बिहार में 72 हज़ार से अधिक शिक्षकों के प्रमाणपत्रों की होगी गहन जांच, नौकरी पर लटकी तलवार, निर्देश जारी
पटना। बिहार के सरकारी स्कूलों में कार्यरत शिक्षकों को लेकर शिक्षा विभाग ने एक अहम और सख्त फैसला लिया है। विभाग के इस आदेश के बाद राज्यभर में शिक्षकों के बीच हड़कंप की स्थिति बन गई है। करीब 72 हजार से अधिक शिक्षकों के प्रमाणपत्रों की गहन जांच की तैयारी की जा रही है, जिससे कई शिक्षकों की नौकरी पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। शिक्षा विभाग ने साफ कर दिया है कि यदि जांच में किसी भी प्रकार की अनियमितता या फर्जीवाड़ा सामने आता है तो संबंधित शिक्षक के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।
जांच के दायरे में कौन-कौन से शिक्षक
शिक्षा विभाग के अनुसार वर्ष 2006 से 2015 के बीच नियुक्त नियोजित शिक्षकों के प्रमाणपत्रों की जांच कराई जाएगी। इस दायरे में कुल 72,287 शिक्षक शामिल हैं। इन शिक्षकों के जाति, आय, आधार, शैक्षणिक योग्यता और प्रशिक्षण से जुड़े सभी दस्तावेजों का सत्यापन किया जाएगा। जांच का जिम्मा निगरानी अन्वेषण ब्यूरो को सौंपा गया है, ताकि प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से पूरी हो सके।
किन प्रमाणपत्रों की होगी गहन पड़ताल
इस जांच में शिक्षकों के हाईस्कूल और इंटरमीडिएट के प्रमाणपत्र, स्नातक डिग्री, बीएड, बीटीसी, प्रशिक्षण प्रमाणपत्र, जाति प्रमाणपत्र, दिव्यांगता प्रमाणपत्र और अन्य जरूरी दस्तावेज शामिल हैं। सभी दस्तावेजों का मिलान संबंधित बोर्ड, विश्वविद्यालय, जिला और राज्य स्तर से कराया जाएगा। शिक्षा विभाग का कहना है कि किसी भी तरह की लापरवाही या ढिलाई अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
संदिग्ध प्रमाणपत्रों की बड़ी संख्या
प्रारंभिक आंकड़ों के अनुसार 53,894 शिक्षकों के हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की मार्कशीट और प्रमाणपत्र संदिग्ध पाए गए हैं। इसके अलावा 18,393 शिक्षकों के बीएड, बीटीसी, स्नातक, जाति और अन्य प्रमाणपत्रों की भी जांच की जाएगी। इस प्रक्रिया में बिहार बोर्ड, संस्कृत बोर्ड और मदरसा बोर्ड के हजारों प्रमाणपत्र शामिल हैं। साथ ही राज्य के प्रमुख विश्वविद्यालयों जैसे पटना विश्वविद्यालय, मगध विश्वविद्यालय, तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, नालंदा खुला विश्वविद्यालय, वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय और अन्य संस्थानों के प्रमाणपत्र भी जांच के घेरे में हैं।
पहले भी हो चुकी है जांच, नहीं मिले ठोस नतीजे
शिक्षा विभाग ने अब तक सात बार विभागीय स्तर पर प्रमाणपत्रों की जांच कराई थी, लेकिन किसी ठोस नतीजे तक नहीं पहुंच सका। विभागीय स्तर पर लापरवाही और प्रक्रियागत कमियों के कारण कार्रवाई आगे नहीं बढ़ पाई। अब राज्य सरकार ने यह जिम्मेदारी निगरानी अन्वेषण ब्यूरो को सौंप दी है, ताकि जांच को कानूनी और सख्त तरीके से अंजाम दिया जा सके। सभी जिलों के जिला शिक्षा पदाधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे जांच एजेंसी को पूरा सहयोग प्रदान करें।
फर्जी पाए जाने पर क्या होगी कार्रवाई
शिक्षा विभाग ने स्पष्ट किया है कि यदि किसी शिक्षक के प्रमाणपत्र फर्जी पाए जाते हैं तो उनकी सेवा तत्काल समाप्त कर दी जाएगी। इसके साथ ही अब तक दी गई पूरी सैलरी की ब्याज सहित वसूली की जाएगी। इतना ही नहीं, संबंधित शिक्षक के खिलाफ आपराधिक मामला भी दर्ज किया जाएगा। विभागीय सूत्रों के अनुसार करीब 420 मामलों में प्राथमिकी दर्ज करने की तैयारी की जा रही है।
राज्यकर्मी बन चुके शिक्षकों पर भी नजर
विभागीय आंकड़ों के मुताबिक फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर 40 हजार से अधिक शिक्षक सक्षमता परीक्षा और टीआरई-1, टीआरई-2 व टीआरई-3 पास कर राज्यकर्मी बन चुके हैं। यदि जांच में ऐसे शिक्षक भी फर्जी पाए जाते हैं तो उनकी नौकरी भी समाप्त की जाएगी। साथ ही उन्हें राज्यकर्मी बनने के बाद मिली सुविधाओं और वेतन की राशि भी लौटानी होगी।
राज्य में शिक्षकों की स्थिति
बिहार में वर्तमान में करीब 81 हजार स्कूल हैं, जिनमें लगभग 5.80 लाख शिक्षक कार्यरत हैं। वर्ष 2006 से 2016 के बीच 3.68 लाख नियोजित शिक्षकों की नियुक्ति हुई थी। इनमें से लगभग 2.60 लाख शिक्षक सक्षमता परीक्षा पास कर राज्यकर्मी बन चुके हैं। इतने बड़े स्तर पर जांच शुरू होने से शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता लाने की दिशा में इसे बड़ा कदम माना जा रहा है।
शिक्षा मंत्री का बयान
शिक्षा मंत्री सुनील कुमार ने कहा है कि शिक्षकों के प्रमाणपत्रों की सख्ती से जांच की जा रही है। जो शिक्षक फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर नौकरी कर रहे हैं, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई तय है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जिन शिक्षकों के सभी दस्तावेज सही हैं, उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है। वे पहले की तरह अपनी सेवा जारी रख सकेंगे।
ईमानदार शिक्षकों को राहत
शिक्षा विभाग ने अंत में यह साफ कर दिया है कि यह कार्रवाई ईमानदार शिक्षकों के खिलाफ नहीं है। जिन शिक्षकों ने सही और वैध प्रमाणपत्रों के आधार पर नौकरी हासिल की है, उनके लिए चिंता की कोई बात नहीं है। जांच का उद्देश्य केवल फर्जीवाड़े को खत्म करना और शिक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाना है।


