सुमित सिंह की अपील: आरक्षित वर्ग के सबल, समर्थ लोग स्वेच्छा से करें आरक्षण का परित्याग

पटना। जदयू नेता सुमित कुमार सिंह ने प्रेस बयान जारी कर कहा है कि अगर लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान का पोता कल आरक्षण का लाभ लेगा तो क्या वह हमारे समाजसेवी शंकर पासवान जी, टेटू रविदास जी, रामेश्वर रजक जी के बच्चों को आरक्षण का लाभ मिलने में बाधक नहीं बनेगा? मैं यही सवाल उठा रहा हूं कि दलित समाज को 14%आरक्षण है। अगर आरक्षण से सबल समर्थ बने लोग ही बारबार लाभ लेंगे तो नितांत गरीब मजदूरी कर जीवन यापन करने वाले भुअर मांझी जी, दीनू राम जी के बच्चों का नंबर कब आएगा? इसलिए विनम्र निवेदन है कि आरक्षित वर्ग के सबल, समर्थ लोग स्वेच्छा अपने आरक्षण के हक का परित्याग करें, अपने ही समुदाय के वंचितों को उसका लाभ लेने दें!आरक्षण का मकसद पिछड़े-दलित, वंचित समुदाय के लोगों को सबल, समर्थ बना सम्मान दिलाना। 66 वर्षों से दलित-आदिवासी समुदाय और 27 वर्षों से पिछड़े वर्ग को आरक्षण की सुविधा मिली हुई है। सवाल यह है कि कितने पिछड़े,दलित, आदिवासी समुदाय के आरक्षण के लाभार्थी सबल, समर्थ बने। उनमें से कितने लोगों ने खुद से कहा कि, “उन्हें आरक्षण का बहुत लाभ मिला, अब वह समर्थ हो गए हैं। अब उन्हें आरक्षण नहीं चाहिए। उनके बदले उनके ही जाति, समुदाय के अत्यंत गरीब, वंचित लोगों को आरक्षण का लाभ दिया जाय। वह और उनके बच्चे अब अनारक्षित सामान्य कोटे में अपनी हिस्सेदारी लेंगे!” ऐसा उदाहरण कुछ अपवाद को छोड़ बिल्कुल नहीं मिल पाता है। यह तो बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर जी के आरक्षण की अवधारणा को विफल बना देने जैसा है। अगर आरक्षण से 66 वर्ष में भी कोई सामान्य वर्ग के बराबर नहीं बन पाए तो यह दशार्ता है कि कुछ लोग आरक्षण का लाभ अपने-अपने खानदान तक सीमित कर देने को इस पर कुंडली मार कर बैठे हैं। वह सामाजिक न्याय के लिए की गई आरक्षण की व्यवस्था को ही कलंकित कर रहे हैं। एक व्यक्ति, एक परिवार, खानदान, समाज बारबार आरक्षण का लाभ लेते हैं, एक व्यक्ति आरक्षण का लाभ लेकर आईएएस बन जाता है। फिर उनके ही बच्चे आरक्षण का लाभ लेकर आईआईटी में पढ़ते हैं, फिर आईएएस बनते हैं। उनकी बेटी आरक्षण का लाभ लेकर एमबीबीएस की पढ़ाई करती है, फिर डॉक्टर बनने के बजाय आरक्षण का लाभ ले प्रशासनिक अधिकारी बन जाती है। मतलब, जो आरक्षण के दम पर सबल बनते हैं, फिर वह आरक्षित कोटि में जमे रहकर उसका निरंतर लाभ उठाते हैं, वही फिर सामाजिक न्याय की राह में बाधक बन जाते हैं। उसी समाज के अन्य वंचित लोगों को आरक्षण का लाभ लेने से वंचित रह जाते हैं। मैं दलित, पिछड़े, आदिवासी समाज के अंतिम पायदान पर खड़े लोगों के लिए यह आवाज उठा रहा हूं।

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