आप नेता मनीष सिसोदिया को सुप्रीम कोर्ट ने दी जमानत, 17 महीने बाद जेल से आएंगे बाहर
नई दिल्ली। दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी है। सिसोदिया 17 महीने बाद जेल से बाहर आएंगे। सिसोदिया को 10 लाख रुपए का बॉन्ड भरना होगा। सिसोदिया ने दिल्ली हाईकोर्ट की तरफ से जमानत याचिका खारिज किए जाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने शराब नीति में कथित अनियमितताओं के मामलों में उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी। मामले की पिछली सुनवाई 29 जुलाई को हुई थी, जिसमें ईडी ने जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए समय मांगा। इसके बाद जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने सुनवाई स्थगित कर दी। ईडी की तरफ से सिसोदिया की याचिकाओं पर सुनवाई होने पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 4 जून के आदेश ने सिसोदिया को केवल ट्रायल कोर्ट में नई जमानत याचिका दायर करने का अधिकार दिया गया है, न कि सुप्रीम कोर्ट में। सिसोदिया को पिछले साल 26 फरवरी को ने और 9 मार्च को ईडी ने गिरफ्तार किया था। उन्होंने 28 फरवरी 2023 को दिल्ली कैबिनेट से इस्तीफा दिया था। वे फिलहाल तिहाड़ जेल में हैं। ईडी केस में 3 जुलाई को दिल्ली की एक अदालत ने सिसोदिया की न्यायिक हिरासत 25 जुलाई तक बढ़ा दी थी। सीबीआई केस में सिसोदिया 31 जुलाई तक न्यायिक हिरासत में हैं।
मनीष सिसोदिया पर 16 महीने से हिरासत में
सिसोदिया ने अपनी याचिका में कहा है कि 2023 अक्टूबर से उनके खिलाफ मुकदमे में कोई प्रोग्रेस नहीं हुई है। इसलिए दिल्ली आबकारी मामलों में जमानत की मांग वाली पिछली याचिका पर फिर से विचार किया जाना चाहिए। इससे पहले 11 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में मनीष सिसोदिया की जमानत की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई से ठीक पहले जस्टिस संजय कुमार ने बेंच से खुद को अलग कर लिया था, जिसके बाद सुनवाई टल गई थी। ट्रायल कोर्ट, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी मनीष सिसोदिया की जमानत याचिकाएं कई बार खारिज हो चुकी हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 4 जून को जमानत से इनकार किया था
ट्रायल कोर्ट ने 30 अप्रैल को सिसोदिया की जमानत याचिका फिर से खारिज कर दी थी। इस फैसले के खिलाफ सिसोदिया हाईकोर्ट पहुंचे थे। 21 मई को हाईकोर्ट ने सिसोदिया को जमानत देने से इनकार कर दिया। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। सुप्रीम कोर्ट ने 4 जून को सिसोदिया की जमानत याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था। इसके बाद सिसोदिया ने इस पर दोबारा विचार करने को लेकर याचिका लगाई थी। 11 जुलाई को जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संजय कुमार की बेंच सुनवाई करने वाली थी। हालांकि, जैसे ही मामला सुनवाई के लिए रखा गया, जस्टिस खन्ना ने कहा, ‘हमारे भाई (जस्टिस संजय कुमार) को कुछ दिक्कत है। वह निजी कारणों के चलते इस मामले की सुनवाई नहीं करना चाहते।’ जस्टिस संजय कुमार ने मामले से खुद को अलग कर लिया था। नवंबर 2021 को नई शराब नीति लागू हुईदिल्ली के तत्कालीन डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने 22 मार्च 2021 को नई शराब नीति का ऐलान किया। उन्होंने कहा कि इस नीति से शराब की दुकानें निजी हाथों में चली जाएंगी। सिसोदिया से जब नई नीति लाने का मकसद पूछा गया तो उन्होंने दो तर्क दिए। पहला- माफिया राज खत्म होगा। दूसरा- सरकारी खजाना बढ़ेगा। 17 नवंबर 2021 को नई शराब नीति 2021-22 लागू कर दी गई। इससे शराब कारोबार से सरकार से बाहर हो गई और ये बिजनेस निजी हाथों में चला गया। कई बड़े डिस्काउंट देने से शराब की जमकर बिक्री हुई। इससे सरकारी खजाना तो बढ़ा, लेकिन इस नई नीति का विरोध होने लगा।
जुलाई 2022 में शराब नीति में घोटाले का आरोप लगा
8 जुलाई 2022 को दिल्ली के मुख्य सचिव नरेश कुमार ने नई शराब नीति में घोटाला होने का आरोप लगाया। उन्होंने इससे जुड़ी एक रिपोर्ट एलजी वीके सक्सेना को रिपोर्ट सौंपी। इसमें बताया गया कि सिसोदिया ने लाइसेंसधारी शराब कारोबारियों को अनुचित लाभ पहुंचाया। उधर, एलजी ने भी कहा है कि उनकी और कैबिनेट की मंजूरी के बिना ही शराब नीति में बदलाव कर दिए।
जुलाई 2022 सरकार ने नई नीति को रद्द किया
विवाद बढ़ता देख 28 जुलाई 2022 को दिल्ली सरकार ने नई शराब नीति को रद्द कर दिया। फिर से पुरानी नीति लागू करने का फैसला लिया। 31 जुलाई को सरकार ने कैबिनेट नोट में बताया कि शराब की ज्यादा बिक्री के बाद भी सरकार की कमाई कम हुई, क्योंकि खुदरा और थोक कारोबारी शराब के धंधे से हट रहे थे।


