पूर्व विधायक राजबल्लभ यादव बलात्कार मामले में बरी, हाईकोर्ट ने पलटा निचली अदालत का फैसला
पटना। बिहार की राजनीति में एक समय भूचाल मचाने वाले बहुचर्चित बलात्कार मामले में पटना हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के पूर्व विधायक राजबल्लभ यादव को हाईकोर्ट ने सभी आरोपों से बरी कर दिया है। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष (प्रोसिक्यूशन) पीड़िता के आरोपों को ठोस तरीके से साबित करने में विफल रहा, इसलिए आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए रिहा किया जा रहा है। यह मामला वर्ष 2016 में सामने आया था, जब एक नाबालिग लड़की ने राजबल्लभ यादव पर यौन शोषण का गंभीर आरोप लगाया था। नाबालिग ने कहा था कि 6 फरवरी 2016 को उसे जन्मदिन की पार्टी के बहाने बोलेरो गाड़ी से नालंदा जिले के गिरियक स्थित एक घर में महिला परिचित लेकर गई थी। वहां उसे शराब पीने के लिए दी गई, लेकिन उसने मना कर दिया। इसके बाद आरोप के मुताबिक, उसका कपड़ा उतरवाया गया, बिस्तर पर धकेला गया और मुंह में कपड़ा ठूंस दिया गया। फिर शराब के नशे में धुत एक व्यक्ति ने उसके साथ दुष्कर्म किया। लड़की का आरोप था कि घटना के बाद उसे एक अन्य कमरे में रखा गया और अगली सुबह घर छोड़ दिया गया। पीड़िता ने यह भी बयान दिया था कि जिस महिला ने उसे वहां लाया था, उसने दुष्कर्म करने वाले से तीस हजार रुपये लेते हुए देखा था। मामले की जांच के बाद पुलिस ने राजबल्लभ यादव समेत छह लोगों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया। निचली अदालत ने ट्रायल के बाद राजबल्लभ यादव, सुलेखा देवी और राधा देवी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई, जबकि तीन अन्य को 10-10 साल की सजा दी गई थी। इस ट्रायल में अभियोजन पक्ष की ओर से 20 गवाहों की गवाही हुई, जबकि बचाव पक्ष ने अपने समर्थन में 15 गवाह पेश किए। बचाव पक्ष ने अदालत में दलील दी कि इस मामले के पीछे राजनीतिक साजिश है और सभी आरोप झूठे व मनगढ़ंत हैं। उन्होंने गवाहों के बयानों में विरोधाभास और घटनाक्रम में असंगतियां उजागर कीं। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में माना कि प्रस्तुत साक्ष्य आरोपी के दोष को साबित करने के लिए पर्याप्त और भरोसेमंद नहीं हैं। इस आधार पर निचली अदालत का आदेश रद्द कर दिया गया और सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया। फैसले के बाद राजबल्लभ यादव के समर्थकों में खुशी की लहर दौड़ गई। समर्थकों ने कहा कि वे शुरू से ही यह दावा करते आ रहे थे कि यादव निर्दोष हैं और उन्हें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा था। अब यह विश्वास सही साबित हुआ है। यह फैसला न केवल एक चर्चित आपराधिक मामले का अंत है, बल्कि बिहार की राजनीति में लंबे समय से चल रहे एक विवाद का भी समापन है। हालांकि, यह मामला यह भी दर्शाता है कि आपराधिक मामलों में ठोस साक्ष्य और गवाहों की विश्वसनीयता कितनी अहम होती है — और संदेह का लाभ आरोपी को बरी करवा सकता है।


