INSIDE STORY : बिहार में शादी ब्याह के मौसम में होता है करोड़ों का कारोबार, बंगाल से आती हैं बार बालाएं

पटना (अजीत)। बिहार के लोग रोजी रोजगार की तलाश में अन्य प्रदेशों में जाते हैं। खासकर पश्चिम बंगाल बिहार के मजदूरों का सबसे बड़ा रोजगार हब माना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि पश्चिम बंगाल के लोग भी बिहार में रोजगार के लिए आते हैं। जी हां, हम आपको बता रहे हैं बिहार में शादी ब्याह के मौसमों में चलने वाले बार बालाओं के डांसरों की कहानी के बारे में।
बिहार में शादी ब्याह के मौसमों में नब्बे फीसदी लड़कियां बंगाल से आती हैं। दो-तीन महीने के कारोबार में करोड़ों का लेन-देन होता है। खास बात यह है कि उत्तर बिहार की शादियों में बार बालाओं का नाच सोशल एस्टेट का विषय बन गया है। आदमी चाहे अमीर हो या गरीब, शादी-ब्याह के मौके पर बार बालाओं का डांस कराना सामाजिक प्रतिष्ठा का विषय माना जाता है। ऐसे में पश्चिम बंगाल से हजारों की तादाद में लड़कियां शादी ब्याह के मौके पर उत्तर बिहार के आर्केस्ट्रा ग्रुप द्वारा बिहार लाई जाती है, उनका प्रोग्राम भी धड़ल्ले से चलता है। छपरा, सिवान और गोपालगंज जिले के कुछ ऐसे इलाके हैं, जो आर्केस्ट्रा वालों के कारण आज पूरे बिहार जाने जाते हैं। सिवान के जनता बाजार, महाराजगंज समेत तमाम चौक-चौराहे पर लगभग साढे 500 से ज्यादा पंजीकृत आर्केस्ट्रा ग्रुप इन 3 जिलों में हैं। इन मंडलियों में काम करने वाली लड़कियां पश्चिम बंगाल और दूसरे प्रदेशों से शादी व्याह के मौसम में बुलाई जाती हैं। उनके साथ उनके परिजन भी होते हैं तथा शादी ब्याह में नृत्य कर पैसा कमाती हैं। इस बार बिहार में शादी का मौसम बीते अप्रैल माह से कोरोना के कारण शुरू नहीं हो सका। जिन लोगों ने इनका कार्यक्रम शादियों में बुक करवाया था, उन लोगों ने भी करोना संकट में इन्हें एडवांस देने से मना कर दिया। कोरोना ने शादियों पर पूरी तरह से ब्रेक लगा दिया। ऐसे में छपरा, सीवान और गोपालगंज में आकर फंसे हजारों नर्तकियों के सामने भूखमरी की स्थिति पैदा हो गई। मेकअप के चेहरे, तेज संगीत के साथ जगमगाती रोशनी में अपना जलवा दिखाने वाली इन नर्तकियों को हालात से समझौता करते हुए अपना पेट भरने के लिए तपती दुपहरी में खेतों में मेहनत मजदूरी करना शुरू किया। स्थानीय लोगों ने शुरूआत में थोड़ी बहुत इन लोगों की मदद भी की, पर किसी को नहीं पता था कि स्थिति इतनी विकराल हो जाएगी कि कोई कर्ज देने को भी तैयार नहीं था। जनता बाजार पर डेढ़ सौ से ज्यादा ऐसे आर्केस्ट्रा ग्रुप हैं, इनमें से तो सैकड़ों की तादाद में लड़कियों ने अपना स्थाई बसेरा तक बना रखा है।
जानकार सूत्र बताते हैं कि लॉकडाउन के शुरूआती दिनों में किसी तरह इनका गुजारा हुआ। कुछ स्थानीय लोगों ने इनकी मदद भी की और बाद में सब लोग खुद विपन्न होने लगे और सब ने हाथ खींच लिया। ऐसे में इन लोगों के सामने भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई और इन लोगों ने गांव-गांव में घूमकर गेहूं काटना शुरू कर दिया। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जिन जिन बाजारों पर इनका बसेरा है, वहां गुंडा बैंक अर्थात सूद ब्याज का कारोबार भी काफी व्यापक है।
छपरा जिले के सोनपुर, नया गांव, परमानंदपुर, दिघवारा, नगरा, ईश्वरपुर, मढ़ौरा, तरैया, खानापुर, डुमर्सन, राजापट्टी, हाजीपुर, बनियापुर, सिवान जिले के मदारपुर, जामो, मलमलिया, बसंतपुर, महाराजगंज, तरवारा, इकमा, माझी और गोपालगंज जिले के कटरापूर, कुचायकोट, माझा, बरौली, बैकुंठपुर समेत सभी भीड़भाड़ वाले बाजारों पर दो से तीन चार ऐसे आर्केस्ट्रा ग्रुप संचालित होते हैं, जिनमें काम करने वाली लड़कियां वहीं रहती हैं। कोरोना गाइनलाइन में मिले छूट के बाद अक्टूबर-नवंबर से स्थिति सामान्य हुई है। कोरोना काल में फंसी हुई शादियां भी हो रही है। ऐसे में बार बालाओं का कारोबार एक बार फिर चकाचक है।
दर्जन भर से ज्यादा बड़े आर्केस्ट्रा ग्रुप के संचालकों ने बातचीत में बताया कि विगत आठ महीने की मंदी दो महीने में समाप्त हुई है। लगातार शादियां होने के कारण एक ग्रुप में ही दो-तीन छोटे-छोटे समूह बना दिए गए हैं। बदले हालात में कई लोग मदद के लिए आगे आ रहा है। अब बार बाला अपने घर वापस लौटना नहीं चाहते हैं। हाल के कुछ वर्षों में छपरा, सीवान, गोपालगंज, मोतिहारी, बेतिया में जिला प्रशासन ने इन ग्रुपों का निबंधन अनिवार्य कर दिया है। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल की लड़कियां इन जिलों में अपनी कला का प्रदर्शन करने आती हैं। फिलहाल ऐसी 850 लड़कियों का आंकड़ा उपलब्ध है। एक स्टेज शो में अमूमन एक लड़की को 1000 से 2500 रूपये तक उसकी सुंदरता व नृत्य पारंगता के आधार पर फीस मिलती है।

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