विशेष भूमि सर्वेक्षण में पटना पिछड़ा, शेखपुरा का प्रथम स्थान, बांका भी आगे

पटना। बिहार सरकार द्वारा भूमि सुधार और राजस्व प्रबंधन को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से राज्य भर में विशेष भूमि सर्वेक्षण कार्य जारी है। इस कार्य की गति और गुणवत्ता की निगरानी राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग द्वारा की जा रही है, जो हर महीने जिलावार प्रदर्शन का मूल्यांकन कर रैंकिंग जारी करता है। मार्च 2025 की ताजा रैंकिंग में राज्य की राजधानी पटना का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है, जबकि शेखपुरा जिला सबसे बेहतर प्रदर्शन करते हुए पहले स्थान पर पहुंच गया है।
शीर्ष पर शेखपुरा, पटना सबसे नीचे
इस बार की रैंकिंग में शेखपुरा को 100 में से 87.74 अंक मिले हैं, जो इसे राज्य में सर्वोच्च स्थान पर लाते हैं। वहीं, बांका जिला 86.34 अंकों के साथ दूसरे स्थान पर रहा। जहानाबाद ने लगातार तीसरे महीने तीसरे स्थान को बरकरार रखा है, उसे 76.80 अंक प्राप्त हुए। खास बात यह है कि बक्सर जिले ने 11वें स्थान से छलांग लगाकर चौथे स्थान पर जगह बनाई है। सुपौल ने भी उल्लेखनीय प्रगति करते हुए 20वें स्थान से उठकर सीधे पांचवें पायदान पर जगह बना ली है। इसके विपरीत, पटना जिला 57.93 अंकों के साथ 38वें स्थान पर रहा, जो राजधानी के स्तर और संसाधनों को देखते हुए अत्यंत चिंताजनक है। गया को 58.39 अंक मिले और वह 37वें स्थान पर रहा, जबकि लखीसराय 58.68 अंकों के साथ 36वें और पश्चिमी चंपारण 59.09 अंकों के साथ 35वें स्थान पर रहा। खगड़िया को 59.14 अंक मिले और उसने 34वां स्थान हासिल किया।
रैंकिंग के लिए तय किए गए मानक
भूमि सर्वेक्षण में जिलों के प्रदर्शन का मूल्यांकन विभिन्न मानकों के आधार पर किया जा रहा है। विभाग ने कुल 100 अंकों का स्कोर निर्धारित किया है, जिसमें विभिन्न घटकों के लिए अंक निर्धारित किए गए हैं। दाखिल-खारिज का पर्यवेक्षण और परिमार्जन प्लस का पर्यवेक्षण – प्रत्येक के लिए 25 अंक, अभियान बसेरा-2 के लिए 20 अंक, आधार सीडिंग के लिए 5 अंक, एडीएम और डीसीएलआर कोर्ट के लिए 2.5-2.5 अंक, ई-मापी के लिए 10 अंक और डीएम कोर्ट के लिए भी 10 अंक निर्धारित किए गए हैं। इन्हीं सूचकांकों के आधार पर जिलों की रैंकिंग तैयार की जाती है।
निष्क्रियता पर विभागीय सख्ती
राजस्व विभाग इस अभियान को पूरी गंभीरता से संचालित कर रहा है। लगातार कमजोर प्रदर्शन करने वाले जिलों के अधिकारियों पर विभागीय कार्रवाई भी सुनिश्चित की जा रही है। यही कारण है कि पिछड़े जिलों पर अब अतिरिक्त दबाव है कि वे अपने कार्यों की गुणवत्ता और गति में सुधार लाएं। पटना जैसे बड़े और संसाधन-सम्पन्न जिले का इतना खराब प्रदर्शन न केवल चिंताजनक है, बल्कि यह शासन की छवि पर भी प्रतिकूल असर डालता है।
सुधार की आवश्यकता और आगे की राह
भूमि सर्वेक्षण का कार्य न केवल सरकारी रिकॉर्ड के अद्यतन के लिए आवश्यक है, बल्कि इससे आम नागरिकों को भी उनके भूमि संबंधी अधिकारों की स्पष्टता मिलती है। इससे जमीन की खरीद-बिक्री में पारदर्शिता आती है और विवादों में भी कमी आती है। ऐसे में पटना जैसे जिले का पिछड़ना यह संकेत देता है कि यहां सुधार की बड़ी गुंजाइश है। अन्य जिलों से प्रेरणा लेते हुए यहां की जिला प्रशासन को त्वरित रणनीति के साथ काम करना होगा। यह रैंकिंग सिर्फ आंकड़ों की तुलना नहीं है, बल्कि यह उन जिलों की कार्य संस्कृति और जवाबदेही को भी उजागर करती है। सरकार द्वारा पारदर्शी और प्रतिस्पर्धात्मक प्रणाली के अंतर्गत किया गया यह प्रयास राज्य के भूमि सुधार अभियान को मजबूती देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
