पटना में एनआईटी के छात्र ने की आत्महत्या, हाइपरहाइड्रोसिस बीमारी से परेशान होकर उठाया खौफनाक कदम

पटना। बिहटा स्थित एनआईटी कॉलेज के थर्ड ईयर के कंप्यूटर साइंस छात्र प्रशांत पाल की आत्महत्या ने समाज को एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया है। उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर के रहने वाले प्रशांत ने ट्रेन के आगे कूदकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। उसकी आत्महत्या की वजह एक दुर्लभ और तकलीफदेह बीमारी हाइपरहाइड्रोसिस थी, जिससे वह पिछले कई वर्षों से जूझ रहा था।
बीमारी ने छीनी मानसिक शांति
हाइपरहाइड्रोसिस एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति के शरीर, खासकर हाथों और पैरों से जरूरत से ज्यादा पसीना निकलता है। यह स्थिति उस समय भी बनी रहती है जब मौसम ठंडा होता है या व्यक्ति कोई शारीरिक मेहनत नहीं कर रहा होता। प्रशांत को इस बीमारी के कारण हर समय हाथ और पैर गीले रहते थे, जिससे उसकी हथेलियों और तलवों में लगातार जलन और दर्द बना रहता था। उसने बताया कि कई बार तो हालत इतनी खराब हो जाती थी कि उसकी त्वचा सड़ने लगती थी। इस बीमारी ने न केवल उसकी शारीरिक स्थिति को बिगाड़ा, बल्कि मानसिक रूप से भी उसे बुरी तरह प्रभावित किया।
इलाज पर लाखों खर्च, पर नहीं मिला सुकून
प्रशांत के पिता हरिओम पाल, जो कि एक किसान हैं, ने बेटे के इलाज के लिए हरिद्वार, लखनऊ, बरेली और शाहजहांपुर जैसे शहरों में लगभग 20 लाख रुपये खर्च किए, लेकिन कोई खास फायदा नहीं हुआ। प्रशांत ने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि उसने फरवरी से दवाई लेना बंद कर दिया था, क्योंकि दवाओं का असर न के बराबर था। बीमारी की वजह से उसका पढ़ाई में मन नहीं लगता था और लगातार बढ़ते फ्रस्ट्रेशन ने उसे भीतर से तोड़ दिया था।
सपनों की राख और परिवार की पीड़ा
सुसाइड नोट में प्रशांत ने लिखा कि वह पिछले 18-20 दिनों से सो नहीं पा रहा था। मिड-सेमेस्टर के दौरान ही उसने खुद को खत्म करने का फैसला कर लिया था, लेकिन होली पर अपने परिवार को एक बार देखने के लिए घर गया था। उसने यह भी लिखा कि उसकी जिंदगी अब रंगहीन और अर्थहीन हो चुकी थी, और वह अपने अधूरे सपनों के साथ जीने में असमर्थ था। प्रशांत का यह बयान बेहद मार्मिक था कि उसके पापा दुनिया के सबसे अच्छे पिता हैं, लेकिन अब वह और सहन नहीं कर सकता।
प्रशांत की आखिरी इच्छा
प्रशांत ने अपने नोट के अंत में लिखा कि भविष्य में उनके परिवार में अगर किसी बच्चे का जन्म हो तो उसका नाम ‘प्रशांत’ न रखा जाए। यह लाइन उसकी मानसिक पीड़ा और निराशा को गहराई से दर्शाती है। प्रशांत के शव को पटना के बिहटा रेलवे स्टेशन के पास से बरामद किया गया और फिर पारिवारिक मान्यता के अनुसार गांव के खेत में दफनाया गया, क्योंकि परिवार की परंपरा है कि असमय मृत्यु होने पर शव को जलाने के बजाय दफनाया जाता है।
समाज के लिए संदेश
यह घटना न केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी है, बल्कि एक सामाजिक चेतावनी भी है कि मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। दुर्लभ बीमारियों के लिए समाज और चिकित्सा व्यवस्था को अधिक सजग और सहायक होना होगा। साथ ही, युवाओं को मानसिक रूप से मजबूत बनाए रखने के लिए परिवार, संस्थान और समाज को मिलकर सहयोग करना होगा, ताकि कोई और प्रशांत अपने अधूरे सपनों के साथ इस तरह का खौफनाक कदम न उठाए।
