बिहार में 18 साल की उम्र से पहले 40% से अधिक लड़कियों की शादी अभी भी एक बड़ी चिंता
पटना। यूनिसेफ बिहार की राज्य प्रमुख नफीसा बिन्ते शफीक ने चाइल्ड राइट्स सेंटर, सीएनएलयू और यूनिसेफ बिहार द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित एक दिवसीय कार्यक्रम “एडवोकेसी टू एक्शन- सीएसओ यूनाइट फॉर चाइल्ड राइट्स” में बतौर मुख्य अतिथि कहा कि बिहार के लगभग 5 करोड़ बच्चे (राज्य की कुल आबादी का 46% हिस्सा हैं) के लिए बेहतर माहौल बनाना सभी प्रमुख हितधारकों की प्राथमिकता होनी चाहिए। विकास की दौड़ में कोई बच्चा पीछे न रहे, यह सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक संगठनों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। हमारे पास सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक दशक से भी कम समय है। अगर हम चूक गए तो आने वाली पीढ़ी को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। हालांकि एनएफएचएस-5 के आंकड़ों पर नजर डालें, बिहार ने कई क्षेत्रों में प्रगति की है, लेकिन 18 साल की उम्र से पहले 40% से अधिक लड़कियों की शादी अभी भी एक बड़ी चिंता है। हम सबको मिलकर काम करने की जरूरत है और चेंज मकर की भूमिका निभानी है।
राज्य भर के 60 से अधिक सीएसओ ने भाग लिया
इसके पूर्व राजधानी के चाणक्य होटल में आयोजित कार्यक्रम की औपचारिक शुरूआत पूर्व जस्टिस मृदुला मिश्रा, कुलपति, चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, पटना और नफीसा बिन्ते शफीक, राज्य प्रमुख, यूनिसेफ द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुई। इस दौरान मनोरंजन प्रसाद श्रीवास्तव, रजिस्ट्रार, सीएनएलयू, प्रज्ञा वत्स, सेव द चिल्ड्रन और प्रसन्ना ऐश, यूनिसेफ बिहार मौजूद रहे। कार्यक्रम में राज्य भर के 60 से अधिक सीएसओ ने भाग लिया। कार्यक्रम के दौरान बिहार यूथ फॉर चाइल्ड राइट्स के युवा सदस्य, सेव द चिल्ड्रेन के प्रतिनिधि और मीडियाकर्मी भी मौजूद रहे।
बच्चे खुद की वकालत नहीं कर सकते
चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की कुलपति जस्टिस मृदुला मिश्रा ने अपने संबोधन में कहा कि बच्चे खुद की वकालत नहीं कर सकते। उन्हें अपने अधिकारों के बारे में पता नहीं होता है। वे नहीं जानते कि उनके लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा है और जीवन में कब, क्या फैसला लिया जाए। जो भी बच्चा इस दुनिया में आता है, उसके पास कुछ मानव अधिकार, जैसे जीने का अधिकार, सुरक्षा का अधिकार, शिक्षा का अधिकार आदि होते हैं। जब तब बच्चे अपने अधिकारों को समझने लायक ना बन जाए, तब तक समाज के शिक्षित व्यक्तियों पर बच्चे के अधिकारों की रक्षा का दायित्व होता है। इसमें सिविल सोसाइटी संस्थानों की भूमिका बहुत अहम है। सभी हितधारकों को मिलकर यह प्रयास करना चाहिए कि बच्चों के हक में नीतियों का निर्माण हो और सही तरीके से इनका अनुपालन हो।
कार्यशाला का आयोजन
कार्यक्रम के अंत में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें प्रतिभागियों को चार 4 समूहों में विभाजित कर चार अलग-अलग विषयों बिहार में बाल कुपोषण में कमी, बाल श्रम का खात्मा, समावेशी शिक्षा एवं बच्चों के खिलाफ अपराध पर एडवोकेसी योजना तैयार करने का कार्य दिया गया। सीआरसी की प्रीति आनंद ने इस सत्र का संचालन किया। सीआरसी की सेंटर कोआॅर्डिनेटर, शाहीना अहलुवालिया ने इस आॅनलाइन कार्यक्रम को मॉडरेट किया तथा सीआरसी के चंदन कुमार ने धन्यवाद ज्ञापन किया।