बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण और औद्योगिकरण का दबाव इन शहरों के सीवरेज नेटवर्क पर पड़ रहा

नई दिल्‍ली। बिहार के प्रचीन बड़ेशहरों, पटना और भागलपुर के साथ-साथ गंगा तट पर बसे अन्य शहरों में बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण और औद्योगिकरण का दबाव इन शहरों के सीवेज नेटवर्क पर पड़ रहा है। बिहार की राजधानी पटना के मौजूदा सीवेज प्लांट 109 एमएलडी तक के सीवेज का शोधन कर रहे है, जबकि एक अनुमान के मुताबिक भविष्य में यहां लगभग 350 एमएलडी सीवेज के शोधन की आवश्यकता होगी। पटना शहर की बात करें तो, इसका मात्र 20 प्रतिशत क्षेत्र ही सीवेज नेटवर्क के अंतर्गत कवर हो रहा है।
गंगा नदी अविरलता और निर्मलता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि गंगा बेसिन में बसे हुए ऐसे घनी आबादी वाले सभी शहरों के मौजूदा सीवेज नेटवर्कों और एसटीपी संयंत्रों का संचालन और रखरखाव प्रभावी रुप से किए जाए। साथ ही मौजूदा मुक्तिधामों, नदी तट पर बने घाटों के साथ-साथ भविष्य की जरुरतों को ध्यान में रखते हुए नए एसटीपी के निर्माण और मौजूदा एसटीपी की क्षमता को बढ़ाने के साथ साथ सीवेज नेटवर्क का भी विस्तार किया जाए ताकि गंगा में गिरने वाला मल-जल भी शोधित होकर ही गंगा में मिले।
गंगा की निर्मलता और अविरलता को बहाल करने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार ने जुलाई, 2014 में पहली बार गंगा के पुनरूद्धार के लिए एक अलग मंत्रालय की स्थापना की थी और मई, 2015 में 20,000 करोड़ के बजट के आबंटन से नमामि गंगे कार्यक्रम की शुरुआत की। नमामि गंगे के तहत, अब तक सीवेज अवसंरचना, औद्योगिक प्रदूषण नियंत्रण, नदी तट, घाट और मुक्तिधामों के विकास हेतु 22,273 करोड़ रूपये की लागत से कुल 230 परियोजनाएं स्वीकृति की जा चुकी है। जिनपर तेजी से कार्य हो रहा है। वहीं जल गुणवत्ता की नियमित जांच हेतु 44 स्थानों पर मानिटरिंग स्टेशन भी बनाए गए हैं।
भारत का कुल भू-भाग का 26 प्रतिशत हिस्सा गंगा बेसिन में हैं और देश की लगभग 43 प्रतिशत जनसंख्या और 57 प्रतिशत कृषि भू-भाग सिंचाई के लिए गंगा व उसकी सहायक नदियों पर निर्भर है। देश के जल संसाधनों में से 28 प्रतिशत गंगा नदी से ही प्राप्त होता है। कुल 2,525 किमी लंबी गंगा नदी पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड , बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से होकर बहती है हालांकि गंगा बेसिन में कुल 11 राज्य है।गंगा नदी का बेसिन
नमामि गंगे मिशन के द्वारा गंगा नदी में 1109 प्रदूषणकारी औद्योगिक इकाइयों और शहरों से निकलने वाले लाखों लीटर मल-जल, सैंकड़ो नालों का गंदा पानी तथा राम गंगा, काली जैसी सहायक नदियों के द्वारा मिलने वाले मल-जल के शोधन का महत्वपूर्ण कार्य होना है।नमामि गंगे के अंतर्गत चल रही इन परियोजनाएं से गंगा की मुख्यधारा वाले 5 राज्यों- उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में वर्ष 2035 तक के लिए सीवेज उपचार आवश्यकताएं पूरी हो जाएगी। नमामि गंगे शत-प्रतिशत केंद्रीय वित्तपोषित योजना है और पूरे पांच वर्ष के लिए एकमुश्त बजट का आबंटन कर दिया है। कई सीवरेज परियोजनाओं में हाईब्रिड एन्यूटी आधारित पीपीपी मॉडल का उपयोग किया जा रहा है जिसमें 15 वर्ष तक के लिए एस.टी.पी. का संचालन और रखरखाव की जिम्मेदारी निजी कंपनी ऑपरेटरों की ही होगी।
