ग्रह-गोचरों की दुनिया में आज होने को है हलचल, सत्तुआनी सोमवार को

पटना। जहां एक ओर पूरा विश्व कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से जंग लड़ रही है। वहीं दूसरी ओर ग्रह-गोचरों की दुनिया में भी आज हलचल होने को है। ग्रहों के महामंत्री प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्य कल अश्विनी नक्षत्र में मीन राशि से मेष राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य का यह संक्रमण हिंदू धर्मावलंबियों के लिए खास महत्व रखता है। सूर्य के मेष राशि में गोचर से इसे मेष संक्रांति कहा जाता है। कल सतुआनी और मंगलवार को जुड़शीतल का पर्व मनाया जाएगा। इसके साथ ही विगत एक माह से चला आ रहा खरमास समाप्त हो जाएगा। वहीं कल से ही सौर वर्ष का शक संवत 1942 आरंभ हो जाएगी।
मीन से मेष राशि में सूर्यदेव करेंगे गोचर
भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के सदस्य ज्योतिषाचार्य राकेश झा शास्त्री ने बताया कि वैशाख कृष्ण षष्टी सोमवार को रात्रि 10:07 बजे अश्विनी नक्षत्र के उपस्थिति में सूर्य मीन राशि से मेष राशि में गोचर करेंगे। उनके इस गोचर से एक माह से चला आ रहा खरमास समाप्त हो जाएगा। खरमास के समाप्त होने से सभी शुभ मांगलिक कार्य आरंभ हो जाएंगे। वैशाख स्नान एवं हरिद्वार में कल्पवास करने वाले श्रद्धालु कल से अपना पुण्य कार्य प्रारंभ कर सकते थे, लेकिन देश में कोरोना महामारी के कारण हुए लॉक डाउन से उन्हें इस वर्ष यह पुण्यफल कार्य नहीं कर पाएंगे। सोमवार के दिन सूर्य की संक्रांति होने से पंचांगों में इसे शुभ संकेत बताया गया है।
सूर्य के संक्रमण से ग्रहों-गोचरों का बना युग्म संयोग
ज्योतिषी झा के मुताबिक कल सत्तुआनी पर सूर्य अश्विनी नक्षत्र की उपस्थिति में मीन से मेष राशि में स्थानांतरित करेंगे। इसके साथ ही कर्क रेखा से दक्षिण की ओर जाने के कारण मंगलवार को जुड़शीतल पर रवि योग एवं सिद्धि योग का विशेष संयोग भी बन रहा है। कल स्नान-दान का पुण्य काल समय प्रात: 9:51 बजे से दोपहर 2:03 बजे तक रहेगा। इस पुण्य काल में गंगा, प्रयाग, तीर्थ आदि में स्नान एवं दान का विशेष महत्व होता है, परंतु इस बार लॉक डाउन होने के कारण यह संभव नहीं है, इसलिए अपने स्नान के जल में गंगाजल या तीर्थ का जल मिलाकर स्नान करने से गंगा स्नान का ही फल मिलता है। कल के दिन भगवान भास्कर की कृपा पाने एवं पितरों को संतुष्ट करने के लिए सत्तू, गुड़, चना, पंखा, सजल घट, आम, ऋतु फल एवं अन्य दान का विशेष महत्व है। मेष राशि स्थित सूर्य में सत्तू एवं जल पूर्ण पात्र दान करने से उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। सूर्य के मीन राशि से मेष राशि में प्रवेश करने के साथ ही ग्रीष्म ऋतु का आरंभ हो जाता है, इसलिए इस मौसम में शरीर को ठंडक देने वाले आहार के सेवन का प्रावधान है। सत्तू और छोटे आम के टिकोले से बनी चटनी शरीर को ठंडक प्रदान करने के साथ सुपाच्य भी होते हैं, इसलिए सत्तुआनी में सत्तू खाने का विधान है। कई जगह जौ या बूट के सत्तू को आम के चटनी के साथ सेवन का विधान है। सोमवार को सूर्य संक्रांति के अवसर पर स्नान-पूजा करने के बाद ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम: या राम नाम का जप करने से बुद्धि प्रखर एवं तेज होती है।
जुड़शीतल के जल में आरोग्यता का वास
पंडित झा के अनुसार जुड़शीतल का त्योहार बिहार समेत प्रदेश के विभिन्न प्रांतों में हर्षाेल्लास के साथ मनाया जाता है, लेकिन इस पर्व का मिथिला में काफी महत्व है। इस दिन गुड़ और सत्तू के साथ ऋतु फल एवं सजल घट दान किया जाता है। इस पर्व में आज रात यानी एक दिन पूर्व जल को मिट्टी के घड़े या शंख में ढंक कर रखने के बाद जुड़शीतल के दिन प्रात: काल उठकर बड़े-बुजुर्ग घर के सभी सदस्यों के ऊपर तथा चारों ओर जल का छींटा देते हैं। मान्यताओं के अनुसार, बासी जल के छींटे से तन, मन और मस्तिष्क में शीतलता व आरोग्यता की प्राप्ति तथा पूरा घर व आंगन शुद्ध हो जाता है। जब सूर्य मीन राशि को त्याग कर मेष राशि में प्रवेश करता है तो उसके पुण्यकाल में सूर्य और चंद्रमा की रश्मियों से अमृतधारा की वर्षा होती है जो आरोग्यवर्धक होता है। इसलिए इस दिन लोग बासी भोजन ग्रहण करते हैं।

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