वाम दलों का राष्ट्रव्यापी विरोध सप्ताह: गहराते आर्थिक संकट को रोक पाने में मोदी सरकार असफल

* रोजगार व लोगों की आय बढ़ाने की बजाए कारपोरेट घरानों को बेल आउट पैकेज दे रही सरकार

पटना। देश में गहराते आर्थिक संकट, भयानक मंदी और अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्रों में गिरावट के खिलाफ वाम दलों के राष्ट्रव्यापी विरोध सप्ताह के तहत पूरे राज्य में प्रतिरोध कार्यक्रम आयोजित किए गए। राजधानी पटना में जीपीओ गोलबंर से बुद्धा स्मृति पार्क तक मार्च निकला और फिर वहां पर एक सभा भी आयोजित की गई। देशव्यापी विरोध सप्ताह का आयोजन देश के पांच प्रमुख वाम दलों माकपा, भाकपा, भाकपा-माले, आरएसपी व फारवर्ड ब्लॉक ने संयुक्त रूप से किया।
पटना में विरोध मार्च के उपरांत बुद्धा स्मृति पार्क में आयोजित प्रतिवाद सभा को माकपा के राज्य सचिव मंडल के सदस्य सर्वोदय शर्मा तथा सीपीआई के पटना जिला सचिव रामलला सिंह, भाकपा माले के राज्य कमिटी सदस्य रणविजय कुमार ने की। जबकि कार्यक्रम के अध्यक्ष मंडल में भाकपा-माले के वरिष्ठ नेता केडी यादव, माकपा के पटना जिला के सचिव मनोज चंद्रवंशी और भाकपा के वरिष्ठ नेता बृजनंदन सिंह शामिल थे। अध्यक्ष मंडल की ओर से संचालन माकपा के मनोज कुमार चंद्रवंशी ने की।
बुद्धा स्मृति पार्क में प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए वाम नेताओं ने कहा कि आज अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्रों में गिरावट है। यहां तक की चाय-बिस्कुट पसंद करने वाले देश में बिस्कुट तक की बिक्री में गिरावट दर्ज की जा रही है। लेकिन मोदी सरकार रोजगार बढ़ाने के बजाए उलटे कारपोरेट घरानों को बेल आउट पैकेज देने का काम कर रही है। रिजर्व बैंक के आरक्षित कोष से लिए गए 1.76 लाख करोड़ रुपये का इस्तेमाल सार्वजनिक निवेश के कार्यक्रमों में नहीं किया जा रहा है। इसका इस्तेमाल नोटबंदी व जीएसटी के कारण 1।70 लाख करोड़ रुपये के हुए नुकसान की भरपाई में किया जा रहा है।
वाम नेताओं ने कहा कि मंदी के कारण हजारों लोगों की नौकरियां खत्म हो गई हैं। इसके लिए पूरी तरह से सरकार की कारपोरेटपरस्त नीतियां जवाबदेह है। लेकिन यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार अभी भी उन्हीं नीतियों को बढ़ावा दे रही है और आम लोगों की आय बढ़ाने के बारे में कुछ भी नहीं सोच रही है। सरकार बढ़ती बेरोजगारी, अर्धबेरोजगारी, कम मजदूरी व गहराते कृषि संकट को लगातार नजरअंदाज कर रही है। बुनियादी समस्याओं को हल करने की बजाए भाजपा की सरकार इन समस्याओं से जनता का ध्यान भटकाने के लिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को लगातार गहरा बनाने की कोशिश में ही है। आज पूरे देश में मॉब लिंचिंग की बाढ़ सी आ गई है। बिहार में भी हाल के दिनों में इस तरह की घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि हुई है। जहानाबाद में विगत 10-11 अक्टूबर को हुए सांप्रदायिक उन्माद की घटना इसका ज्वलंत उदाहरण है। जिसमें लगभग 200 अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की दुकानें लूट ली गईं। यह बेहद शर्मनाक है कि एक ओर जहां लोग आर्थिक मंदी की मार झेल रहे हैं, उसे हल करने की बजाए भाजपा-आरएसएस के लोग दंगा-उन्माद भड़काने में लगे हुए हैं। वाम दलों ने आज के प्रतिवाद कार्यक्रम से सार्वजनिक निवेश को बढ़ाने, नौजवानों को बेरोजगारी भत्ता देने, न्यूनतम मजदूरी 18 हजार करने, काम से हटा दिए गए मजदूरों के लिए मासिक निर्वाह योग्य मजदूरी की गारंटी करने, सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण पर रोक, प्रतिरक्षा व कोयला क्षेत्रों में 100 प्रतिशत एफडीआई को वापस लेने, बीएसएनएल-भारतीय रेल-विमान सेवा के निजीकरण पर रोक; मनरेगा में आवंटन को बढ़ाने, पिछले बकाए का भुगतान, 200 दिन काम मुहैया कराने, किसानों को एकमुश्त कर्ज उपलब्ध करवाने, बढ़ती किसान आत्महत्याओं पर रोक लगाने, लागत कीमत के डेढ़ गुणा न्यूनतम समर्थन मूल्य देने, वृद्धावस्था पेंशन/विधवा पेंशन की राशि 3 हजार रु प्रति माह करने आदि सवालों को उठाया और मोदी सरकार से इस पर तत्काल कार्रवाई की मांग की। प्रदर्शनकारियों ने बिहार में बाढ-सुखाड़ व जलजमाव के स्थायी समाधान की भी मांग की। कहा कि इस बार के पटना के जलजमाव ने बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन की पोल खोल कर रख दी। जलजमाव पीड़ितों की सूची बनाकर सरकार सबको मुआवजा प्रदान करे।

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