खरना के बाद शुरू हुआ छठ व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास, इन पात्रों से दें भगवान भास्कर को अर्घ्य

पटना। छठ महापर्व के दूसरे दिन खरना पूजा के बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो गया। खीर का महाप्रसाद ग्रहण के बाद श्रद्धालु दो दिनों तक भगवान के नमन में लीन हो गए हैं। कल चैत्र शुक्ल षष्ठी को सर्वार्थ सिद्धि योग में अस्ताचगामी सूर्य देवता को पहला अर्घ्य दिया जाएगा। संध्या अर्घ्य का शुभ समय संध्या 05:58 बजे से 06:07 बजे तक है। वहीं मंगलवार 31 मार्च को भी द्विपुष्कर योग में उदीयमान सूर्य को दूध और जल से अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाएगा। प्रात: कालीन अर्घ्य का शुभ समय सुबह 05:52 बजे से 06:15 बजे तक है। उगते सूर्य को अर्घ्य देकर आयु-आरोग्यता, यश, संपदा का आशीर्वाद लिया जाएगा।
भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के सदस्य कर्मकांड विशेषज्ञ ज्योतिषाचार्य पं. राकेश झा शास्त्री ने कहा कि कल चैत्र शुक्ल षष्ठी डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इस बार छठ महापर्व ग्रह गोचरों के शुभ संयोग में मनायी जा रही है। यह पर्व पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए व्रती पूरे विधि-विधान से छठ का व्रत करती हैं। इस पर्व को करने से रोग, शोक, भय आदि से मुक्ति मिलती है। छठ व्रत करने की परंपरा ऋग्वैदिक काल से ही चला आ रहा है। भगवान भास्कर को अर्घ्य देने से कई जन्मों के पाप नष्ट होते हैं।


सूर्य के साथ इनकी पत्नी उषा-प्रत्युषा की भी होगी पूजा
पंडित झा ने कहा कि देवताओं में सूर्य ऐसे देवता हैं, जिनको प्रत्यक्ष देखा जा सकता है। सूर्य की शक्ति का मुख्य स्त्रोत उनकी पत्नी उषा और प्रत्युषा हैं। छठ में सूर्य के साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। पहले सायंकालीन अर्घ्य में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्युषा) और फिर उदीयमान सूर्य की पहली किरण (उषा) को अर्घ्य देकर नमन किया जाएगा।
सायंकालीन अर्घ्य से मिलती है शांति व उन्नति
ज्योतिषी झा के अनुसार शाम को भगवान भास्कर को जल से अर्घ्य देने से मानसिक शांति और जीवन में उन्नति होती है। लाल चंदन, फूल के साथ अर्घ्य से यश की प्राप्ति होती है। कलयुग के प्रत्यक्ष देवता सूर्य को जल में गुड़ मिलाकर अर्घ्य देने से पुत्र और सौभाग्य का वरदान मिलता है। वहीं प्रात:काल में जल में रक्त चंदन, लाल फूल, इत्र के साथ ताम्रपात्र में आरोग्य के देवता सूर्य को अर्घ्य देने से आयु, विद्या, यश और बल की प्राप्ति होती है। स्थिर एवं महालक्ष्मी की प्राप्ति के लिए सूर्य को दूध का अर्घ्य देना चाहिए।
भगवान सूर्य की मानस बहन है षष्ठी देवी
पंडित झा ने अर्थवेद के हवाले से बताया कि षष्ठी देवी भगवान सूर्य की मानस बहन हैं। प्रकृति के षष्टम अंश से षष्ठी माता उत्पन्न हुई हैं। उन्हें बालकों की रक्षा करने वाले भगवान विष्णु द्वारा रची माया भी माना जाता है। बालक के जन्म के छठे दिन भी षष्ठी मईया की पूजा की जाती है। ताकि बच्चे दीघार्यु और निरोग रहे। एक अन्य आख्यान के अनुसार कार्तिकेय की शक्ति हैं षष्ठी देवी। षष्ठी देवी को देवसेना भी कहा गया है।
आरोग्यता व संतान के लिए उत्तम है छठ व्रत
ज्योतिषी पंडित झा के अनुसार सूर्य षष्ठी का व्रत आरोग्यता, सौभाग्य व संतान के लिए किया जाता है। स्कंद पुराण के मुताबिक राजा प्रियव्रत ने भी यह व्रत रखा था। उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था। भगवान भास्कर से इस रोग की मुक्ति के लिए उन्होंने छठ व्रत किया था। स्कंद पुराण में प्रतिहार षष्ठी के तौर पर इस व्रत की चर्चा है। स्कन्द पुराण तथा वर्षकृतम में भी इस प्रतिहार षष्ठी की वर्णन है।
छठ महापर्व के सामग्री का विशेष महत्व
सूप, डाला- अर्घ्य में नए बांस से बनी सूप व डाला का इस्तेमाल किया जाता है। सूप से वंश वृद्धि होती है और वंश की रक्षा होती है।
ईख – ईख आरोग्यता का घोतक है।
ठेकुआ – ठेकुआ समृद्धि का घोतक है।
ऋतुफल – ऋतुफल के फल से विशिष्ट फल की प्राप्ति होती है।
अर्घ्य इन पात्रों से दें
सूर्य उपासना के महापर्व में भगवान भास्कर को पीतल के पात्र से दूध तथा तांबे के पात्र से जल से अर्घ्य देना चाहिए। जबकि चांदी, स्टील, शीशा व प्लास्टिक के पात्र से सूर्य को अर्घ्य नहीं देना चाहिए।

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