BIHAR : BJP-JDU के 12 नेताओं ने ली विधान परिषद सदस्य की शपथ, कुशवाहा बने एमएलसी, मांझी हुए नाराज

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पटना। बुधवार को राज्यपाल कोटे से बिहार विधान परिषद जानेवाले 12 नेताओं के नाम सामने आए और शाम पांच बजे विधान परिषद में इनका शपथ ग्रहण समारोह भी आयोजित किया गया। पहली बार सदस्यों को विधान परिषद में सदस्यता की शपथ दिलाई गई। विधान परिषद के कार्यकारी सभापति अवधेश नारायण सिंह ने शपथ दिलाई। शपथ ग्रहण समारोह में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उप मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी के साथ मंत्रीगण उपस्थित रहे। हालांकि 12 सदस्यों के नाम की सूची जारी होते ही हम अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि हम से भी एक नेता को विधान परिषद भेजने की मांग की थी। वहीं दूसरे घटक दल वीआइपी के मुकेश सहनी को भी निराशा ही हाथ लगी है।


सभी नये सदस्यों ने शपथ ली
विधान परिषद में एमएलसी की 12 सीटों पर मनोनयन के बाद सभी सदस्यों ने शपथ ली। नीतीश कैबिनेट के दो मंत्री भी शपथ लेकर विधान परिषद के नए सदस्य बने हैं। मंत्री अशोक चौधरी और मंत्री जनक राम। इसके अलावा उपेंद्र कुशवाहा, राम बचन राय, संजय कुमार सिंह, ललन कुमार सर्राफ, प्रोफेसर राजेंद्र प्रसाद गुप्ता, संजय सिंह, देवेश कुमार, प्रमोद कुमार, घनश्याम ठाकुर और निवेदिता सिंह ने भी एमएलसी पद की शपथ ली। वहीं बीजेपी से घनश्याम ठाकुर ने मैथिली में शपथ ली। बीजेपी से राजेंद्र प्रसाद गुप्ता, डॉ. प्रमोद कुमार, निवेदिता सिंह, जनक राम व देवेश कुमार ने विधान परिषद सदस्य की शपथ ली।
कार्यकारी सभापति और मुख्यमंत्री ने दी शुभकामनाएं
बता दें कि 14 मार्च को उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पार्टी रालोसपा का विलय जदयू में करने की औपचारिक घोषणा करते हुए जदयू की सदस्यता ग्रहण की थी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनके सदस्यता ग्रहण करते ही उन्हें जदयू के संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाया था। अब उनके मंत्री बनने के कयास भी लगाए जा रहे हैं। सभी 12 सदस्यों को शपथ दिलाने के बाद विधान परिषद के कार्यकारी सभापति अवधेश नारायण सिंह और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शुभकामनाएं दीं। सभापति ने कहा कि आज से ही सभी 12 सदस्यों की हाजिरी बन गई है। उन्हें जगह भी आवंटित हो गया।
बता दें कि राज्यपाल कोटे कला, विज्ञान, साहित्य और समाजसेवा के क्षेत्रों से लोगों को मनोनीत किया जाता है। राज्य सरकार ही राज्यपाल कोटे से मनोनीत होनेवाले विधान परिषद सदस्यों के नाम की सिफारिश करती है। यह राज्यपाल पर निर्भर होता है कि वे सरकार की सिफारिश को मानें या लौटा दें। उस हालत में राज्य सरकार दोबारा सिफारिश भेज सकती है, जिसे राज्यपाल मान लेते हैं।

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