हस्तकरघा उद्योग बंद होने का दंश झेल रहे हैं बुनकर समाज के लोग

दुल्हिन बाजार।प्रखण्ड क्षेत्र के दर्जनों गांवों में बिगत पांच दशक पूर्व हस्तकरघा उद्योग में लगे सैकड़ो बुनकर सुख चैन की जिंदगी बसर करते थे।वही बुनकर बर्तमान समय मे हस्तकरघा उद्योग के चौपट हो जाने का दंश झेल रहे है।
            जानकारी के अनुसार पांच दशक पूर्व दुल्हिन बाजार प्रखण्ड क्षेत्र के नवीनगर, सेल्हौरी, बेल्हौरी व कादिरगंज सहित दर्जनों गांवों में 150 हस्तकरघे व पावरलूम उद्योग चलती थी। इन गांवों में बने वस्त्र स्थानीय व आसपास के बाजारों के अलावे ग्रामीण इलाकों में बेची जाती थ। इलाके के बहुत से लोग इस उद्योग से काफी लाभान्वित होते थे।एक ओर इलाके के सैकड़ो लोग वस्त्र निर्माण कार्य करते थे तो दूसरी ओर एक सौ से अधिक वस्त्र बेंचने की दुकाने थी।वही 250 से अधिक लोग गांव गांव घूमकर वस्त्र बेंचने का कार्य करते थे।इस प्रकार यहां के पांच सौ से अधिक लोगो को रोजगार प्राप्त थी। वही अब हालात ऐसी है कि सूत की कीमत में अधिक बृद्धि हो गयी जिसके अपेक्षा पावरलूम व हस्तकरघे उद्योग में  बने कपड़ो का उचित मूल्य नही मिल पाता है।वही अधिक लागत के कारण इन कपड़ो का मूल्य भी अधिक होता है।जिससे इन कपड़ो का खरीदार भी कम गया है. साथ ही इन कपड़ो को बेचने के लिए बाजार भी नही है।
        वही प्रखण्ड क्षेत्र के कादिरगंज गांव निवासी पेशे से बुनकर  नसीम अहमद ने बताया कि वर्ष 1966- 67 में एक पावरलूम व एक हस्तकरघा लगाने में 5000 (पांच हजार) रुपये व केवल एक हस्तकरघा लगाने में मात्र 1500 (पन्द्रह सौ) रुपये की लागत होती थी।वही वर्तमान समय मे एक हस्तकरघा व एक पावरलूम लगाने का खर्च 35000 ( पैंतीस हजार) रुपये व केवल एक हस्तकरघा लगाने का खर्च मात्र 10000 (दस हजार) रुपये की लागत होती है।  वही उस समय पांच किलो सूत का बंडल 150 (डेढ़ सौ) रुपये में मिल जाती थी जबकि वर्तमान समय मे पांच किलो सूत की कीमत 700- 800 रुपये हो गयी है।इस प्रकार कच्चे सुतों के मूल्यों में हुई बेतहासा बृद्धि ने बुनकरों की हालत बदतर कर दिया।अब सुतों की तुलना में तैयार कपड़ो की कीमत नही मिल पाती है।पूर्व समय मे अधिकांश लोग पावरलूम व हस्तकरघे में बने कपड़ो का प्रयोग करते थे इसलिए इनकी मांग अधिक थी। इस ब्यवसाय में लगे  एक बुनकर की मासिक आय उस सस्ती के समय मे एक से दो हजार रुपये तक होती थी जिससे उनकी हालात अच्छे थे। लेकिन इस उद्योग को चौपट हो जाने से बुनकरों की स्थिति दयनीय हो गयी है।
        वही प्रखण्ड क्षेत्र के कादिरगंज गांव निवासी बुनकर अमीन अहमद ने बतलाया कि बहुत से बुनकर कर्ज लेकर उद्योग लगाया था।अब इन कपड़ो की आपूर्ति अन्य राज्यो में स्थित कपड़ा मिलो से होने लगी। जिससे हस्तकरघा उद्योग चौपट हो गया व उद्यमी कर्ज के बोझ तले दबते चले गए। अधिकांश बुनकर अपने कर्ज चुकाने के लिए हस्तकरघों को बेंच दिया।कारीगरों की स्थिति भुखमरी तक पहुंच गए. साथ ही कच्चे सुतों की कीमतों में बेतहासा बृद्धि एवं बाहरी कपड़ो की आयात ने इस उद्योग को नेस्तानाबूत कर दिया।ऐसे स्थिति में अधिकतर उद्यमी व बुनकर अपने हस्तकरघों को बेच दिए व रोजगार के तलाश में बिभिन्न शहरों की ओर पलायन कर गए।यदि आज भी इस उद्योग को विकसित किया जाए तो बहुत से बुनकरों को रोजगार मिल सकती है।
               वही ऐनखां पंचायत के मुखिया अजय मिश्रा उर्फ गुड्डू बाबा ने बताया कि आज भी पालीगंज के सिंगोड़ी व मौरी गांव में बृहत पैमाने पर हस्तकरघा उद्योग चल रही है।जिससे वहां के बुनकर काफी खुशहाल है।वही उन्होंने बताया कि मेरे पंचायत क्षेत्र के कादिरगंज, ऐनखां सहित कई गांवों में हस्तकरघा उद्योग चलता था जो अब बन्द हो गया है।इसे पुनः शुरू करने के लिए सम्बन्धित पदाधिकारियो व बीडीओ से बात करूंगा।वही दुल्हिन बाजार बीडीओ संजीव कुमार ने बतलाया की यदि बुनकर इस उद्योग को पुनः शुरू करना चाहे तो उन्हें सहायता प्रदान की जाएगी।

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