जनवरी में होगा नीतीश मंत्रिमंडल का विस्तार, कई नए चेहरे बनेंगे मंत्री, जदयू और बीजेपी में बनी सहमति
पटना। नए साल की शुरुआत के साथ ही बिहार की राजनीति में एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार में जनवरी महीने के दौरान मंत्रिमंडल विस्तार की पूरी संभावना जताई जा रही है। सत्तारूढ़ गठबंधन के दोनों प्रमुख दलों जनता दल (यूनाइटेड) और भारतीय जनता पार्टी के बीच इस मुद्दे पर सहमति बन चुकी है। लंबे समय से खाली पड़े मंत्री पदों को भरने की तैयारी अब अंतिम चरण में मानी जा रही है, जिससे राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का दौर तेज हो गया है।
वर्तमान मंत्रिमंडल की स्थिति
वर्तमान समय में बिहार मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री सहित कुल 24 मंत्री शामिल हैं। जबकि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार राज्य में अधिकतम 36 मंत्री बनाए जा सकते हैं। इस लिहाज से अभी करीब 12 पद खाली हैं। यही वजह है कि मंत्रिमंडल विस्तार की संभावनाएं लंबे समय से जताई जा रही थीं। प्रशासनिक कार्यों का बोझ कम करने और विभिन्न विभागों को सुचारु रूप से चलाने के लिए नए मंत्रियों की नियुक्ति आवश्यक मानी जा रही है।
जदयू और भाजपा में बनी सहमति
सूत्रों के अनुसार मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर जदयू और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के बीच विचार-विमर्श पूरा हो चुका है। दोनों दल इस बात पर सहमत हैं कि अब सरकार को और मजबूत तथा संतुलित रूप देने की जरूरत है। गठबंधन की स्थिरता का संदेश देने के लिए भी यह विस्तार अहम माना जा रहा है। यह कदम यह दिखाने की कोशिश करेगा कि सत्ता में बैठे दोनों दलों के बीच समन्वय पूरी तरह कायम है।
नए चेहरों को मिल सकती है जगह
मंत्रिमंडल विस्तार में इस बार नए चेहरों को तरजीह दिए जाने की चर्चा है। जदयू और भाजपा दोनों अपने-अपने कोटे से ऐसे विधायकों को मंत्री पद देने पर विचार कर रहे हैं, जो संगठन के लिए सक्रिय रहे हैं और जिनकी अपने क्षेत्रों में मजबूत पकड़ है। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह बढ़ाने और संगठन को मजबूती देने का प्रयास भी किया जाएगा। साथ ही यह संकेत भी दिया जाएगा कि मेहनत और निष्ठा का राजनीतिक लाभ मिलता है।
जातीय और क्षेत्रीय संतुलन पर जोर
बिहार की राजनीति में जातीय और क्षेत्रीय संतुलन हमेशा से अहम भूमिका निभाता रहा है। मंत्रिमंडल विस्तार में इस पहलू को भी विशेष महत्व दिए जाने की संभावना है। अलग-अलग सामाजिक वर्गों और क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व देकर सरकार अपने सामाजिक आधार को और व्यापक बनाना चाहती है। इससे विभिन्न समुदायों में सरकार के प्रति भरोसा बढ़ाने की रणनीति भी जुड़ी हुई है।
अतिरिक्त प्रभार वाले विभागों को राहत
फिलहाल मंत्रिमंडल में कुछ ऐसे विभाग हैं, जिनका प्रभार एक ही मंत्री के पास है। इससे कामकाज का दबाव बढ़ता है और कई बार फैसलों में देरी भी होती है। मंत्रिमंडल विस्तार के बाद इन विभागों को पूर्णकालिक मंत्री मिलने की उम्मीद है। इससे प्रशासनिक कार्यों में तेजी आएगी और योजनाओं के क्रियान्वयन में सुधार होने की संभावना जताई जा रही है।
मंत्रिमंडल विस्तार और चुनावी रणनीति
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस विस्तार को आगामी चुनावी रणनीति से जोड़कर भी देखा जा रहा है। नए मंत्रियों को जिम्मेदारी सौंपकर सरकार जमीनी स्तर पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है। मंत्री बनने वाले विधायक अपने-अपने क्षेत्रों में सरकार की योजनाओं और उपलब्धियों को बेहतर ढंग से जनता तक पहुंचा सकेंगे। इससे गठबंधन दलों को राजनीतिक लाभ मिलने की उम्मीद है।
नामों को लेकर अटकलें तेज
मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर हालांकि अभी तक किसी भी नाम की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में अटकलों का बाजार गर्म है। कई विधायक मंत्री बनने की उम्मीद लगाए बैठे हैं। बताया जा रहा है कि संभावित नामों की सूची पर केंद्रीय और प्रदेश स्तर पर मंथन चल रहा है। अंतिम निर्णय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सहमति के बाद लिया जाएगा और राज्यपाल की मंजूरी से इस प्रक्रिया को औपचारिक रूप दिया जाएगा।
संभावित समय और औपचारिक घोषणा
सूत्रों के मुताबिक जनवरी के पहले या दूसरे सप्ताह में मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर औपचारिक घोषणा हो सकती है। नए साल की शुरुआत में यह कदम उठाकर सरकार एक सकारात्मक राजनीतिक संदेश देना चाहती है। हालांकि सत्तारूढ़ दलों के नेता फिलहाल इस मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से कुछ भी कहने से बच रहे हैं, लेकिन अंदरखाने तैयारियां तेज हैं। जनवरी में प्रस्तावित नीतीश मंत्रिमंडल का विस्तार बिहार की राजनीति में एक अहम घटनाक्रम साबित हो सकता है। इससे न केवल सरकार की प्रशासनिक क्षमता बढ़ने की उम्मीद है, बल्कि सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर संतुलन और समन्वय को भी मजबूती मिलेगी। अब सभी की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि किन नए चेहरों को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाता है और उन्हें कौन-सी जिम्मेदारियां सौंपी जाती हैं। यह विस्तार आने वाले समय में बिहार की राजनीतिक दिशा को भी प्रभावित कर सकता है।


