पटना में निशांत के लिए लगा पोस्टर, लिखा- नए साल में संभाले जदयू की कमान, पार्टी में अब युवाओं की जरूरत
पटना। बिहार की राजनीति में एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। इस बार चर्चा का केंद्र बने हैं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार। नए साल से ठीक पहले पटना के प्रमुख चौक-चौराहों पर लगे बैनर और पोस्टरों ने राजनीतिक गलियारों में नई बहस को जन्म दे दिया है। इन पोस्टरों में जदयू नेताओं और कार्यकर्ताओं की ओर से निशांत कुमार को राजनीति में लाने और पार्टी की कमान सौंपने की खुली मांग की गई है।
नववर्ष की बधाई के बहाने उठी राजनीतिक मांग
पटना में लगाए गए बैनरों को देखने से साफ है कि इन्हें नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ रणनीतिक रूप से लगाया गया है। पोस्टरों में शायरी और भावनात्मक भाषा का इस्तेमाल करते हुए लिखा गया है कि बिहार की जनता निशांत कुमार को राजनीति में देखना चाहती है। एक बैनर में लिखा गया है कि नव वर्ष की नई सौगात के रूप में नीतीश सेवक निशांत की मांग कर रहे हैं। साथ ही यह भी कहा गया है कि चाचा जी के हाथों में बिहार सुरक्षित है, अब पार्टी के अगले जेनरेशन का भविष्य निशांत कुमार को संभालना चाहिए। इन पोस्टरों का संदेश साफ है कि जदयू के भीतर एक वर्ग ऐसा है जो पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन या कम से कम नई पीढ़ी को आगे लाने की सोच रखता है।
जदयू नेताओं की सक्रियता और संकेत
यह पहली बार नहीं है जब निशांत कुमार की सियासी एंट्री को लेकर चर्चा हो रही हो। पिछले कुछ महीनों से जदयू के कई नेता अलग-अलग मंचों से यह बात कहते नजर आए हैं कि पार्टी को युवाओं की जरूरत है और नीतीश कुमार की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए निशांत कुमार एक उपयुक्त विकल्प हो सकते हैं। हालांकि अब तक यह चर्चा सीमित दायरे में थी, लेकिन खुलेआम पोस्टर और बैनर लगने से यह मुद्दा सार्वजनिक बहस का हिस्सा बन गया है। इन बैनरों में यह भी लिखा गया है कि पार्टी हित में निशांत कुमार को राजनीति में लाया जाना चाहिए ताकि नीतीश कुमार की नीतियों और विकास कार्यों को आगे बढ़ाया जा सके।
नीतीश कुमार और परिवारवाद का सवाल
निशांत कुमार की राजनीति में एंट्री की चर्चा इसलिए भी अहम मानी जा रही है क्योंकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हमेशा परिवारवादी राजनीति के विरोधी रहे हैं। उन्होंने कई बार सार्वजनिक मंचों से कहा है कि राजनीति में परिवारवाद लोकतंत्र के लिए घातक है। अपने विरोधी दलों, खासकर राष्ट्रीय जनता दल और अन्य पार्टियों पर वे परिवारवाद को लेकर लगातार हमला करते रहे हैं। ऐसे में अगर निशांत कुमार की राजनीति में एंट्री होती है, तो यह नीतीश कुमार की अब तक की छवि और राजनीतिक लाइन से अलग कदम माना जाएगा। यही वजह है कि यह मुद्दा जदयू के भीतर ही नहीं, बल्कि पूरे बिहार की राजनीति में चर्चा का विषय बना हुआ है।
विधानसभा चुनाव के बाद बदला माहौल
2025 के विधानसभा चुनाव के बाद से जदयू के अंदर नेतृत्व और भविष्य को लेकर मंथन तेज हुआ है। पार्टी के कई नेताओं का मानना है कि नीतीश कुमार के लंबे राजनीतिक अनुभव के बाद अब संगठन को धीरे-धीरे नई पीढ़ी की ओर बढ़ना चाहिए। इसी संदर्भ में निशांत कुमार का नाम बार-बार सामने आ रहा है। हालांकि अभी तक पार्टी की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन पोस्टरों के जरिए जिस तरह से माहौल बनाया जा रहा है, उससे यह साफ है कि यह केवल कुछ कार्यकर्ताओं की व्यक्तिगत राय नहीं, बल्कि संगठित प्रयास भी हो सकता है।
निशांत कुमार का अब तक का रुख
निशांत कुमार स्वयं अब तक राजनीति में आने को लेकर कोई स्पष्ट संकेत नहीं देते रहे हैं। वे कई मौकों पर यह कहते रहे हैं कि उनके पिता बिहार की सेवा कर रहे हैं और उनके नेतृत्व में राज्य लगातार विकास कर रहा है। जब भी उनसे राजनीति में आने के सवाल पूछे गए, उन्होंने इसे टालते हुए अपने पिता के कामकाज और जनता के भरोसे की बात कही है। निशांत कुमार सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी सीमित रूप से ही नजर आते हैं और उन्होंने अब तक किसी राजनीतिक मंच से सक्रिय भूमिका नहीं निभाई है। इसके बावजूद उनके नाम पर बार-बार पोस्टर लगना यह दिखाता है कि पार्टी के भीतर उनके समर्थक लगातार दबाव बना रहे हैं।
जदयू में अंदरूनी खिचड़ी की चर्चा
पटना में लगे इन बैनरों के बाद जदयू में अंदरूनी खिचड़ी पकने की चर्चाएं तेज हो गई हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह केवल नए साल की बधाई नहीं, बल्कि भविष्य की रणनीति का संकेत भी हो सकता है। कुछ लोग इसे पार्टी में संभावित बदलाव की तैयारी मान रहे हैं, तो कुछ इसे नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा से जोड़कर देख रहे हैं। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि नीतीश कुमार इस मांग पर क्या रुख अपनाएंगे। लेकिन इतना तय है कि निशांत कुमार के नाम पर लगे इन पोस्टरों ने बिहार की राजनीति में नए साल की शुरुआत से पहले ही एक नई बहस छेड़ दी है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह चर्चा केवल पोस्टरों तक सीमित रहती है या वास्तव में जदयू की राजनीति में कोई बड़ा मोड़ लाती है।


