December 3, 2025

पटना हाईकोर्ट ने बिहार पुलिस के 19858 सिपाहियों के ट्रांसफर पर लगाई अंतरिम रोक, आदेश जारी

पटना। हाल ही में बिहार सरकार द्वारा पुलिस विभाग के 19858 सिपाहियों का एक साथ स्थानांतरण कर दिया गया, जिससे पूरे राज्य में प्रशासनिक और कानूनी हलचल मच गई। इन तबादलों को लेकर पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई, जिसके बाद न्यायालय ने इस पर तत्काल अंतरिम रोक लगा दी है। हाईकोर्ट का यह फैसला राज्य सरकार की स्थानांतरण प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
याचिकाकर्ताओं की आपत्ति और दलीलें
इस पूरे मामले में याचिकाकर्ता अमिताभ बच्चन और अन्य की ओर से अधिवक्ता अवनीश कुमार ने याचिका दायर की। उनका कहना है कि 5 मई 2025 को एक साथ इतनी बड़ी संख्या में सिपाहियों का स्थानांतरण कर दिया गया, जो न केवल प्रशासनिक रूप से अनुचित है, बल्कि यह बिना किसी निर्धारित स्थानांतरण नीति के किया गया है। अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि वर्ष 2022 में सरकार ने जो स्थानांतरण नीति लागू की थी, उसे समाप्त कर दिया गया है और तब से अब तक कोई नई नीति तैयार नहीं की गई है।
स्थानांतरण की प्रक्रिया पर उठे सवाल
याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि 2010 से 2015 के बीच नियुक्त सिपाहियों को स्थानांतरित कर दिया गया, लेकिन यह प्रक्रिया किस आधार पर की गई, इसकी कोई स्पष्टता नहीं है। वहीं दूसरी ओर, ऐसे हजारों सिपाही जो लंबे समय से एक ही जिले में कार्यरत हैं, उनका कोई स्थानांतरण नहीं किया गया। इससे यह प्रतीत होता है कि स्थानांतरण प्रक्रिया में पारदर्शिता और समानता नहीं बरती गई है।
हाईकोर्ट का आदेश और अगली कार्रवाई
पटना हाईकोर्ट के जस्टिस राजेश वर्मा ने इस मामले में सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को चार सप्ताह के भीतर स्थिति स्पष्ट करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि सरकार हलफनामा दायर कर यह बताएं कि बिना स्थानांतरण नीति के इतने बड़े पैमाने पर तबादले कैसे और किस आधार पर किए गए। इसके साथ ही कोर्ट ने तब तक के लिए इन सभी स्थानांतरण आदेशों पर अंतरिम रोक लगा दी है। अब इस मामले की अगली सुनवाई ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद की जाएगी।
प्रभावित सिपाहियों में असमंजस और असंतोष
सरकार के इस कदम से प्रभावित हजारों सिपाहियों के बीच असमंजस की स्थिति है। कुछ को अचानक नई जगह पर कार्यभार ग्रहण करना पड़ा, तो कुछ अभी भी निर्देश का इंतजार कर रहे थे कि हाईकोर्ट के आदेश ने उन्हें थोड़ी राहत दी है। कई सिपाहियों का कहना है कि स्थानांतरण बगैर किसी स्पष्ट नियम के करना न केवल उनके पेशेवर जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि पारिवारिक और सामाजिक जीवन पर भी असर डालता है।
स्थानांतरण नीति की आवश्यकता
इस घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि राज्य सरकार को जल्द से जल्द एक स्पष्ट, पारदर्शी और संतुलित स्थानांतरण नीति बनानी चाहिए। ऐसी नीति जो सभी कर्मियों के लिए समान रूप से लागू हो और जिसमें समयसीमा, सेवा अवधि, पारिवारिक परिस्थितियां और क्षेत्रीय संतुलन जैसे पहलुओं का ध्यान रखा जाए। बिहार पुलिस के हजारों सिपाहियों के एक साथ स्थानांतरण पर पटना हाईकोर्ट की रोक राज्य प्रशासन के लिए एक चेतावनी है कि बिना नीति और प्रक्रिया के लिए गए फैसले न केवल न्यायिक जाँच के घेरे में आते हैं, बल्कि इससे कार्यरत कर्मियों में असंतोष भी पैदा होता है। आने वाले समय में इस मामले पर कोर्ट के निर्णय और राज्य सरकार की कार्रवाई पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी।

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