क्या खत्म हो गया है सुशासन का बुलंद ‘इकबाल’ या ‘भोथर’ हो गये हैं सुशासन के इरादे… पढ़िए विशेष रिपोर्ट

पटना (संतोष कुमार)। बिहार के प्रसिद्ध व्यवसायी व पटना स्थित मगध हास्पीटल के मालिक गोपाल खेमका के छोटे बेटे गुंजन खेमका की हाजीपुर के आद्योगिक थाना क्षेत्र में उनके फैक्ट्री के पास दिनदहाड़े गोली मार कर अपराधियों ने हत्या कर सुशासन को खुला चैलेंज कर डाला है। वहीं इस हत्या की वारदात से बिहार में समाज का हर वर्ग अपने आप को असुरक्षित महसूस करने लगा है। इस जघन्य वारदात के बाद लोग नीतीश सरकार से पूछ रहे हैं कि क्या नीतीश जी इसे ही सुशासन कहते हैं। एक 2005 का दौर था जब अपराधी ही खुद को असुरक्षित महसूस कर राज्य बदर होने को मजबूर हो गए थे तो कई भूमिगत होने में ही खुद की भलाई समक्षे। वहीं एक आज का दौर है जब पूरे बिहार में अपराधियों की समानांतर सरकार चल रही है। अपराधी जहां मन वहां लोगों को टपका दे रहे हैं। वहीं बिहार पुलिस की एक ही पढा-पढाया रट, कार्रवाई जारी है। आखिर बिहार पुलिस का वो जोश व जुनून क्यों नहीं दिखता, जब पुलिस का नाम सुनते ही अपराधी अपने मांद में घुसने को मजबूर हो जाते थे। खैर, इस हत्याकांड से नीतीश सरकार के सुशासन राज को कठघरे में खड़ा कर दिया है। उक्त दोनों पार्टियों के वरीय नेता इस मामले पर पूरी तरह चुप्पी साधे हैं। खासकर भाजपा के वरीय नेताओं को तो इस मामलें पर खुलकर बोलना चाहिए, आखिर एक छोटी सी वारदात पर ताबड़तोड़ बयान देने व तुरंत सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन करने  वाली भाजपा ने अपने पार्टी के मजबूत व युवा सिपाही को खोया है। यहां तक की मृतक उपमुख्यमंत्री के करीबी रिश्तेदार भी हैं।
वर्ष 2005-2010 तक था सुशासन का राज: वर्ष 2005 में जब बिहार में नीतीश की सरकार आयी थी, तब उन्होंने अपराधियों पर पूर्ण रूप से नकेल कसने के लिए पुलिस को खुली छुट दे रखी थी। लॉ एंड आर्डर से किसी तरह की समझौता नहीं होने के कारण और ताबड़तोड़ अपराधियों को सीखचों के भीतर भेजने की बिहार पुलिस की कार्रवाई से अपराध जगत में भगदड़ मच गई थी। अपराधी या तो बिहार छोड़ने को मजबूर हो गए थे या भुमिगत हो गए थे। जिससे बिहार के गलियों में सुशासन का राज स्पष्ट रूप से झलकता था। बिहार की बहू-बेटियां देर शाम तक सड़कों पर चहमकदमी करती दिखती थी, परंतु वह दौर अब कलांतर में जाता दिख रहा है। अपराधी बिहार पुलिस को चैलेंज कर अपराधिक वारदातों को खुलेआम अंजाम दे रहे हैं।
वर्ष 2010 से सुशासन का राज पटरी से उतरना हुआ शुरू: जब 2010 में दूसरी बार बिहार में भाजपा-जदयू की सरकार बनी तो अपराधियों ने इसी कार्यकाल के दौरान बिहार में अपराधियों ने एके 47 से बड़ा हत्याकांड को अंजाम देकर पटना पुलिस को खुली चुनौती दी थी। लोजपा नेता बृजनाथी हत्याकांड को अंजाम देने के लिए वर्षाें से मांद में छुपे अपराधियों ने अत्याधुनिक हथियार से फतुहा के पास इस हत्याकांड को अंजाम दिया था। अपराधियों ने बृजनाथी को मारने के लिए एके 47 की सारी मैगजीन सीने में उतार दी थी, जिसमें उनके भाभी भी बुरी तरह घायल हो गई थी। यहीं वो दौर था, जब धीरे-धीरे अपराधियों ने पुन: बिहार में सर उठाना शुरू कर दिया था। इस कार्यकाल के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा से वर्षाें पुराना गठबंधन तोड़ कर राजद से हाथ मिलाया और पुन: राज्य में जदयू-राजद की सरकार का आगमन हुआ। इस दौर में कुछ समय के लिए अपराधी शांतचित्त रहे और गुजरते समय के साथ अपराधी उठे और ताबड़तोड़ अपराधिक घटनाओं को अंजाम देकर सुशासन को खुली चुनौती देना शुरू किया। जो आज तक बदस्तूर जारी है।
वर्ष 2015 का दौर: बिहार में ताबड़तोड़ घटते अपराधिक वारदातों के बीच 2015 में तीसरी बार नीतीश सरकार का गठन हुआ। जदयू-राजद ने मिलकर बिहार में सरकार बनायी, लेकिन इस दौरान प्रदेश में घटते अपराधिक वारदातों के बीच विपक्ष नीतीश सरकार पर ताबड़तोड़ हमले कर रही थी और नीतीश कुमार भी अपराधिक वारदातों को लेकर काफी चिंतित थे। इसी बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अचानक बड़ा फैसला लिया और राजद से अलग होने की घोषणा कर दी। राजद से अलग होने के घोषणा के कुछ ही देर में नीतीश कुमार ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप कर भाजपा के साथ पुन: गठबंधन कर सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया। इस तरह राज्य में फिर से भाजपा-जदयू गठबंधन सरकार का पर्दापण हुआ, जो जारी है।
अपराधियों ने बदला मर्डर करने का ट्रेंड: हाल के महीनों में नजर डाले तो अपराधियों ने बड़ी घटनाओं को अंजाम देने के लिए अलग ट्रेंड अपना लिया है। राज्य में अब अपराधी छोटे नहीं बल्कि अत्याधुनिक हथियारों और महंगे हथियारों को तवज्जों देने लगे हैं। मुजफफरपुर में पूर्व मेयर समीर हत्याकांड को अंजाम देने में अपराधियों ने एक-47 जैसे अत्याधुनिक हथियारों का इस्तेमाल किया था और कल पटना के बड़े व्यवसायी गुंतन खेमका को मारने के लिए अपराधियों ने पिस्टल जैसे हथियार को इस्तेमाल किया यानि अपराधी किसी को मारने के लिए वैसे हथियार का इस्तेमाल कर रहे, जिसमें कम से कम आधा दर्जन गोलियां समाती हो, मतलब साफ है अपराधी मारने के लिए कोई गोली खाली नहीं जाने देना चाहते हैं।

बहरहाल, बिहार में सुशासन का इकबाल खत्म होता नजर आ रहा है। पुलिस में वो जोश व जुनून की दरकार है, जो कभी बिहारवासी महसूस करते थे। नीतीश सरकार के समक्ष सुशासन राज की चुनौती मुंह बाए खड़ी है। अब देखना है कि नीतीश सरकार अपराधियों से मिल रही ताबड़तोड़ चुनौती का सामना करने में सफल होती है या असफल।

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