बिहार बंद की निकली हवा : कहीं खान सर तो कहीं विपक्षी पार्टियों के लिए चाणक्य बने सुशील कुमार मोदी, पढ़िए हमारी खास रिपोर्ट

पटना, (राज कुमार)। पटना की सड़कों पर कल छात्रों के आंदोलन के बहाने अपनी राजनीतिक रोटी को सेकने के लिए सभी राजनीतिक दलों ने छात्र संगठनों द्वारा बुलाए गए बिहार बंद के लिए कमर कस ली थी लेकिन इस बिहार बंद में अधिकतर छात्र नदारद रहे। ऐसा माना जाता है कि छात्रों ने राजनीतिक पार्टियों के इस बिहार बंद की हवा निकाल दी। हालांकि कुछ छात्र संगठन इस बंद में शामिल हुए लेकिन यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि यह बिहार बंद पूरी तरह से असफल रहा और राजनीतिक दलों कि जो उम्मीदें थी वह पूरी तरह से सफल नहीं हो पाई। हमारी इस खास रिपोर्ट में पढ़िए बिहार बंद असफल होने के कुछ गंभीर पहलू।

आंदोलन के हीरो बने खान सर, मौके पर मोड़ा छात्रों का रुख
जब से बिहार में या छात्र आंदोलन शुरू हुआ है तब से बिहार और देश दुनिया में अपना नाम कमा चुके पटना के शिक्षक खान सर का नाम इस आंदोलन में बराबर आ रहा है। शायद ही ऐसा कोई न्यूज़ चैनल या न्यूज़ पोर्टल होगा जिन्होंने खान सर के बारे में इन दिनों कोई न्यूज़ न चलाई हो। खान सर भी लगातार स्टूडेंट्स की मांग को रेलवे अधिकारियों तथा सरकार के सामने रखते रहे और यह कहना गलत नहीं होगा कि आंदोलन को सफल बनाने में खान सर का बहुत बड़ा योगदान रहा। जब छात्र संगठनों ने 27 जनवरी की शाम बिहार बंद का ऐलान किया तब खान सर ने 27 जनवरी की देर रात को एक वीडियो रिलीज करते हुए यह कहा कि रेलवे ने छात्रों की सभी जायज मांगों को स्वीकार कर लिया है और इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री ने भी हस्तक्षेप किया तो मैं आप से अपील करता हूं कि 28 जनवरी को होने वाले इस बंद में कोई भी छात्र प्रोटेस्ट ना करें। खान सर की बातों को उनके स्टूडेंट्स ने माना और यह देखा गया कि यह बिहार बंद छात्र आंदोलन ना होकर राजनीतिक अवसर में तब्दील हो गया।
राजनीतिक पार्टियों की हुई मिट्टी पलीत, पप्पू यादव ने खान सर को कहा भगौड़ा
जहां एक ओर खाल सर की बात मानते हुए सभी विद्यार्थियों ने इस बंद में शामिल ना होने का निर्णय लिया वही इस बंद को सफल बनाने के लिए पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी के कार्यकर्ताओं ने पटना के डाक बंगला चौराहे पर बंद के समर्थन में माहौल बनाने की कोशिश जरूर की। लेकिन, चंद घंटों में ही ये साफ हो गया कि ये हंगामा राजनीतिक कार्यकर्ताओं का है और इससे रेलवे अभ्यर्थी पूरी तरह से अलग हो गए हैं। बिहार में रेलवे अभ्यर्थियों के समर्थन में बंद में उतरे, विपक्ष ही नहीं आधे सत्ता पक्ष को भी विरोध के नाम पर टायरों के जलते धुंए के अलावा कुछ हाथ नहीं लगा। गुस्साए विपक्षी नेताओं ने कभी खान सर को कोस कर तो कभी दुकानों के शटर गिराकर अपनी झुंझलाहट सड़कों पर जाहिर की और 28 जनवरी का बंद हवा-हवाई रह गया।
छात्र आंदोलन के बीच केंद्र सरकार को बचाने के लिए चाणक्य बनकर सामने आए पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी
जहां एक ओर छात्र आंदोलन से पूरे देश में केंद्र सरकार की निंदा हो रही थी। वही जब छात्रों ने बंद का ऐलान किया तो ऐसा माना जा रहा था कि 28 जनवरी को काफी तोड़फोड़ और हिंसक घटनाएं देखने को मिल सकती है क्योंकि बिहार में बीते दिनों गया जहानाबाद आरा जैसे इलाकों से आगजनी और हिंसक घटनाएं की खबरें आ रही थी। वैसे में मोर्चा संभाला बिहार बीजेपी के चाणक्य माने जाने वाले वरिष्ठ नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने। उन्होंने दिल्ली में बैठे-बैठे विपक्ष के इस बिहार बंद की हवा निकाल दी। जहां एक और सुशील कुमार मोदी ने लाइव आकर छात्रों को यह समझाने का प्रयास किया कि उन्होंने रेल मंत्री से बात की है और छात्र किसी भी प्रकार इन सब घटनाओं में भागना ले। वही ऐसा माना जा रहा है कि उन्होंने खान सर से भी संपर्क किया और दिल्ली में बैठे-बैठे सुशील कुमार मोदी ने बिहार के सभी विपक्षी पार्टियों को यह बता दिया कि अभी भी बिहार से दूर होने के बाद भी बीजेपी के असली चाणक्य तो सुशील कुमार मोदी ही है।