आवारा कुत्तों के मामले में सुप्रीम कोर्ट में फिर हुई सुनवाई, शीर्ष अदालत ने शेल्टर होम भेजने पर फैसला रखा सुरक्षित
नई दिल्ली। देशभर में आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या और उनसे जुड़े खतरों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हाल ही में फिर सुनवाई हुई। मामला इस बात पर केंद्रित है कि क्या इन कुत्तों को सड़कों से हटाकर शेल्टर होम में रखा जाए। इस मुद्दे पर समाज में तीखी बहस चल रही है—कुछ लोग इसे आवश्यक और जनहित में उठाया गया कदम मानते हैं, जबकि कई लोग इसे पशु अधिकारों और व्यावहारिक चुनौतियों के खिलाफ बताते हैं। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी दलील में कहा कि वे स्वयं पशु-प्रेमी हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि आवारा कुत्तों के कारण बच्चों की जान जा रही है। उन्होंने आंकड़ों के साथ स्थिति की गंभीरता बताते हुए कहा कि वर्ष 2024 में ही कुत्तों के काटने के 37 लाख मामले दर्ज हुए और रेबीज से 305 लोगों की मौत हुई। उनके अनुसार, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मॉडल के हिसाब से यह संख्या और भी अधिक हो सकती है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि केवल नसबंदी और टीकाकरण से रेबीज को पूरी तरह नहीं रोका जा सकता। उनके अनुसार, अब बच्चे घरों से बाहर खेलने से डरते हैं, और हर घर में कुत्ता पालना संभव नहीं है। उन्होंने कोर्ट के सामने ऐसे वीडियो प्रस्तुत किए जिनमें कुत्तों के हमलों के प्रमाण हैं। दूसरी ओर, वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट में इस आदेश पर आपत्ति जताई। वे ‘प्रोजेक्ट काइंडनेस’ की ओर से पेश हो रहे थे और उन्होंने कहा कि बिना नोटिस और स्वतः संज्ञान लेकर ऐसा आदेश देना उचित नहीं है। उन्होंने तर्क दिया कि आवारा कुत्तों को पकड़ने की प्रक्रिया तो शुरू हो चुकी है, लेकिन पर्याप्त शेल्टर होम उपलब्ध नहीं हैं। जहां शेल्टर मौजूद हैं, वहां भी जगह की भारी कमी है। उन्होंने कोर्ट से इस आदेश पर रोक लगाने की मांग की। अभिषेक मनु सिंघवी ने भी सॉलिसिटर जनरल की दलीलों पर सवाल उठाते हुए कहा कि समस्या का चित्रण जिस पैमाने पर किया जा रहा है, वैसी ढांचागत व्यवस्था देश में मौजूद नहीं है। उन्होंने SG मेहता पर पक्षपात का आरोप लगाया और संसद में दिए गए आधिकारिक आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि रेबीज से मौतों की संख्या उतनी नहीं है जितना दावा किया जा रहा है। सिंघवी के अनुसार, कुत्तों का काटना खतरनाक जरूर है, लेकिन डर का माहौल बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है।सुनवाई के दौरान जस्टिस नाथ ने दिल्ली सरकार से पूछा कि इस मुद्दे पर उनका रुख क्या है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या यह समस्या नगर निगम की निष्क्रियता का नतीजा है और जिम्मेदारी किसकी है। कोर्ट ने कहा कि फिलहाल कोई तत्काल आदेश नहीं दिया जाएगा। पहले स्थानीय अधिकारियों और याचिकाकर्ताओं से विस्तृत जवाब मांगा जाएगा। जस्टिस नाथ ने यह भी स्पष्ट किया कि जो भी पक्ष इस मामले में हस्तक्षेप कर रहा है, उसे अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से निभाना होगा। अंत में, सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल आदेश सुरक्षित रखते हुए कहा कि मामले के सभी पहलुओं पर विचार किया जाएगा और जल्द ही एक अंतरिम आदेश जारी किया जाएगा। यह मामला केवल कानून या व्यवस्था से जुड़ा नहीं है, बल्कि इसमें जनसुरक्षा, पशु अधिकार, प्रशासनिक क्षमता और मानवीय दृष्टिकोण—सभी के बीच संतुलन साधने की चुनौती है। आने वाला फैसला यह तय करेगा कि देश में आवारा कुत्तों के प्रबंधन की दिशा किस ओर जाएगी।


