December 9, 2025

मांझी ने फिर शराबबंदी पर उठाए सवाल, कहा- झगड़ा तो कम हुए पर गरीबों को जेल में डालकर बना दिया अपराधी

  • पूर्व सीएम बोले- शराब तस्करों की कमाई बढ़ी, पैसे से लड़ते हैं चुनाव, कानून की फिर से समीक्षा करें राज्य सरकार

पटना। बिहार की राजनीति में एक बार फिर हलचल तब तेज हो गई जब पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी ने शराबबंदी कानून पर खुलकर सवाल उठा दिए। हालांकि उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि शराबबंदी एक नेक और जनहितकारी पहल है, जिसने समाज में कई सकारात्मक बदलाव लाए हैं, लेकिन इसके लागू होने के तरीके पर गंभीर नाराज़गी जाहिर की। उनका बयान सत्ता गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है और प्रशासनिक व्यवस्था की कार्यप्रणाली पर कई प्रश्न खड़े कर गया है।
शराबबंदी के फायदे को माना, मगर व्यवस्था पर निशाना
मांझी ने स्वीकार किया कि शराबबंदी से घरेलू हिंसा में कमी आई, घरों में झगड़े घटे, और शराब के दुष्प्रभावों से समाज ने राहत महसूस की। महिलाएं भी इस फैसले से संतुष्ट हैं। लेकिन इन सबके बीच उन्होंने जिस दर्द को उठाया, वह गरीब तबके की व्यथा का प्रतिनिधित्व करता दिखा। उनका कहना था कि कानून का उद्देश्य गलत नहीं है, लेकिन इसका अनुपालन बिल्कुल उल्टा हो गया है। उन्होंने याद दिलाया कि शराबबंदी लागू होने के बाद तीसरी समीक्षा भी उनके दबाव पर ही हुई थी, और स्पष्ट निर्देश दिया गया था कि शराब बेचने वाले धंधेबाज़ों पर कार्रवाई करो, लेकिन मजदूर और गरीब को परेशान मत करो।
गरीबों को अपराधी बनाने का आरोप
मांझी ने सबसे गंभीर आरोप यह लगाया कि शराबबंदी कानून ने गरीबों, मजदूरों, रिक्शा चालकों और दिहाड़ी पर काम करने वाले लोगों को अपराधी बना दिया है। उन्होंने बताया कि राज्य में शराबबंदी के तहत दर्ज किए गए 6 लाख मामलों में से 4 लाख लोग पहली बार पकड़े गए गरीब तबके से हैं, जो किसी मजबूरी या अज्ञानता के कारण फंस गए। उनका कहना था कि अगर कोई व्यक्ति दवा के नाम पर भी थोड़ी मात्रा में शराब लेकर चलता है, तो उसे भी अपराधी मानकर जेल में डाल दिया जाता है। यह व्यवस्था कानून की आत्मा के खिलाफ है।
तस्करों की बढ़ती ताक़त पर बड़ा खुलासा
मांझी यहीं नहीं रुके। उन्होंने एक चौंकाने वाला दावा किया कि शराब तस्कर अब खुलेआम करोड़ों रुपये खर्च कर चुनाव लड़ रहे हैं और जीत भी रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब शराबबंदी लागू है, तो फिर यह काला धन आ कहाँ से रहा है? उन्होंने यह भी कहा कि वे ऐसे कई लोगों को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं, जो 5 से 10 करोड़ रुपये खर्च करके चुनाव लड़ रहे हैं। यह बयान शराबबंदी कानून के प्रभावी अनुपालन पर गहरे सवाल उठाता है।
प्रशासनिक मिलीभगत के गंभीर आरोप
मांझी ने साफ आरोप लगाया कि पहाड़ों, नदी किनारों, जंगलों और खेतों में रोज़ाना हजारों लीटर शराब बन रही है, लेकिन प्रशासन की ओर से कोई सख्त कार्रवाई नहीं होती। क्योंकि कुछ विभागीय कर्मियों और अधिकारियों की मिलीभगत के कारण यह पूरा अवैध नेटवर्क फलफूल रहा है। उन्होंने कहा कि असली तस्कर कभी नहीं पकड़े जाते, पकड़ा जाता है तो केवल गरीब मजदूर और छोटा उपभोक्ता, जिससे कानून का वास्तविक उद्देश्य विफल होता जा रहा है।
कानून लागू होना नीतीश का काम नहीं, सिस्टम की ईमानदारी जरूरी
मांझी ने स्पष्ट किया कि नीतीश कुमार की नीयत और शराबबंदी का उद्देश्य सही है। लेकिन कानून की सफलता प्रशासन की ईमानदारी और पारदर्शिता पर निर्भर करती है। उनका कहना था कि जब तक अधिकारी वर्ग और कानून लागू करने वाले विभाग अपनी कार्यप्रणाली सुधार नहीं लेते, तब तक शराबबंदी कभी सफल नहीं हो सकती।
समीक्षा की मांग और सिस्टम सुधार की अपील
अंत में मांझी ने राज्य सरकार से शराबबंदी कानून की पुनः समीक्षा की अपील की। उन्होंने कहा कि कानून को और व्यावहारिक बनाना जरूरी है, ताकि इसके तहत केवल असली अपराधियों पर कार्रवाई हो और गरीबों को बिना कारण जेल न भेजा जाए। उनकी बातों ने इस मुद्दे को फिर राजनीतिक केंद्र में ला दिया है और प्रशासन पर यह दबाव भी बढ़ गया है कि शराबबंदी की वास्तविक स्थिति को लेकर गंभीर समीक्षा की जाए।

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