आज ही के दिन इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए कानी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर कृष्ण ने इंद्र का घमंड किया था चूर चूर

तब से चली आ रही परंपरा गोवर्धन पूजा की धूम आज भी
मंदिरों में परोसे जा रहे छप्पन भोग
गायों की भी आज हो रही पूजा

फुलवारी शरीफ (अजीत यादव)। गौपालक आज गायों की पूजा यानी गोवर्धन पूजा के बाद ही अन्न जल ग्रहण करते हैं। गोवर्धन पूजा गोवर्धन पर्वत और श्रीकृष्ण को समर्पित है। गोवर्धन पूजा को लोक और मगही भाषा में गाय डाढ़ भी कहा जाता है। इस दिन विशेषकर यादव जाति के घरों में गायों को नहला धुलाकर खूब सजाया संवारा जाता है और गाय की पूजा करके आरती भी उतारी जाती है। रोड़ी और चंदन का तिलक लगाकर उन्हें विशेष आहार भी परोसा जाता है। ग्वालों के घरों में भी खीर पूरी समेत कई पकवान बनाये जाते हैं । इस दिन गोधन यानी गायों की पूजा भी की जाती है क्योंकि कृष्ण गायों को बहुत प्रेम करते थे। मान्यता है कि इस दिन गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा करने से भगवान कृष्ण प्रसन्न होते हैं। कहा जाता है कि जब कृष्ण अपनी बांसुरी बजाते तब सारी गायें बांसुरी की तान पर झूमने लगती थी। गोवर्धन पूजा मथुरा और वृंदावन में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।
आज से हजारों साल पहले आज ही के दिन इंद्र के प्रकोप से ब्रजवासियों को बचाने के लिए श्री कृष्ण ने अपना अलौकिक अवतार दिखाते हुए गोवर्धन पर्वत को अपनी हाथ की कानी उंगली पर उठाकर इंद्र के घमंड को चूर चूर किया था…तब से चली आ रही परंपरा गोवर्धन पूजा आज भी धूमधाम से मनाया जा रहा है। दिपावाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा का त्योहार की हर ओर धूम मची है। गांवों से लेकर शहर के तमाम मंदिरों में गोवर्धन पूजा पर विशेष कार्यक्रम के आयोजन हो रहे हैं। मंदिरों में भगवान श्री कृष्ण को छप्पन भोग का प्रसाद अर्पित किया जा रहा है।

शास्त्रों में गोवर्धन पूजा मनाने को लेकर एक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार, इंद्र को अपनी शक्तियों पर बहुत अधिक घमंड हो गया। तब भगवान श्री कृष्ण ने उनके घमंड को तोड़ने के लिए एक लीला रची। एक दिन सभी ब्रजवासी और कृष्ण की माँ यशोदा एक पूजा की तैयारी कर रहे थे तो कृष्ण यशोदा मां से पूछने लगे, “मईया आप सब किसकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं?” तब माता ने उन्हें बताया कि वह इन्द्रदेव की पूजा की तैयारी कर रही हैं। फिर भगवान कृष्ण ने पूछा मईया हम सब इंद्र की पूजा क्यों करते है? तब मईया ने बताया कि इंद्र वर्षा करते हैं और उसी से हमें अन्न और हमारी गायों के लिए घास-चारा मिलता है। यह सुनकर कृष्ण जी ने तुरंत कहा मईया हमारी गाय तो अन्न गोवर्धन पर्वत पर चरती है, तो हमारे लिए वहीं पूजनीय होना चाहिए। इंद्र देव तो घमंडी हैं वह कभी दर्शन नहीं देते हैं। कृष्ण की बात मानते हुए सभी ब्रजवासियों ने इन्द्रदेव के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा की। इस पर क्रोधित होकर भगवान इंद्र ने मूसलाधार बारिश शुरू कर दी। वर्षा को बाढ़ का रूप लेते देख सभी ब्रज के निवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगें। तब कृष्ण जी ने वर्षा से लोगों की रक्षा करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी कानी अंगुली पर उठा लिया।
इसके बाद सभी गांववासियों ने अपनी गायों सहित पर्वत के नीचे शरण ली। इससे इंद्र देव और अधिक क्रोधित हो गए तथा वर्षा की गति और तेज कर दी। इन्द्र का अभिमान चूर करने के लिए तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियंत्रित करें और शेषनाग से मेंड़ बनाकर पर्वत की ओर पानी आने से रोकने के लिए कहा। इंद्र देव लगातार रात-दिन मूसलाधार वर्षा करते रहे। कृष्ण ने सात दिनों तक लगातार पर्वत को अपने हाथ पर उठाएं रखा। इतना समय बीत जाने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि कृष्ण कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं। तब वह ब्रह्मा जी के पास गए तब उन्हें ज्ञात हुआ कि श्रीकृष्ण कोई और नहीं स्वयं श्री हरि विष्णु के अवतार हैं। इतना सुनते ही वह श्री कृष्ण के पास जाकर उनसे क्षमा मांगने लगें। इसके बाद देवराज इन्द्र ने कृष्ण की पूजा की और उन्हें भोग लगाया। तभी से गोवर्धन पूजा की परंपरा कायम है।

About Post Author

You may have missed