लालू ने 30 सालों तक जाति जनगणना की लड़ाई लड़ी, महागठबंधन सरकार में सबसे पहले हमने इसे बिहार में करके दिखाया : तेजस्वी यादव
पटना। हाल ही में केंद्र सरकार ने देशभर में जाति आधारित जनगणना कराने का ऐलान किया है, जिसके बाद देश की राजनीति में इसका श्रेय लेने की होड़ मच गई है। बिहार में विशेष रूप से इस मुद्दे पर राजनीति गर्म है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव ने इस फैसले को अपनी पार्टी और अपने पिता लालू प्रसाद यादव की वैचारिक जीत बताया है। उनका कहना है कि यह कोई अचानक लिया गया फैसला नहीं, बल्कि इसके पीछे वर्षों का संघर्ष है। तेजस्वी यादव के अनुसार, उनके पिता लालू प्रसाद यादव ने पिछले 30 वर्षों से जातिगत जनगणना की मांग को लेकर लगातार लड़ाई लड़ी है। उन्होंने संसद से लेकर सड़क तक इस मुद्दे को बार-बार उठाया और इसके महत्व को रेखांकित किया। तेजस्वी ने याद दिलाया कि 2015 में भी लालू प्रसाद ने इस बात पर ज़ोर दिया था कि यदि ज़रूरत पड़ी तो आरएसएस जैसे संगठनों को भी मजबूर किया जाएगा कि वे जाति जनगणना कराएं। तेजस्वी ने महागठबंधन सरकार में बिहार में हुई जाति आधारित जनगणना को इस आंदोलन का पहला व्यावहारिक कदम बताया। उन्होंने केंद्र सरकार और बीजेपी नेताओं पर तंज कसते हुए कहा कि वे आज जिस फैसले की बात कर रहे हैं, वह मजबूरी में लिया गया फैसला है और असल में यह राजद की वैचारिक नीति का प्रभाव है। जब उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालू प्रसाद के सपने को पूरा किया है, तो तेजस्वी ने कटाक्ष करते हुए कहा कि इसका मतलब यह हुआ कि बीजेपी आज हमारे एजेंडे पर काम कर रही है। तेजस्वी यादव ने यह भी सवाल उठाया कि जब बिहार सरकार ने जातिगत आंकड़ों के आधार पर 65 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की थी, तो केंद्र सरकार ने उसे संविधान की 9वीं अनुसूचि में क्यों नहीं जोड़ा। उनका कहना था कि यह आरक्षण को कानूनी सुरक्षा देने के लिए आवश्यक था, और इसे टालना केंद्र की राजनीतिक मंशा पर सवाल खड़े करता है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने इस प्रक्रिया में देरी पर भी चिंता जताई। जातिगत जनगणना 2021 में होनी थी, लेकिन अब 2025 में होगी। परिसीमन (वोटर क्षेत्र पुनर्निर्धारण) से पहले यह आवश्यक थी, लेकिन अब इसमें अनिश्चितता बनी हुई है।अंततः तेजस्वी यादव ने जातिगत जनगणना को एक सामाजिक न्याय की दिशा में बड़ी जीत बताया और इसे सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को हक दिलाने की दिशा में निर्णायक कदम करार दिया। उनका कहना है कि यह सिर्फ एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि दशकों की विचारधारात्मक लड़ाई की जीत है।


