तेजस्वी,चिराग,राहुल और सुमित ये यूथ लीडर्स बदलेंगे बिहार की राजनीति को

पटना(बन बिहारी)।बिहार की राजनीति में युवाओं ने अब कमान संभालना शुरू कर दिया है। प्रदेश की राजनीति अब नए सिरे से करवट लेती दिख रही है। पुरानी पीढ़ी के नेताओं,जो अब तक राजनीति के ‘आधार स्तंभ’ में बने हुए हैं,के प्रभाव क्षेत्र से निकल कर राजनीति की इबारत अब नए युवा तुर्कों को गढ़ रही है।प्रदेश में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव हैं। जब विपक्ष की बागडोर युवा के हाथ में होगी तो निश्चित है कि प्रदेश के अन्य वर्ग-क्षेत्रों में भी युवा राजनेताओं का मोर्चा खुद-ब-खुद संगठित हो जाएगा।सत्तर के दशक के दौरान राजनीति में युवाओं की एक पीढ़ी ने करवट लिया था।जिसमें प्रमुख रूप से लालूप्रसाद,नीतीश कुमार, रामविलास पासवान,नरेंद्र सिंह,शिवानंद तिवारी, डॉ जगदीश शर्मा तथा सुशील मोदी जैसे नेता उभरकर सामने आए थे। आज तक बिहार की राजनीति इन्हीं चेहरों के ही इर्द-गिर्द घूमती रही है। जातीय समीकरणों के हिसाब से कोई नेता पूरे राज्य में तो कोई क्षेत्र विशेष तक अपनी राजनीतिक धाक जमाने में सफल रहे।अब प्रदेश की राजनीति में युवाओं ने पुनः करवट लेना आरंभ कर दिया है। 25 से 35 वर्ष तक के राजनीतिक रूप से सक्रिय नेताओं पर दृष्टि डाली जाए तो नेता प्रतिपक्ष उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव,सांसद चिराग पासवान,पूर्व विधायक राहुल कुमार तथा पूर्व विधायक सुमित सिंह जैसे युवा चेहरों पर नई पीढ़ी आस लगाए दिखती है।

तेजस्वी यादव,बिहार के दो-दो पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद तथा राबड़ी देवी के पुत्र हैं।2015 में पहली बार राघोपुर से चुनाव जीतकर विधायक बने तथा नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में बतौर उपमुख्यमंत्री शामिल हुए।किन्ही कारणों से जदयू-राजद गठबंधन टूट गया तो नेता प्रतिपक्ष बन गए। कम उम्र तथा अनुभव के बावजूद विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी बेहतर रूप से संभाल रहे हैं।दिल्ली तक तेजस्वी के भाषणों की गूंज पहुंचती है। राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष इन के साथ या उपस्थिति को महत्व देता है।कम उम्र के बावजूद,जबकी लालू प्रसाद चारा घोटाले में सजायाफ्ता होकर जेल में है,इन्होंने पार्टी और विपक्ष की राजनीति की कमान बखूबी संभाल रखा है।समीक्षकों के अनुसार तेजस्वी की बढ़ती राजनीतिक सक्रियता के कारण लोकप्रियता भी ‘स्थायित्व’ की ओर बढ़ती जा रही है।

युवा राजनीति के परिदृश्य में दूसरे महत्वपूर्ण चेहरे लोजपा सुप्रीमो केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान हैं।अभी जमुई से सांसद हैं,साथ ही लोजपा संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष भी। अपने पिता द्वारा खड़ी की गई पार्टी को और विस्तारित कर मजबूत करने में बेहद जी-जान से जुटे रहते हैं। 2014 के आम चुनाव में लोजपा को राजग का हिस्सा बनने से लेकर बिहार में महागठबंधन की सरकार के जाने तथा जदयू के फिर से भाजपा के साथ आने के बाद जदयू से राजनीतिक तालमेल बिठाने में अपने सफल रणनीति का परिचय देकर चिराग ने भी अपनी परिपक्व राजनीतिक कौशल का परिचय दिया है।पार्टी के लिए रणनीति के निर्माण से लेकर प्रत्याशियों की चयन में चिराग की भूमिका अहम होती है।

