दिव्यांग अभ्यर्थियों के लिए यूपीएससी का बड़ा फैसला, अब चुन सकेंगे मनपसंद परीक्षा केंद्र
नई दिल्ली। संघ लोक सेवा आयोग यानी यूपीएससी ने दिव्यांग अभ्यर्थियों के हित में एक ऐतिहासिक और दूरगामी फैसला लिया है। यह निर्णय उन लाखों दिव्यांग उम्मीदवारों के लिए राहत लेकर आया है, जो वर्षों से परीक्षा केंद्र आवंटन को लेकर कठिनाइयों का सामना करते रहे हैं। अब दिव्यांग अभ्यर्थी अपनी सुविधा और जरूरत के अनुसार मनपसंद परीक्षा केंद्र चुन सकेंगे, चाहे वह केंद्र पहले से ही भर चुका हो। इस फैसले से परीक्षा की तैयारी, यात्रा और परीक्षा अनुभव तीनों पहले से कहीं अधिक सहज बनने की उम्मीद है।
वर्षों पुरानी समस्या का समाधान
अब तक यूपीएससी की परीक्षाओं में यह स्थिति आम थी कि लोकप्रिय परीक्षा केंद्र बहुत जल्दी भर जाते थे। खासकर दिल्ली, पटना, लखनऊ और कटक जैसे शहरों के केंद्र आवेदन प्रक्रिया के शुरुआती चरण में ही फुल हो जाते थे। इसका सबसे ज्यादा असर दिव्यांग अभ्यर्थियों पर पड़ता था। उन्हें मजबूरी में ऐसे केंद्र चुनने पड़ते थे, जो न तो उनके घर के पास होते थे और न ही वहां तक पहुंचना आसान होता था। लंबी यात्रा, असुविधाजनक परिवहन और सीमित सहायक सुविधाएं उनकी परीक्षा प्रक्रिया को और कठिन बना देती थीं।
अध्ययन के बाद लिया गया निर्णय
यूपीएससी ने पिछले पांच वर्षों के परीक्षा केंद्र आवंटन के पैटर्न का गहन अध्ययन किया। इस अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ कि लोकप्रिय केंद्रों के जल्दी भर जाने के कारण दिव्यांग अभ्यर्थियों को असमान चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। आयोग ने माना कि यह केवल प्रशासनिक समस्या नहीं, बल्कि समान अवसर और न्याय से जुड़ा मुद्दा है। इसी समझ के आधार पर आयोग ने परीक्षा केंद्र आवंटन प्रणाली में बदलाव का फैसला किया।
यूपीएससी अध्यक्ष का बयान
यूपीएससी के अध्यक्ष अजय कुमार ने इस फैसले को दिव्यांग अभ्यर्थियों के लिए जरूरी और मानवीय कदम बताया। उन्होंने कहा कि पहले की व्यवस्था दिव्यांग उम्मीदवारों के लिए कई स्तरों पर कठिनाइयां पैदा कर रही थी। यात्रा, पहुंच और सुविधाओं से जुड़ी समस्याएं उनकी परीक्षा तैयारी पर नकारात्मक असर डालती थीं। आयोग का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि परीक्षा देना हर अभ्यर्थी के लिए सम्मानजनक और सहज अनुभव बने, न कि अतिरिक्त तनाव का कारण।
नया केंद्र आवंटन तंत्र
इस फैसले के तहत यूपीएससी ने परीक्षा केंद्र आवंटन का एक नया क्रम तय किया है। आवेदन प्रक्रिया के शुरुआती चरण में दिव्यांग और गैर-दिव्यांग, दोनों प्रकार के उम्मीदवारों को समान रूप से परीक्षा केंद्र चुनने की अनुमति होगी। जैसे ही किसी केंद्र की निर्धारित क्षमता पूरी हो जाएगी, वह केंद्र गैर-दिव्यांग उम्मीदवारों के लिए बंद कर दिया जाएगा। लेकिन दिव्यांग अभ्यर्थी उस केंद्र को अंतिम चरण तक चुन सकेंगे, भले ही उसकी सामान्य क्षमता पहले ही पूरी हो चुकी हो।
अतिरिक्त इंतजाम की व्यवस्था
यूपीएससी ने यह भी स्पष्ट किया है कि यदि किसी लोकप्रिय केंद्र पर दिव्यांग अभ्यर्थियों की संख्या अधिक होती है, तो वहां अतिरिक्त इंतजाम किए जाएंगे। जरूरत पड़ने पर केंद्र की क्षमता बढ़ाई जाएगी या सहायक सुविधाओं को तुरंत उपलब्ध कराया जाएगा। इसका उद्देश्य यह है कि किसी भी दिव्यांग उम्मीदवार को केवल तकनीकी कारणों से उसके पसंदीदा परीक्षा केंद्र से वंचित न होना पड़े।
बराबरी और न्याय की दिशा में कदम
आयोग का मानना है कि यह बदलाव केवल सुविधा देने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह बराबरी और न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। दिव्यांग अभ्यर्थियों पर यात्रा और पहुंच से जुड़ी कठिनाइयों का असर सामान्य अभ्यर्थियों की तुलना में कहीं अधिक होता है। इसलिए समान अवसर देने के लिए असमान परिस्थितियों को ध्यान में रखना जरूरी है। नया नियम इसी सोच को व्यवहार में उतारने का प्रयास है।
परीक्षा अनुभव होगा अधिक सकारात्मक
इस फैसले से दिव्यांग अभ्यर्थियों का परीक्षा अनुभव काफी हद तक बेहतर होगा। अपने घर या परिचित शहर में परीक्षा केंद्र मिलने से मानसिक तनाव कम होगा और तैयारी पर बेहतर ध्यान केंद्रित किया जा सकेगा। साथ ही यात्रा से जुड़ी शारीरिक थकान और जोखिम भी घटेंगे। यह बदलाव दिव्यांग उम्मीदवारों को यह भरोसा दिलाएगा कि परीक्षा प्रणाली उनकी जरूरतों को समझती है और उनका सम्मान करती है।
सामाजिक संदेश और व्यापक प्रभाव
यूपीएससी का यह निर्णय केवल परीक्षा व्यवस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज को एक व्यापक संदेश भी देता है। यह बताता है कि देश की सर्वोच्च परीक्षा संस्था समावेशन और संवेदनशीलता को गंभीरता से ले रही है। आने वाले समय में अन्य परीक्षा निकाय और संस्थान भी इससे प्रेरणा लेकर अपनी प्रणालियों में बदलाव कर सकते हैं। दिव्यांग अभ्यर्थियों को मनपसंद परीक्षा केंद्र चुनने की अनुमति देने का यूपीएससी का फैसला एक सराहनीय और दूरदर्शी कदम है। यह न केवल वर्षों पुरानी समस्या का समाधान करता है, बल्कि परीक्षा प्रणाली को अधिक मानवीय, न्यायपूर्ण और समावेशी बनाता है। इस बदलाव से हजारों दिव्यांग उम्मीदवारों को सीधा लाभ मिलेगा और उन्हें यह भरोसा भी मिलेगा कि उनकी चुनौतियों को समझा जा रहा है और उनके अधिकारों का सम्मान किया जा रहा है।


