एसआईआर में रुकावट पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, अदालत बोली- आयोग हमें संज्ञान दे, राज्यों के लिए पारित करेंगे आदेश
नई दिल्ली। मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता जताई है। हाल के दिनों में पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों से ऐसी शिकायतें सामने आई हैं कि बूथ लेवल ऑफिसरों (बीएलओ) को धमकाया जा रहा है और पुनरीक्षण कार्य में जानबूझकर बाधा डाली जा रही है। लोकतंत्र की बुनियादी प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले इस मुद्दे को सर्वोच्च न्यायालय ने अत्यंत गंभीर माना और निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया कि वह इस संबंध में सभी राज्यों से मिली शिकायतें सीधे अदालत के संज्ञान में लाए, ताकि आवश्यक आदेश तुरंत पारित किए जा सकें।
लोकतंत्र की नींव— मतदाता सूची का पारदर्शी पुनरीक्षण
निर्वाचन आयोग देशभर में समय-समय पर मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण कराता है। इसका उद्देश्य है—
मृत या फर्जी मतदाताओं का नाम हटाना
नए योग्य मतदाताओं को सूची में शामिल करना
गलतियों को ठीक करना
यह प्रक्रिया जितनी पारदर्शी और सटीक होती है, चुनाव उतना ही विश्वसनीय बनता है।
लेकिन शिकायतें बताती हैं कि कुछ राज्यों में यह कार्य प्रभावित हो रहा है। बीएलओ लोगों के घर-घर जाकर जानकारी इकट्ठा करते हैं, इसलिए वे सबसे महत्वपूर्ण कड़ी होते हैं। ऐसे अधिकारियों को डराने-धमकाने या उन्हें काम न करने देना लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सीधा हमला माना जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख
एक याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर गहरी चिंता व्यक्त की। अदालत ने स्पष्ट किया कि— अगर राज्यों की ओर से सहयोग नहीं मिलता और बीएलओ को धमकाया जाता है, तो यह न केवल असंवैधानिक है, बल्कि चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप की श्रेणी में आता है। अदालत ने निर्वाचन आयोग से कहा कि वह ऐसे मामलों को अदालत के संज्ञान में लाए, ताकि न्यायालय जरूरत पड़ने पर राज्यों के खिलाफ सख्त आदेश पारित कर सके। कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि यदि स्थिति और बिगड़ती है, तो बीएलओ की सुरक्षा के लिए पुलिस को प्रतिनियुक्ति पर तैनात करना ही एकमात्र विकल्प होगा।
आयोग की दलील— हमारे पास पर्याप्त शक्तियां
निर्वाचन आयोग की ओर से प्रतिनिधि ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि आयोग के पास संविधान द्वारा प्रदत्त सभी शक्तियां मौजूद हैं। एसआईआर में लगे कर्मचारियों को धमकाने या बाधा डालने वाले किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध कार्रवाई की जा सकती है। आयोग ने यह भी कहा कि जरूरत पड़ने पर वह राज्य सरकारों को निर्देश जारी कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने आयोग की बात को स्वीकार किया, लेकिन यह भी कहा कि यदि आयोग को किसी स्तर पर सहयोग नहीं मिलता, तो वह सीधे अदालत को अवगत कराए।
पश्चिम बंगाल विशेष रूप से चर्चा में
सुनवाई के दौरान यह बात विशेष रूप से उठी कि पश्चिम बंगाल में बीएलओ को धमकाने और एसआईआर में बाधा डालने की घटनाएं अधिक सामने आ रही हैं। कुछ रिपोर्टों में कहा गया कि अधिकारियों के घर जाकर दबाव बनाया जा रहा है कि वे मतदाता सूची में बदलाव न करें या विशेष नाम शामिल करें। अदालत ने कहा कि ऐसी घटनाओं पर तत्काल कार्रवाई होनी चाहिए और किसी भी हालत में एसआईआर कार्य बाधित नहीं होना चाहिए।
राज्यों का सहयोग क्यों आवश्यक?
भारत का निर्वाचन तंत्र निर्वाचन आयोग द्वारा नियंत्रित होता है, लेकिन बीएलओ से लेकर कई अन्य कर्मचारी राज्य सरकार के अधीन होते हैं। इसका अर्थ है कि आयोग स्वतंत्र है, पर फील्ड में काम करने वाले कर्मचारियों की सुरक्षा और कार्य सुचारू रूप से चलाने के लिए राज्यों का सहयोग अत्यंत जरूरी है। जब राज्य सरकार ही सहयोग न करे या प्रशासनिक मशीनरी उदासीन हो जाए, तो मतदाता सूची की शुद्धता प्रभावित होती है और चुनाव की पारदर्शिता पर सवाल खड़ा होता है। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस बार सख्ती दिखाई है।
लोकतंत्र पर बढ़ता दबाव
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि मतदाता सूची में गड़बड़ी या बाधा का सीधा प्रभाव चुनाव परिणामों और लोकतांत्रिक व्यवस्था पर पड़ता है। यदि बीएलओ को सुरक्षित माहौल नहीं मिलेगा या उन पर दबाव बनाया जाएगा, तो मतदाता सूची पक्षपाती हो सकती है। अदालत के निर्देश का अर्थ है कि—
यदि किसी राज्य में एसआईआर कार्य बाधित होता है, तो वह न्यायालय तक पहुंचेगा
राज्यों के खिलाफ कठोर आदेश भी पारित किए जा सकते हैं
बीएलओ की सुरक्षा और स्वतंत्रता सुनिश्चित की जाएगी
निर्वाचन आयोग को अधिक मजबूती मिलेगी
यह फैसला यह भी दर्शाता है कि चुनाव प्रक्रिया से जुड़े किसी भी मुद्दे को अदालत हल्के में नहीं लेगी। सुप्रीम कोर्ट के इस हस्तक्षेप से यह साफ हो गया है कि देश की लोकतांत्रिक बुनियाद को कोई भी ताकत कमजोर नहीं होने दी जाएगी। मतदाता सूची का ईमानदार पुनरीक्षण लोकतंत्र की पहली शर्त है, इसलिए बीएलओ का सुरक्षित कार्य करना आवश्यक है। अदालत ने जो संदेश दिया है, वह स्पष्ट है अगर राज्य अपना दायित्व नहीं निभाएंगे, तो न्यायालय अपनी संवैधानिक भूमिका निभाते हुए कार्रवाई करने में संकोच नहीं करेगा।


