आरक्षण वृद्धि मामले में पटना हाईकोर्ट में सुनवाई टली, 4 मार्च को होगी अगली हियरिंग

पटना। बिहार की नीतीश सरकार द्वारा सरकारी नौकरियों में ओबीसी, ईबीसी, एसटी, एससी वर्गों को 65% आरक्षण दिए जाने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई पटना हाईकोर्ट टल गई है। अब इस मामले पर 4 मार्च को दोबारा सुनवाई होगी। दरअसल राज्य सरकार द्वारा नवंबर 2023 को पारित कानून को याचिका चुनौती दी गई थी। जिसमें अनुसूचित जाति, अनसूचित जनजाति, , ईबीसी व अन्य पिछड़े वर्गों को 65 फीसदी आरक्षण दिया गया है, जबकि सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों के लिए 35 फीसदी ही पदों पर सरकारी सेवा में दी जा सकती है। जिसके खिलाफ पटना हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। बिहार में नई आरक्षण नीति के मुताबिक आरक्षित वर्ग के लिए 65 फीसदी की सीमा निर्धारित की गई है। उसमें 20 फीसदी अनुसूचित जातियां, 2 फीसदी अनुसूचित जन-जातियां, 25 फीसदी अत्यंत पिछड़ा वर्ग और 18 फीसदी पिछड़ा वर्ग के लिए रखा गया है। इसके अलावा 35 फीसदी कोटा सामान्य या अनारक्षित वर्ग के लोगों के लिए निर्धारित किया गया है। इसी में 10 फीसदी कोटा सामान्य वर्ग के ही आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए तय है। जिसके खिलाफ पटना हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। सिविल सोसाइटी के सदस्यों ने बिहार में 75 फीसदी आरक्षण को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। और बताया कि आरक्षण में जो नियम है वो तर्कसंगत नहीं है। 50 से आरक्षण 75 फीसदी आरक्षण लागू करना वाजिफ नहीं है। और इसकी समीक्षा होनी चाहिए। वहीं इससे पहले नीतीश सरकार ने विधानमंडल के शीतलाकालीन सत्र से इस विधेयक को पारित कराकर लागू करने की घोषणा की थी। राज्यपाल के स्तर से अंतिम रूप से अनुमति मिलने के बाद यह सूबे में तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है। इसमें 65 फीसदी कोटा सभी तरह के आरक्षित वर्ग और 35 फीसदी कोटा अनारक्षित वर्ग के लिए निर्धारित कर दिया गया है। अनारक्षित वर्ग के 35 फीसदी कोटा में 10 फीसदी सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए निर्धारित है। इस तरह राज्य में सभी तरह के आरक्षण के दायरे को देखें, तो यह 60 फीसदी से बढ़कर 75 फीसदी हो गया है।

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