चुनाव से पहले फ्रीबीज़ पर भड़का सुप्रीम कोर्ट, कहा- लोग अब काम करने को तैयार नहीं, सब मुफ्त सुविधाओं के कारण
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव से पहले राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त सुविधाएं (फ्रीबीज़) देने की प्रवृत्ति पर गंभीर चिंता जताई है। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि इन मुफ्त योजनाओं के कारण लोगों में काम करने की प्रवृत्ति कम हो रही है। अदालत ने यह टिप्पणी बुधवार को शहरी इलाकों में बेघरों को घर के अधिकार से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान की। इस मामले की सुनवाई जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच कर रही थी। अदालत ने इस मामले को अगले छह हफ्तों के लिए स्थगित कर दिया है। जस्टिस गवई ने कहा कि मुफ्त सुविधाओं की वजह से लोगों में काम करने की इच्छा कम हो रही है। उन्होंने कहा, “दुर्भाग्यवश, मुफ्त की इन सुविधाओं के कारण लोग काम करने को तैयार नहीं हैं। उन्हें मुफ्त राशन मिल रहा है। उन्हें बिना कोई काम किए ही धनराशि मिल रही है।” यह टिप्पणी उस समय की गई जब अदालत शहरी इलाकों में बेघरों को आवास के अधिकार से संबंधित मामले पर सुनवाई कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी चुनावी समय में राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त सुविधाएं देने की प्रवृत्ति पर सवाल उठाती है। अक्सर चुनाव से पहले राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त बिजली, मुफ्त राशन, नकदी हस्तांतरण जैसी योजनाओं की घोषणा करते हैं। हालांकि, अदालत ने इन योजनाओं के दीर्घकालिक प्रभावों पर चिंता जताई है। जस्टिस गवई ने कहा कि ऐसी योजनाएं लोगों को आलसी बना रही हैं और उनमें काम करने की प्रेरणा कम हो रही है। अदालत ने यह भी कहा कि सरकारी योजनाओं का उद्देश्य लोगों को सशक्त बनाना होना चाहिए, न कि उन्हें निर्भर बनाना। मुफ्त सुविधाएं देने के बजाय, सरकार को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जो लोगों को स्वावलंबी बनाएं और उन्हें रोजगार के अवसर प्रदान करें। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि सरकारी योजनाओं का लक्ष्य लोगों की जीवनशैली में सुधार लाना होना चाहिए, न कि उन्हें सरकारी सहायता पर निर्भर बनाना। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी एक बार फिर मुफ्त सुविधाओं की राजनीति पर बहस छेड़ने वाली है। यह सवाल उठता है कि क्या मुफ्त योजनाएं वास्तव में लोगों की मदद कर रही हैं या उन्हें निर्भर बना रही हैं। अदालत ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए आगे की सुनवाई के लिए छह हफ्तों का समय दिया है। इस बीच, यह मामला सरकारी योजनाओं और उनके प्रभावों पर व्यापक चर्चा को जन्म दे सकता है।


