पटना में अस्पताल में प्रसव के दौरान लापरवाही, नवजात की मौत, परिजनों ने की कार्रवाई की मांग

पटना। राजधानी के गुरु गोविंद सिंह अस्पताल में इलाज में लापरवाही का एक गंभीर मामला सामने आया है, जिसमें एक नवजात की जन्म के कुछ ही देर बाद मौत हो गई। पीड़ित परिवार ने अस्पताल प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है। मामला मालसलामी की रहने वाली अंशु कुमारी से जुड़ा है, जिन्हें सोमवार रात प्रसव पीड़ा होने पर उनके परिजन तुरंत गुरु गोविंद सिंह अस्पताल लेकर पहुंचे। अंशु के परिवार के अनुसार, जब वे अस्पताल पहुंचे, तब लेबर रूम का दरवाजा बंद मिला। अस्पताल के कर्मचारियों ने उन्हें मुख्य लेबर रूम में न ले जाकर पीछे के एक कमरे में एक बेड पर सुला दिया, जहां करीब एक घंटे तक अंशु दर्द से तड़पती रहीं। परिजनों का आरोप है कि इस दौरान कोई प्रशिक्षित डॉक्टर या नर्स उनके पास नहीं आया। करीब एक घंटे के बाद तीन कर्मचारियों ने अंशु को लेबर रूम में ले जाकर डिलीवरी कराई। परिजनों ने बताया कि डिलीवरी के बाद अस्पताल कर्मियों ने नवजात के जन्म की सूचना देते हुए बेटे के जन्म की पुष्टि की और उनसे 2500 रुपये की मांग की। यह राशि देने के बाद परिजनों को बताया गया कि बच्चे की हालत सामान्य है। हालांकि जब बच्चे को मां के पास लाया गया, तो उसका शरीर पीला और निष्प्राण प्रतीत हो रहा था। परिवार ने तुरंत बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाकर जांच कराई, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। डॉक्टरों ने नवजात को मृत घोषित कर दिया। परिजनों का आरोप है कि अगर समय रहते सही चिकित्सकीय सहायता मिली होती, तो बच्चे की जान बचाई जा सकती थी। इस दर्दनाक घटना के बाद पीड़ित परिवार ने अस्पताल अधीक्षक, नेशनल मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया, बिहार के स्वास्थ्य मंत्री और पटना जिलाधिकारी को पत्र लिखकर न्याय और दोषियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की मांग की है। परिवार ने अस्पताल में व्याप्त अव्यवस्थाओं और गैर-जिम्मेदार कर्मचारियों के रवैये को भी उजागर किया है। इस संबंध में गुरु गोविंद सिंह अस्पताल के अधीक्षक ने बताया कि उन्हें इस घटना की शिकायत प्राप्त हुई है और जांच प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। उन्होंने आश्वासन दिया कि जांच में जो भी कर्मचारी दोषी पाए जाएंगे, उनके विरुद्ध कड़ी प्रशासनिक कार्रवाई की जाएगी। इस मामले ने सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाओं की गुणवत्ता और जवाबदेही पर एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया है। राज्य सरकार और स्वास्थ्य विभाग पर दबाव बढ़ता जा रहा है कि वे ऐसे मामलों में सख्त कदम उठाएं, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोहराई न जा सकें।

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