गांधी मैदान में नहीं होगी इंडिया गठबंधन की विशाल रैली, प्रशासन से नहीं मिली अनुमति, मार्च से होगा यात्रा का समापन
पटना। कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ का समापन राजधानी पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में एक विशाल रैली के साथ किया जाना प्रस्तावित था, लेकिन जिला प्रशासन की ओर से अब तक इसकी अनुमति नहीं दी गई है। प्रशासन की इस अनिर्णयात्मक स्थिति ने कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को असमंजस में डाल दिया है। हालांकि, कांग्रेस ने कार्यक्रम में बदलाव करते हुए वैकल्पिक योजना पर काम शुरू कर दिया है और अब रैली के बजाय यात्रा का समापन एक मार्च या रोड शो के रूप में करने की संभावना जताई जा रही है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस की बिहार इकाई ने इस संबंध में ‘प्लान बी’ तैयार करना शुरू कर दिया है। प्रदेश अध्यक्ष की ओर से नेताओं और कार्यकर्ताओं को मार्च की तैयारी करने के निर्देश दिए गए हैं। बताया जा रहा है कि कांग्रेस और महागठबंधन के सहयोगी दलों के बीच लगातार बैठकें हो रही हैं, ताकि अंतिम स्वरूप पर सहमति बनाई जा सके। कांग्रेस प्रवक्ता राजेश राठौर ने पुष्टि करते हुए कहा कि पार्टी की तैयारी बड़े पैमाने पर रैली के लिए ही थी, लेकिन प्रशासनिक अनुमति न मिलने के कारण विकल्पों पर विचार करना जरूरी हो गया है। उन्होंने कहा, “हो सकता है कि कार्यक्रम में थोड़ा फेरबदल करना पड़े, लेकिन इसका संदेश और मकसद वही रहेगा। हमारी कोशिश है कि जनता तक वही प्रभावी संदेश पहुंचे जिसके लिए यह यात्रा निकाली गई थी। राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ 17 अगस्त को रोहतास से शुरू हुई थी और यह अब तक बिहार के 22 जिलों में लगभग 1300 किलोमीटर की दूरी तय कर चुकी है। इस यात्रा का अंतिम पड़ाव 31 अगस्त को तय किया गया है, जिसके बाद इसका समापन पटना में होना था। कांग्रेस की योजना के मुताबिक, 30 अगस्त को छपरा और आरा में बड़े जनसंपर्क कार्यक्रम निर्धारित किए गए हैं, जबकि 1 सितंबर को गांधी मैदान में अंतिम रैली होनी थी। इस रैली की खासियत यह होने वाली थी कि इसमें कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा समेत कई राज्यों के मुख्यमंत्री और ‘इंडिया गठबंधन’ के अन्य दिग्गज नेता एक मंच पर दिखते। गांधी मैदान, जो लंबे समय से राजनीतिक आंदोलनों का केंद्र रहा है और जहां कई ऐतिहासिक सभाओं और आंदोलनों की गवाही मौजूद है, उसे लेकर प्रशासन द्वारा अनुमति लंबित रखना राजनीतिक हलकों में भी चर्चा का विषय बन गया है। विपक्षी दल जहां इसे सत्ता पक्ष के दबाव की वजह बता रहे हैं, वहीं प्रशासन की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि गांधी मैदान में रैली न होने से कांग्रेस और ‘इंडिया गठबंधन’ की रणनीति पर कुछ हद तक असर पड़ सकता है, क्योंकि इतने बड़े पैमाने पर नेताओं की मौजूदगी में पटना में शक्ति प्रदर्शन का इरादा साफ था। हालांकि, कांग्रेस द्वारा अब इसे मार्च या रोड शो के रूप में आयोजित किए जाने की संभावना जताकर यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि जनसंपर्क के इस अभियान का असर किसी भी हालत में कम नहीं होगा।विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि यदि महान रैली की जगह रोड शो होता है, तो कार्यकर्ताओं और नेताओं का जनता से सीधा संवाद अधिक सशक्त तरीके से सामने आ सकता है। यह आयोजन पटना की सड़कों पर शक्ति प्रदर्शन का रूप धारण कर सकता है, जिससे जनता के बीच इसकी दृश्यता और प्रभाव और भी बढ़ सकता है। इस पूरे घटनाक्रम को लेकर महागठबंधन के सहयोगी दलों में भी गहमागहमी है। वे चाहते हैं कि अंतिम अवसर पर कोई भ्रम की स्थिति न बने और सभी दल मिलकर जनता तक एकजुटता का संदेश दें। कुल मिलाकर, ‘इंडिया गठबंधन’ की बहुप्रतीक्षित गांधी मैदान रैली अब प्रशासनिक अनुमति न मिलने के कारण फिलहाल असमंजस में है। हालांकि कांग्रेस का कहना है कि कार्यक्रम के स्वरूप में चाहे बदलाव हो, लेकिन यात्रा का मकसद—मतदाता अधिकारों और लोकतंत्र की रक्षा के संदेश को बुलंद करना—ज्यों का त्यों रहेगा। अब देखना होगा कि 1 सितंबर को पटना की सड़कों पर गांधी मैदान की ऐतिहासिक रैली की जगह क्या नया स्वरूप सामने आता है और जनता इस संदेश को किस प्रकार से ग्रहण करती है।


