PATNA : हिन्दी-संस्कृत ही नहीं तमिल-तेलगू की भी विदुषी थीं डॉ. मिथिलेश कुमारी

  • जयंती पर साहित्य सम्मेलन में चर्चित कवयित्री सुधा कुमारी जूही की पुस्तक ‘समंदर का शहर’ का हुआ लोकार्पण।

पटना(अजीत)। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद की निदेशक रहीं विश्रुत लेखिका डॉ. मिथिलेश कुमारी मिश्र हिन्दी और संस्कृत की ही नहीं, तमिल और तेलगू समेत अनेक दक्षिण-भारतीय भाषाओं की विदुषी लेखिका थीं। उन्हें पाली, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं का भी विशद ज्ञान था। एक तपस्विनी की भाँति उन्होंने साहित्य की साधना की। दक्षिण भारत में उनका बड़ा ही समादर था। आज बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती-सह-पुस्तक लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करता हुए सम्मेलन अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने यह विचार व्यक्त किए। उन्होंने आगे कहा कि कम वय में ही मिथिलेश जी को वैधव्य का दुःख झेलना पड़ा। किंतु जीवन के कठोर अनुभवों व पीड़ा से उन्होंने सृजन के उपकरण तैयार किए और साहित्य-देवता को ही अपना पति बना लिया। वो वैदुष्य और सारस्वत-साधना की एक भरी हुई गगरी थी। उनमें एक दिव्य सादगी थी। वही इस अवसर पर विशाखापत्तनम की सुप्रसिद्ध कवयित्री सुधा कुमारी ‘जूही’ की काव्य-पुस्तक ‘समंदर का शहर’ का लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि व राज्य उपभोक्ता संरक्षण आयोग, बिहार के अध्यक्ष न्यायमूर्ति संजय कुमार ने किया। उन्होंने जूही को, दक्षिण-भारत में उनकी हिन्दी-सेवा के लिए डॉ. मिथिलेश कुमारी मिश्र स्मृति सम्मान से भी विभूषित किया गया। अपने उद्गार में न्यायमूर्ति ने कहा कि साहित्य में जूही जी का मूल्यवान अवदान है। सम्मेलन के ऐतिहासिक सभागार में उनकी काव्य-कृति का लोकार्पण हुआ है, यह प्रसन्नता और गौरव की बात है। सम्मेलन की ओर से उनका सम्मान वस्तुतः इनके कार्यों का सम्मान है। आकाशवाणी के पूर्व सहायक निदेशक और कवि डॉ. किशोर सिन्हा, रंजना कर्ण, डॉ. पुष्पा जमुआर, कृष्ण वल्लभ लाल, डॉ. विनय कर्ण आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। वही इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। मशहूर शायरा तलत परवीन, वरिष्ठ कवि शंकर शरण मधुकर, कुमार अनुपम, सदानन्द प्रसाद, ई. अशोक कुमार, अरविंद अकेला, अर्जुन प्रसाद सिंह, डॉ. पंकज कुमार सिंह, कुंदन कुमार मल्लिक, संजू शरण, सागरिका राय, डॉ. प्रतिभा रानी, बिन्देश्वर प्रसाद आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी काव्य-रचनाओं का मधुर पाठ कर उत्सव को मधुमय बना दिया। वही मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन प्रो सुशील कुमार झा ने किया।

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