फिर कहीं विजय सिन्हा के कारण पलटी ना मार दें नीतीश, भारी न पड़ जाए बिहार में ब्यूरोक्रेसी के तिलिस्म को तोड़ने का प्रयास
- बिहार की राजनीतिक गणित उलझी हुई है सत्ता परिवर्तन मुश्किल जरूर पर नामुमकिन नहीं
- 2022 में एसडीपीओ को लेकर हुई थी तकरार,इस बार सीओ तथा डीसीएलआर पर कार्रवाई को लेकर गतिरोध
- भूमि सुधार तथा राजस्व विभाग में अभी तक नहीं चली है विभागीय मंत्रियों की, सीएम के निर्देश पर प्रधान सचिव ही रहे हैं सर्वेसर्वा
पटना। बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा जिस प्रकार से भूमि सुधार एवं राजस्व विभाग में दो दशक से स्थापित नौकरशाहों के लाल फीताशाही पर हथौड़ा चला रहे हैं। उससे इस बात की चर्चा बढ़ गई है कि 2022 की तरह फिर कहीं विजय कुमार सिन्हा की वजह से भाजपा जदयू का रिश्ता बली वेदी में ना चढ़ जाए। उल्लेखनीय है कि 2022 में जब प्रदेश में नीतीश कुमार के नेतृत्व में भाजपा- जदयू की सरकार थी। तब विजय कुमार सिन्हा विधानसभा के अध्यक्ष थे तथा लखीसराय के एक एसडीपीओ के द्वारा की गई कार्रवाई को लेकर विधानसभा में उन्होंने काफी कठोरता दिखाई थी। जिससे उनके जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के साथ अनबन हो गई थी। जिसका नतीजा यह निकला कि सीएम नीतीश कुमार अपनी पार्टी जदयू के साथ 2022 के अगस्त में आरजेडी-कांग्रेस के साथ चले गए तथा सरकार बना ली थी। 2025 के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद विजय कुमार सिन्हा अब उपमुख्यमंत्री की कुर्सी पर हैं। भूमि सुधार तथा राजस्व विभाग उनके पास है। बिहार में भूमि सुधार तथा राजस्व विभाग जनता से जुड़ा हुआ विभाग है। जिसको लेकर जनता सदैव परेशान रहती है। विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा लाल फीताशाही सिंडिकेट को ध्वस्त करने के लिए विजय कुमार सिन्हा लगातार मशक्कत कर रहे हैं। लेकिन बताया जाता है कि उपमुख्यमंत्री का यह मशक्कत 20 वर्षों से सत्ता को उंगलियों में नाचने वाले वरिष्ठ नौकरशाहों को बर्दाश्त नहीं हो रही है। जिसके कारण फिर से एक बार बिहार में सत्ता परिवर्तन का खेल आरंभ हो सकता है। 2025 के विधानसभा चुनाव के बाद जिस प्रकार राजनीतिक गणित विधानसभा में बतौर संख्या बल में स्थापित हुआ है। उसे देखते हुए सत्ता परिवर्तन आसान तो नहीं है, लेकिन नामुमकिन भी नहीं। हालांकि 2017, 22 तथा 2024 में जिस प्रकार मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए जिस प्रकार सीएम नीतीश कुमार ने पलटी मारी, अब उस प्रकार की पलटी मारी का प्रावधान आसान नहीं है। क्योंकि विपक्ष संख्या बल में बेहद कमजोर है तथा नीतीश अकेले उनके साथ जाकर सरकार नहीं बना सकते हैं। यह भी माना जा रहा है कि इस बार जरा भी भनक लगी तो भाजपा भी सत्ता परिवर्तन के खेल में पीछे नहीं रहेगी। उल्लेखनीय है कि 20 वर्षों से बिहार में नीतीश कुमार निर्बाध शासन करते रहे हैं। बिहार का शासन सीएम नीतीश कुमार के ‘मन’ से चलता रहा है। कोई भी विभागीय मंत्री अपने विभाग में अपने मन की नहीं चला सकता है। ऐसे में डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा के द्वारा अपने विभाग में किया जा रहा कार्य सीएम नीतीश कुमार के इर्द गिर्द रहने वालों के आंखों में चुभ रहा है। बताने वाले बताते हैं कि पिछले 20 वर्षों से विश्वसनीय नौकरशाहों के फौज के बदौलत सीएम नीतीश कुमार सत्ता पर पूरी तरह से काबिज रहे हैं।कोई भी बिहार में ब्यूरोक्रेसी के तिलिस्म को तोड़ने का प्रयास करेगा। तो यह सीएम नीतीश कुमार को मंजूर नहीं है। क्योंकि सर्व विदित है कि कई बार हाई पावर क्राइसिस के समस्या से नौकरशाहों के फौज ने ही सीएम नीतीश कुमार को निजात दिलाई है। ऐसे में विजय कुमार सिन्हा के द्वारा सीओ तथा डीसीएलआर को लगातार कठघरे में खड़ा किया जाना मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के वर्किंग कल्चर को बेनकाब कर रहा है। उल्लेखनीय है कि 2019 में भाजपा कोटे के मंत्री राम नारायण मंडल,2021 में भाजपा कोटे के मंत्री रामसूरत राय तथा 2023 में राजद कोटे के मंत्री आलोक मेहता के द्वारा बिहार में सीओ तथा डीसीएलआर के बड़े पैमाने पर ट्रांसफर-पोस्टिंग की फाइल जारी की गई। जिसे सीएम नीतीश कुमार के द्वारा रद्द कर दिया गया था। इससे प्रतीत होता है की भूमि सुधार तथा राजस्व विभाग में तबादला तथा पदस्थापन सीएम नीतीश कुमार के नीतियों के अनुरुप होता रहा है।तो ऐसे में उसी विभाग के कार्यशाली को भ्रष्टाचार के कटघरे में खड़ा करने की डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा की कोशिश कहीं ना कहीं स्वयं उनके लिए अथवा सरकार के लिए मुसीबत बन सकती है।