बिहार की राजधानी पटना में नमामि गंगे परियोजना के तहत सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, सीवर नेटवर्क और घाटों के निर्माण जैसे कई परियोजनाओं पर कार्य डिजाईन, निर्माण, संचालन और ट्रांसफर (DBOT) स्कीम के तहतकिए जा रहे है। डीबीओटी के तहत ही, पटना में 1834.8 करोड़ रुपये से 200 एमएलडी क्षमता वाले एसटीपी का निर्माण और 707.5 किमी लंबे सीवेज नेटवर्क का निर्माण कार्य किया जा रहा है। पटना के कंकरबाग और दीघा इलाके में हाईब्रिड एन्यूटी आधारित पीपीपी मॉडल के तहत सीवेज नेटवर्क और बड़े सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का समेकित विकास किया जा रहा है। इस योजना के तहत सभी नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट को बनाने और 15 वर्ष तक उनके रखरखाव का जिम्मा, निर्माण करने वाली कंपनी का ही होगा।दीघा घाट,पटना
बक्‍सर में 16 एमएलडी क्षमता वाले 95 कि.मी. लंबे सीवर नेटवर्क का कार्य तेजी पर है। ऐसे ही, पटना के बेउर, करमालीचक, सैदपुर और शहर के पहाड़ी क्षेत्र में 200 एमएलडी क्षमता के 120 कि.मी. से अधिक लंबे सीवर नेटवर्क पर काम चल रहा है। सुल्‍तानगंज, बाढ़ और नौगछिया में भी एसटीपी क्षमता में वृद्धि की परियोजनाएँ चलाई जा रही हैं। मोकामा, दीघा, कंकरबाग और हाजीपुर में कुल 180 एमएलडी क्षमता के 627 कि.मी. लंबे सीवर नेटवर्क के लिए निविदाओं को अंतिम रूप दिया जा रहा है। इन परियोजनाओं पर लगभग 1762 करोड़ रुपए व्‍यय होने का अनुमान है।रामरेखा घाट, बक्सर
भागलपुर में 254.13 करोड़ रुपये (15 वर्ष तक संचालन और रखरखाव के खर्च समेत) की लागत से हाईब्रिड एन्यूटी परियोजना के तहत 65 एमएलडी क्षमता वाले सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण किया जाना प्रस्तावित है। इस परियोजना से वर्ष 2035 तक के लिए भागलपुर शहर की सीवेज उपचार आवश्यकताएं पूरी हो जाएंगी। इसके साथ ही भागलपुर और बेगुसराय में 82 एलएलडी क्षमता की 114 कि.मी. लंबी सीवर परियोजनाएँ निविदा के अंतर्गत हैं, जिन पर 484 करोड़ रुपए व्‍यय किए जाएंगे। मुंगेर और सोनपुर की 33.5 एमएलडी क्षमता वाली 175 कि.मी. लंबी सीवर परियोजना पर 325 करोड़ रुपए व्‍यय होने का अनुमान है। ये दोनों परियोजनाएँ भी निविदाधीन हैं। बिहार में वर्ष 2016-18 के बीच 24.924 करोड़ रुपये की लागत से 600.5 हेक्टयर क्षेत्र में वनीकरणका कार्य भी किया गया है।

कुलकुलिया घाट, भागलपुर 
गंगा नदीके जलीय जन्तु पर्यावरण को ठीक करने और पुनर्वास का अध्ययन करने के लिए भी जैव विविधता संरक्षण जैसे कार्यक्रम चलाए जा रहे है। टिकाऊ संरक्षण और योजना के लिए गंगा नदी की धारा में मत्स्य एवं मत्स्य पालन का अध्य्यन भी किया जारहा है।साथ ही ‘गंगा प्रहरी’ समूह भी गंगा को अविरल और निर्मल बनाने में योगदान दे रहा है। ‘गंगा प्रहरी’एक ऐसे लोगों का समूह है जो अन्य लोगों को गंगा संरक्षण के प्रयासों से जोड़ते है। ‘गंगा प्रहरियों’  को गंगा नदी के पारिस्थितिक नियंत्रण,जैव विविधता, वृक्षारोपण तकनीकों, जागरुकता तथा जनसमुदायों से जोड़ने हेतु प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

About Post Author

You may have missed