बिहार में भाजपा-जेडीयू का “जमाई राज”: कांग्रेस

  • बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष राजेश राम, विधान सभा में दल के नेता डॉ शकील अहमद खान और विधान परिषद में दल के नेता डॉ मदन मोहन झा ने जारी किया संयुक्त बयान

पटना। बिहार सरकार की हालिया नियुक्तियाँ इस बात का संकेत हैं कि “अंधा बाँटे रेवड़ी और अपने-अपने को दे।” मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार ने अनुसूचित जाति आयोग, महिला आयोग और धार्मिक न्यास बोर्ड जैसे संवैधानिक और अर्ध-स्वायत्त संस्थानों में नेताओं के दामादों और अधिकारियों की पत्नियों को महत्वपूर्ण पद सौंपे हैं, जिससे भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी भाजपा-जेडीयू की सत्ता अब भाई-भतीजावाद की चाशनी में भी गोते लगा रही है। ये बयान बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष राजेश राम, विधान सभा में दल के नेता डॉ शकील अहमद खान और विधान परिषद में दल के नेता डॉ मदन मोहन झा ने संयुक्त रूप से जारी किया।
बिहार कांगड़े के प्रमुख नेताओं ने जारी किए गए अपने संयुक्त बयान में कहा कि;
दामादों” की ताजपोशी
देवेंद्र मांझी: उपाध्यक्ष, अनुसूचित जाति आयोग
केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी के दामाद। पूर्व में निजी सहायक व HAM के महासचिव। 2020 में मखदूमपुर से विधानसभा चुनाव हार चुके हैं।
मांझी के सात बेटों-बेटियों में कई राजनीति में सक्रिय हैं — उनके बेटे संतोष सुमन बिहार सरकार में मंत्री हैं, बहू डीपा सुमन इमामगंज से विधायक हैं, और डीपा की मां, ज्योति देवी, बराचट्टी की विधायक हैं।
देवेंद्र मांझी 2014 में पहली बार सुर्खियों में आए थे जब उस समय के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने उन्हें अपना निजी सहायक नियुक्त किया था, जबकि अन्य रिश्तेदार सत्येंद्र कुमार को एक क्लर्क बनाया गया था।
मृणाल पासवान – अध्यक्ष, अनुसूचित जाति आयोग
रामविलास पासवान जी के दामाद और चिराग पासवान के भांजे (रामविलास पासवान की पहली पत्नी की बेटी के पति)। 2020 में राजापाकर से हारने के बावजूद उच्च पद पर नियुक्त।
सायान कुणाल – सदस्य, धार्मिक न्यास बोर्ड
अशोक चौधरी के दामाद। उनकी पत्नी शांभवी चौधरी 2024 में लोकसभा सांसद बनीं।
महिला आयोग की “गोपनीय” नियुक्ति
मुख्य सचिव दीपक कुमार सिंह की पत्नी वैशाखी रश्मि रेखा सिंह को राज्य महिला आयोग का सदस्य नियुक्त किया गया। दिलचस्प बात यह है कि 7 जून की अधिसूचना गोपनीय तरीके से की गई।
संवैधानिक संस्थाओं की निष्पक्षता पर खतरा
यह स्पष्ट है कि भाजपा-जेडीयू सरकार द्वारा की जा रही इन नियुक्तियों से न केवल भाई-भतीजावाद को बढ़ावा दिया जा रहा है, बल्कि संविधान द्वारा स्थापित संस्थाओं की स्वायत्तता और निष्पक्षता पर भी प्रश्नचिह्न लग रहे हैं। अनुसूचित जाति आयोग और महिला आयोग जैसी संस्थाएँ कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाई गई थीं, न कि सत्ताधारी नेताओं के पारिवारिक हित साधने के लिए। जब इन पदों पर अनुभव, योग्यता और स्वतंत्र दृष्टिकोण रखने वाले लोगों के बजाय राजनीतिक रिश्तेदारों को बिठाया जाएगा, तो संस्थाओं की विश्वसनीयता समाप्त हो जाएगी।
लोकतंत्र की आत्मा पर आघात
लोकतंत्र केवल चुनाव जीतने का नाम नहीं है। लोकतंत्र का मतलब है संस्थाओं की जवाबदेही, पारदर्शिता, और आमजन के हित में कार्य करना। जब सत्ता में बैठे लोग अपने नजदीकी लोगों को बगैर प्रक्रिया और योग्यता के नियुक्त करते हैं, तो यह संविधान की आत्मा के साथ विश्वासघात है।.नीतीश सरकार की इन नियुक्तियों पर काका हाथरसी की यह प्रसिद्ध पंक्तियाँ एक बार फिर प्रासंगिक हो गई हैं:
जनता सब देख रही है
बिहार की जनता अब समझ चुकी है कि यह सरकार “सुशासन” के नाम पर “संपत्ति बाँट योजना” चला रही है – जिसमें पद और प्रतिष्ठा, परिवार और पहचान के आधार पर बंट रहे हैं। आने वाले चुनावों में जनता इस भाई-भतीजावादी नीति का करारा जवाब देगी।

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