बिहार में राजद से गठबंधन से हमें कोई लाभ नहीं, शकील अहमद बोले- हम नया संगठन खड़ा करेंगे, पार्टी आगे बढ़ेगी
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस पार्टी के भीतर मंथन का दौर तेज हो गया है। पहली बार कांग्रेस के किसी वरिष्ठ नेता ने खुलकर राष्ट्रीय जनता दल के साथ गठबंधन को लेकर सवाल उठाए हैं। पूर्व विधायक और सीनियर कांग्रेस नेता शकील अहमद खान ने साफ शब्दों में कहा है कि राजद के साथ गठबंधन से कांग्रेस को कोई राजनीतिक लाभ नहीं मिल रहा है। उनका कहना है कि जिस गठबंधन से पार्टी को फायदा न हो, उसे जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है।
गठबंधन से लाभ नहीं, नुकसान ज्यादा
शकील अहमद खान ने कहा कि कांग्रेस और राजद का गठबंधन लंबे समय से चला आ रहा है, लेकिन अब इसके परिणाम कांग्रेस के पक्ष में नहीं दिख रहे हैं। उन्होंने बताया कि जब बिहार कांग्रेस के नेता दिल्ली गए थे, तब शीर्ष नेतृत्व के सामने यह बात रखी गई थी कि गठबंधन से पार्टी का वोट प्रतिशत और सामाजिक आधार मजबूत नहीं हो पा रहा है। इसके बावजूद कांग्रेस को चुनावी हार का दोषी ठहराया जा रहा है, जो बिल्कुल गलत है।
हार की जिम्मेदारी साझा होनी चाहिए
कांग्रेस नेता ने स्पष्ट कहा कि जब चुनाव मिलकर लड़ा गया है, तो हार की जिम्मेदारी भी सभी सहयोगी दलों को मिलकर उठानी चाहिए। केवल कांग्रेस को दोष देना न तो न्यायसंगत है और न ही राजनीतिक रूप से सही। उन्होंने कहा कि राजद के कुछ नेता अभी भी यह कहते हैं कि चुनाव में हार कांग्रेस की वजह से हुई, जबकि सच्चाई यह है कि महागठबंधन के सभी घटकों को अपनी भूमिका की समीक्षा करनी चाहिए।
वोट बैंक और राजनीतिक स्पेस का सवाल
शकील अहमद खान के अनुसार, राजद के साथ गठबंधन में रहने के कारण कांग्रेस को अपना स्वतंत्र राजनीतिक स्पेस बनाने में दिक्कत हो रही है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस का जो पारंपरिक वोट प्रतिशत है, वह गठबंधन के कारण पार्टी को पूरी तरह नहीं मिल पा रहा है। कई वर्ग और समाज के वोट राजद के साथ रहते हुए कांग्रेस तक नहीं पहुंचते, जिससे पार्टी की स्थिति कमजोर होती जा रही है।
संगठन को मजबूत करने पर जोर
कांग्रेस नेता ने यह भी कहा कि अब सिर्फ शिकायत करने से कुछ नहीं होगा। बिहार में कांग्रेस को नए सिरे से मजबूत संगठन खड़ा करना होगा। इसके लिए जमीनी स्तर पर काम करने, जनता से सीधे जुड़ने और उनकी समस्याओं को उठाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पार्टी को ऐसा संगठन बनाना होगा जो हर जिले, हर प्रखंड और हर पंचायत में सक्रिय दिखे।
आंदोलन और संघर्ष की जरूरत
शकील अहमद खान का मानना है कि कांग्रेस को बिहार में सत्तारूढ़ सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ सड़क पर उतरना चाहिए। उन्होंने कहा कि पार्टी को केवल चुनाव के समय सक्रिय होने की बजाय लगातार आंदोलन और संघर्ष के रास्ते पर चलना होगा। उनके अनुसार, किसी भी राजनीतिक दल की मजबूती आंदोलन और संघर्ष से ही निकलती है। जनता को राहत देने वाले मुद्दों पर अगर कांग्रेस मजबूती से खड़ी होगी, तो पार्टी का जनाधार अपने आप बढ़ेगा।
1990 वाला कांग्रेस का दम लौटाने की बात
उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस को बिहार में 1990 के दशक वाली राजनीतिक ताकत और ऊर्जा को वापस लाने की जरूरत है। उस दौर में कांग्रेस का संगठन मजबूत था और पार्टी जनता के मुद्दों पर खुलकर संघर्ष करती थी। आज जरूरत है उसी तरह की प्रतिबद्धता और सक्रियता की, ताकि पार्टी फिर से भरोसेमंद विकल्प बन सके।
महागठबंधन में सीमित होती भूमिका
कांग्रेस नेता ने यह स्वीकार किया कि महागठबंधन का हिस्सा रहते हुए कांग्रेस की भूमिका लगातार सीमित होती गई है। सीट बंटवारे से लेकर चुनावी रणनीति तक, कई अहम फैसलों में कांग्रेस को अपेक्षित महत्व नहीं मिल पाया। इसका असर यह हुआ कि न तो पार्टी की सीटें बढ़ीं और न ही वोट प्रतिशत में कोई ठोस इजाफा हो सका।
दिल्ली में हुआ गंभीर मंथन
हालिया विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस नेतृत्व ने दिल्ली में व्यापक समीक्षा बैठक की। इस बैठक में पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी और अन्य वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में बिहार के सभी 60 कांग्रेस प्रत्याशियों और प्रमुख नेताओं से फीडबैक लिया गया। बैठक में यह बात उभरकर सामने आई कि जिस गठबंधन से पार्टी को राजनीतिक बढ़त नहीं मिल रही है, उसके साथ बने रहना लंबे समय में नुकसानदेह साबित हो सकता है।
नया रास्ता तलाशने की तैयारी
समीक्षा के दौरान यह निष्कर्ष भी निकला कि कांग्रेस को बिहार में अपनी स्वतंत्र पहचान और संगठनात्मक ताकत पर ध्यान देना होगा। शकील अहमद खान के बयान इसी दिशा में संकेत करते हैं कि पार्टी आने वाले समय में नए सिरे से रणनीति बना सकती है। उन्होंने कहा कि बिहार में कांग्रेस को नया संगठन खड़ा करना होगा, जो अपने दम पर चुनाव लड़ने और जनता के बीच भरोसा कायम करने में सक्षम हो।
आगे की राह
शकील अहमद खान का बयान यह दिखाता है कि बिहार कांग्रेस अब केवल गठबंधन के सहारे राजनीति करने के मूड में नहीं है। पार्टी के भीतर यह सोच मजबूत हो रही है कि बिना ठोस लाभ के गठबंधन जारी रखना आत्मघाती हो सकता है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि कांग्रेस वास्तव में नई राजनीतिक दिशा की ओर बढ़ती है या फिर महागठबंधन के भीतर रहते हुए अपनी भूमिका मजबूत करने की कोशिश करती है।


