सहरसा में विजय सिन्हा की हुंकार, कहा- जमीन को लटकाने वाला रवैया नहीं चलेगा, लापरवाह सीओ पर एक्शन लेंगे
सहरसा/पटना। बिहार के उपमुख्यमंत्री और राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री विजय कुमार सिन्हा ने सहरसा में भूमि से जुड़े मामलों की जनसुनवाई की। यह जनसुनवाई ऐसे समय में हुई है, जब कुछ दिन पहले ही बिहार राजस्व सेवा संघ ने उनकी भाषा और कार्यशैली को लेकर मुख्यमंत्री से शिकायत की थी। शिकायत के बाद यह उनकी पहली सार्वजनिक सुनवाई मानी जा रही है, जिस पर प्रशासनिक और राजनीतिक दोनों नजरें टिकी हुई थीं। जन संवाद कार्यक्रम में बड़ी संख्या में फरियादी, पंचायत प्रतिनिधि और विभागीय अधिकारी मौजूद रहे।
अंचल अधिकारियों को सख्त निर्देश
जनसुनवाई के दौरान डिप्टी सीएम विजय सिन्हा ने अंचल अधिकारियों और संबंधित कर्मचारियों को स्पष्ट और सख्त निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि जमीन से जुड़े मामलों में अब लटकाने और भटकाने वाला रवैया बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने अधिकारियों से कहा कि जो लोग धोखाधड़ी और 420 जैसे मामलों में संलिप्त हैं, उनके खिलाफ तुरंत कार्रवाई होनी चाहिए। उन्होंने यह भी निर्देश दिया कि प्रत्येक अंचल से जनवरी महीने में कम से कम दो ऐसे मामलों में कार्रवाई की शुरुआत की जाए।
तय समयसीमा में कार्रवाई का आदेश
विजय सिन्हा ने कहा कि 14 जनवरी से पहले इन मामलों में कार्रवाई सुनिश्चित होनी चाहिए, ताकि गलत काम करने वालों में भय पैदा हो और सही लोगों को न्याय मिल सके। उनका कहना था कि समयबद्ध कार्रवाई से न केवल आम जनता का भरोसा बढ़ेगा, बल्कि विभागीय व्यवस्था में भी पारदर्शिता आएगी। उन्होंने इसे नई सरकार की नई कार्यप्रणाली का हिस्सा बताया और कहा कि सभी अधिकारियों को इसके अनुरूप खुद को ढालना होगा।
नई कार्यप्रणाली का संदेश
डिप्टी सीएम ने कहा कि नई सरकार के साथ प्रशासनिक कार्यशैली में भी बदलाव जरूरी है। उन्होंने माना कि अंचल अधिकारियों पर काम का दबाव अधिक रहता है, लेकिन इसके बावजूद उन्हें अपने कार्यालय में नियमित रूप से बैठकर जनता के मामलों का निपटारा करना चाहिए। उन्होंने दो टूक कहा कि यदि किसी अधिकारी ने निर्देशों की अनदेखी की, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
सुनवाई की शुरुआत में बदला हुआ लहजा
जनसुनवाई की शुरुआत में विजय सिन्हा का लहजा पहले की तुलना में बदला हुआ नजर आया। उन्होंने कर्मचारियों से कहा कि आप सभी मेरे भाई हैं। उन्होंने अंचल अधिकारियों को खड़े होने के लिए कहा, फिर बैठने का इशारा किया। इसके बाद पंचायत प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए कहा कि हम सभी अपनी-अपनी परीक्षा के लिए तैयार हैं। उन्होंने इसे प्रशासन और जनता दोनों की परीक्षा बताया।
फरियादियों की पीड़ा सामने आई
जनसुनवाई के दौरान कई भावुक दृश्य भी देखने को मिले। जमीन विवाद को लेकर आए एक फरियादी ने डिप्टी सीएम के सामने रोते हुए कहा कि कोई भी अधिकारी उसकी बात नहीं सुनता और वह आत्महत्या करने को मजबूर हो जाएगा। इस पर विजय सिन्हा ने उसे समझाते हुए कहा कि आत्महत्या से कुछ हासिल नहीं होगा और सभी लोग उसकी समस्या के समाधान के लिए ही यहां बैठे हैं। अधिकारियों ने बताया कि उसका मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है।
मापी और पुराने मामलों की शिकायत
सुनवाई में एक हवलदार का बेटा भी पहुंचा, जिसने बताया कि दो वर्षों से जमीन की मापी नहीं हुई है। उसके पिता की मृत्यु हो चुकी है, लेकिन इसके बावजूद मापी का काम अधूरा है। अधिकारियों ने उसे आश्वासन दिया कि ऑनलाइन आवेदन देने के बाद सात दिनों के भीतर मापी कर दी जाएगी। फरियादी ने यह भी बताया कि एक और आवेदन वर्ष 2018 से लंबित है, जिस पर भी अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस पर डिप्टी सीएम ने संबंधित अधिकारियों को जल्द से जल्द मापी कराने का निर्देश दिया।
भाषा और कार्यशैली पर विवाद
हालांकि जनसुनवाई के दौरान डिप्टी सीएम ने संयमित भाषा का प्रयोग किया, लेकिन इससे पहले उनके बयानों और शैली को लेकर विवाद खड़ा हो चुका है। मंत्री पर आरोप है कि वे सार्वजनिक मंचों, मीडिया और सोशल मीडिया के जरिए राजस्व अधिकारियों के खिलाफ अपमानजनक भाषा, बदतमीजी और ऑन द स्पॉट फैसलों की बात करते रहे हैं। उनके कुछ बयानों जैसे खड़े-खड़े सस्पेंड कर देंगे, यहीं जवाब दो, तुरंत कार्रवाई करो जैसे शब्दों को प्रशासनिक मर्यादा और संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ बताया गया है।
प्रशासनिक मर्यादा और आगे की राह
आलोचकों का कहना है कि इस तरह की भाषा और त्वरित फैसले लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुरूप नहीं हैं और इससे संस्थागत प्रक्रियाओं को नुकसान पहुंचता है। वहीं सरकार का पक्ष यह है कि सख्ती से ही व्यवस्था में सुधार संभव है। सहरसा की इस जनसुनवाई को इसी पृष्ठभूमि में देखा जा रहा है, जहां एक ओर जनता को त्वरित न्याय का भरोसा दिलाने की कोशिश हुई, तो दूसरी ओर प्रशासनिक संयम और मर्यादा को लेकर सवाल भी उठते रहे। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि इन निर्देशों का जमीन पर कितना असर पड़ता है और क्या वास्तव में भूमि विवादों के समाधान में तेजी आती है।


