है।
शास्त्रों में काम, क्रोध और लोभ इन्हें सभी पापों का मूल जड़ माना गया है। काम पीड़ित होने पर व्यक्ति के अंदर अच्छे बुरे का फर्क करने की क्षमता खत्म हो जाती है। लेकिन मनुष्य का मन हमेशा संयम में रहे ऐसा नहीं है। इससे अनजाने में कई बार पाप हो जाता है। ऐसे ही पापों से मुक्ति के लिए शास्त्रों में चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत का विधान है। इस एकादशी को कामदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों और पुराणों के अनुसार जो व्यक्ति साल में आने वाली कुल 24 एकादशी का व्रत रखता है। वह धरती पर सांसारिक भोग तथा सुख प्राप्त करके मृत्यु के बाद उत्तम लोकों के स्थान पाने का अधिकारी बन जाता है। आज चैत्र शुक्ल एकादशी का पर्व अश्लेषा नक्षत्र व धृति योग के साथ रवियोग में मनाई जाएगी।
कामदा एकादशी व्रत का पौराणिक महत्व
भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के सदस्य आचार्य राकेश झा शास्त्री ने विष्णु पुराण के हवाले से बताया कि कामदा एकादशी व्रत का हिन्दू धर्म में बड़ा महत्व है। कामदा एकादशी व्रत का पालन सच्ची श्रद्धा के साथ करने से सर्व मनोकामना पूर्ति का वरदान मिलता है। आज व्रती सात्विक जीवन, विष्णु सहस्त्र नाम का पाठ, सत्यनारायण पूजा, भागवत पुराण, भजन, जाप आदि कर जगत के पालनहार भगवान श्रीहरि को प्रसन्न करते हैं। इस एकादशी का व्रत करने से काम भावना से हुए पापों से मुक्त हो जाता है। वर्ष में कुल 24 एकादशी होते है, जिसमे चैत्र शुक्ल एकादशी का विशेष महात्म्य है। कामदा एकादशी हिन्दू संवत्सर की पहली एकादशी होती है। श्रीहरि को शंख अति प्रिय है आज के दिन घरों में पूजा-पाठ के शंख ध्वनि, घंटी वादन तथा कर्पूर जलाने से मानसिक शांति, एवं उन्नति होती है।
व्रत का आध्यात्मिक कथा
प्राचीन काल में भोगीपुर नगर में पुंडरीक नामक नाग राज करता था। इनके दरबार में गायन और वादन में निपुण किन्नर व गंधर्व रहा करते थे। एक दिन ललित नाम का गंधर्व दरबार में गायन कर रहा था। अचानक उसे अपनी पत्नी की याद आ गई। इससे उसका स्वर, लय एवं ताल बिगड़ गया। इससे नाराज होकर पुण्डरीक ने ललित को राक्षस बन जाने का श्राप दे दिया। ललित के राक्षस बन जाने पर उसकी पत्नी ललिता दु:खी रहने लगी। एक दिन वन में ललिता को ऋष्यमूक ऋषि मिले। इन्होंने ललिता के दु:ख को जानकर चैत्र शुक्ल एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। ललिता ने ऋषि के बताए नियम के अनुसार व्रत पूरा किया। इसके बाद व्रत का फल अपने पति ललित को दे दिया। इससे ललित वापस राक्षस से गंधर्व रुप में लौट आया। इस व्रत के पुण्य से ललित और ललिता दोनों को उत्तम लोक में भी स्थान प्राप्त हुआ।
कामदा एकादशी व्रत शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ : 03 अप्रैल को रात्रि 07:19 बजे से
एकादशी तिथि का समाप्त : आज शाम 05:31 बजे तक (उदयातिथि के अनुसार पूरा दिन-रात)
कामदा एकादशी पारणा : कल 5 अप्रैल प्रात: 05:48 के बाद

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