युवा राजनीति के परिदृश्य में बिहार में उभरते चेहरों में जहानाबाद जिले के घोषी विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक राहुल कुमार का चेहरा भी खास स्थान रखता है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के साथ इनकी समानता यह है कि तेजस्वी यादव के पिता लालू प्रसाद के साथ राहुल के पिता डॉ जगदीश शर्मा भी चारा घोटाले के मामले में सजायाफ्ता हैं। बावजूद इसके ना तो तेजस्वी के राजनीतिक रफ्तार पर कोई असर पड़ा है ना ही राहुल के।डॉ जगदीश शर्मा 1977 से लेकर 2009 तक लगातार घोषी के विधायक रहे।2009 में जदयू से जहानाबाद के सांसद बनने के बाद उपचुनाव में उनकी पत्नी शांति शर्मा तथा 2010 के चुनाव में पुत्र राहुल ने घोषी से विजयी पताका लहराया।1996 में चारा घोटाले के आरोपित होने के बाद भी राजनीतिक वर्चस्व कम नहीं हुआ। राहुल कुमार 2015 में भले ही चुनाव हार गए हो।मगर मगध की राजनीति में युवाओं के लिए ‘कर्णधार’ सरीखे माने जाते हैं। सिर्फ घोषी ही नहीं बल्कि पूरे मगध के स्वजातीय भूमिहार समेत अन्य वर्गों के युवाओं में भी काफी लोकप्रिय हैं।देश के शीर्षतम संस्थान से मैनेजमेंट डिग्री लेने के बाद राजनीतिक कदमताल शुरू करने वाले राहुल के बारे में युवाओं का कहना है कि इस दौर में ‘पॉजिटिव पॉलिटिक्स’ के लिए राहुल एक मजबूत उदाहरण है यही इनकी राजनीतिक पूंजी भी मानी जाती है।

प्रदेश के युवा राजनीति में क्षेत्र के उभरते युवा नायक हैं चकाई के पूर्व विधायक सुमित कुमार सिंह। राजनीति इन्हें भी विरासत में मिली जरूर है मगर अपनी शर्तों पर राजनीति कर उन्होंने युवाओं के लिए एक मिसाल पेश किया है।इनके दादा स्व श्री कृष्ण सिंह अपने समय के बहुत बड़े समाजवादी नेता थे।कई बार विधायक सांसद तथा मंत्री भी रहे। पिता नरेंद्र सिंह 1974 के आंदोलन के प्रमुख नामों में से एक रहे हैं। लालू प्रसाद और नीतीश कुमार दोनों के मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। साथ ही जमुई एवं चकाई दोनों विधानसभा क्षेत्र से एक साथ 2000 में चुनाव जीत चुके हैं। सुमित सिंह पहली बार 2010 में झामुमो के टिकट पर जदयू भाजपा से अलग लड़कर चकाई से चुनाव जीतकर विधायक बने।2015 में बदले हुए राजनीतिक समीकरण में चुनाव हार गए। मगर निर्दलीय लड़कर भी दूसरे स्थान पर रहे। क्षेत्र के सभी जिलों भागलपुर,मुंगेर जमुई तथा बांका आदि के युवाओं में बेहद लोकप्रिय हैं।चुनाव हारने के बाद भी जीते हुए विधायकों की तुलना में कहीं ज्यादा सक्रिय रहते हैं।युवाओं के लिए अगर कुछ करना हो तो ना क्षेत्र की सरहद दिखती है ना ही पार्टी की रेखा। अभी हाल ही में प्रदेश के मुख्यमंत्री ने जमुई की राजनीति में चिराग की जीत के लिए सुमित सिंह को बुलाकर चिराग से मतभेद दूर करने को कहा था। खबर बड़ी चर्चा में भी आई थी। अपने स्वजातीय राजपूतों के अलावा अन्य वर्ग के युवाओं में भी सुमित के लिए बेहतर आकर्षण दिखता है। समूचे अंग क्षेत्र में ‘अंगरक्षक’ रूप में जाने जाने वाले पूर्व विधायक सुमित सिंह अपने क्षेत्र तथा आसपास के क्षेत्रों में भी आम जनता के दुख दर्द में हमेशा भागीदार बने रहते हैं।क्षेत्र में जनता की समस्याओं का ऑन द स्पॉट निदान करना इनकी राजनीतिक विशेषता है।इस कारण से आम जनता भी पार्टी लाइन से ऊपर उठकर इन्हें अपने युवा रहनुमा के तौर पर स्वीकार कर चुकी हैं।

परिवर्तन प्रकृति का नियम है।आज जो वर्तमान है,जाहिर तौर पर कल भूत में तब्दील होंगे।आज जनता जिनमें राजनीतिक भविष्य टटोल रही है कल वे युवा ही राजनीति के धरातल का यथार्थ बनेंगे।

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