December 23, 2025

पाकिस्तान में आत्मघाती हमला: मिलिट्री पोस्ट को बनाया निशाना, चार सैनिकों की मौत

नई दिल्ली। पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी हिस्से उत्तर वजीरिस्तान में एक बार फिर आतंकवाद ने खूनी रूप दिखाया है। खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के इस संवेदनशील इलाके में आतंकियों ने एक सैन्य चौकी को निशाना बनाते हुए आत्मघाती हमला किया। सुसाइड कार बम और हथियारबंद हमलावरों की संयुक्त कार्रवाई में चार पाकिस्तानी सैनिकों की मौत हो गई, जबकि कम से कम 15 आम नागरिक घायल हुए हैं। घायलों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं, जिससे इस हमले की भयावहता और बढ़ जाती है।
घटना का पूरा घटनाक्रम
स्थानीय पुलिस और पाकिस्तानी सेना के अनुसार, यह हमला एक गांव के पास स्थित मिलिट्री पोस्ट पर किया गया। हमलावरों ने पहले चौकी की सुरक्षा घेराबंदी तोड़ने की कोशिश की। जब इसमें सफलता नहीं मिली तो विस्फोटकों से लदी एक कार को चौकी की बाहरी दीवार से टकरा दिया गया। धमाका इतना जोरदार था कि पूरे इलाके में अफरा-तफरी मच गई। इसके तुरंत बाद तीन बंदूकधारी हमलावरों ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। इस हमले के बाद कई घंटों तक सुरक्षा बलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़ चलती रही। सेना के बयान के मुताबिक, सभी हमलावरों को अंततः मार गिराया गया। हालांकि, इस दौरान चार सैनिकों की जान चली गई और कई अन्य लोग घायल हो गए।
नागरिकों को भारी नुकसान
हमले का असर सिर्फ सैन्य ठिकाने तक सीमित नहीं रहा। विस्फोट की तीव्रता इतनी अधिक थी कि आसपास के कई मकान क्षतिग्रस्त हो गए और कुछ तो पूरी तरह ढह गए। एक मस्जिद को भी नुकसान पहुंचने की सूचना है। स्थानीय लोगों के मुताबिक, धमाके के बाद चारों ओर धूल और धुआं फैल गया, जिससे लोगों को संभलने तक का मौका नहीं मिला। घायल नागरिकों को तुरंत नजदीकी अस्पतालों में भर्ती कराया गया, जहां कई की हालत गंभीर बताई जा रही है। स्थानीय प्रशासन ने राहत और बचाव कार्य शुरू कर दिया है, लेकिन क्षेत्र की दुर्गम भौगोलिक स्थिति के कारण मदद पहुंचाने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
उत्तर वजीरिस्तान का संवेदनशील इतिहास
उत्तर वजीरिस्तान लंबे समय से आतंकवाद और उग्रवाद का केंद्र रहा है। यह इलाका अफगानिस्तान की सीमा से सटा हुआ है और अतीत में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान तथा अन्य चरमपंथी संगठनों का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है। हालांकि पाकिस्तानी सेना ने पिछले वर्षों में कई बड़े सैन्य अभियान चलाकर इस क्षेत्र में उग्रवाद पर काबू पाने का दावा किया है, लेकिन इस तरह के हमले यह दिखाते हैं कि खतरा अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है।
सेना का आरोप और टीटीपी की भूमिका
हालांकि किसी भी आतंकी संगठन ने इस हमले की तुरंत जिम्मेदारी नहीं ली, लेकिन पाकिस्तानी सेना ने तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है। सेना का दावा है कि इस हमले की योजना अफगान सीमा के उस पार बनाई गई थी और वहीं से इसे निर्देशित किया गया। सेना के अनुसार, आतंकियों को सीमा पार से समर्थन और मार्गदर्शन मिल रहा है, जिससे ऐसे हमलों को अंजाम देना आसान हो जाता है। पाकिस्तानी सेना ने यह भी कहा है कि वह देश की सुरक्षा के लिए हर जरूरी कदम उठाने को तैयार है और आतंकियों तथा उनके मददगारों के खिलाफ कार्रवाई का अधिकार सुरक्षित रखती है।
अफगानिस्तान से जुड़ा कूटनीतिक तनाव
हमले के कुछ ही घंटों बाद पाकिस्तान का विदेश मंत्रालय सक्रिय हो गया। इस्लामाबाद में अफगान तालिबान के उप-मिशन प्रमुख को तलब कर औपचारिक विरोध दर्ज कराया गया। पाकिस्तान ने मांग की कि अफगान भूमि से संचालित आतंकवादी नेटवर्क के खिलाफ पूर्ण जांच और निर्णायक कार्रवाई की जाए। विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया कि अफगान तालिबान से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने क्षेत्र में सक्रिय सभी आतंकवादी समूहों पर ठोस और सत्यापन योग्य कदम उठाए। साथ ही यह भी सुनिश्चित करे कि अफगान जमीन का इस्तेमाल पाकिस्तान के खिलाफ आतंकवाद के लिए न हो।
अफगान तालिबान की स्थिति
अफगान तालिबान लंबे समय से यह दावा करते आए हैं कि वे किसी भी देश के खिलाफ अपनी जमीन का इस्तेमाल नहीं होने देते। उनका कहना है कि वे क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के पक्षधर हैं। हालांकि पाकिस्तान की ओर से बार-बार यह आरोप लगाया जाता रहा है कि टीटीपी जैसे संगठन अफगानिस्तान में सुरक्षित ठिकाने बनाकर पाकिस्तान में हमले कर रहे हैं। इस ताजा घटना पर अफगानिस्तान की ओर से तत्काल कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, लेकिन दोनों देशों के बीच पहले से मौजूद अविश्वास की खाई और गहरी होती नजर आ रही है।
पाक-अफगान संबंधों में बढ़ता तनाव
पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्ते पिछले कुछ महीनों से लगातार तनावपूर्ण रहे हैं। अक्टूबर में सीमा पर झड़पें हुई थीं, जब काबुल में हुए विस्फोटों के लिए अफगानिस्तान ने पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया था। बाद में कतर की मध्यस्थता से युद्धविराम जरूर हुआ, लेकिन नवंबर में तुर्की में हुई बातचीत में भी दोनों देश किसी ठोस समझौते पर नहीं पहुंच सके। इस नए हमले ने एक बार फिर क्षेत्रीय सुरक्षा और सीमा पार आतंकवाद के मुद्दे को केंद्र में ला दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक दोनों देशों के बीच भरोसे की कमी दूर नहीं होती और आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त रणनीति नहीं बनती, तब तक ऐसे हमलों का खतरा बना रहेगा।

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