राजद का बड़ा आरोप : महागठबंधन तोड़ने की शर्त पर सृजन जांच की लीपापोती
पटना। राजद प्रवक्ता चित्तरंजन गगन ने कहा है कि 2015 में मिले जनादेश से बनी महागठबंधन की सरकार को अपदस्थ करने की शर्त पर ही 3300 करोड़ के सृजन घोटाले की जांच में सीबीआई द्वारा लीपापोती कर घोटाले के सूत्रधारों को बचाया गया है। हद तो यह हो गई कि इतने बड़े घोटाले में सीबीआई ने राज्य के मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री से पूछताछ करने की भी जरूरत महसूस नहीं की।
राजद नेता ने कहा कि चारा घोटाले में किसी प्रकार की संलिप्तता के साक्ष्य नहीं मिलने के बावजूद केवल अनुमान के आधार पर तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को आरोपित किया जा सकता है तो सृजन घोटाले में तो सीधे तौर पर सरकारी संरक्षण के कई उदाहरण मौजूद हैं।
राजद नेता ने आगे कहा कि बिहार में एनडीए की सरकार बनने के बाद ही घोटाला करने के लिए नयी नीति लागू की गई। जिसके तहत बजट आवंटन को खर्च न करके उसे निजी खातों में पार्क करने की नीति लागू की गई। जैसा सृजन घोटाले में हुआ। बगैर मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री के सहमति के यह नीति लागू नहीं हुई होगी। इसी प्रकार 2008 में हीं कैग द्वारा आपत्ति प्रकट किये जाने के बाद भी उसे नजरअंदाज कर सृजन जैसी एनजीओ के माध्यम से गरीबों के लिए खर्च की जाने वाली पैसे का लूट-खसोट जारी रहा। 25 जुलाई 2013 को भारतीय रिजर्व बैंक ने राज्य सरकार से सृजन को-औपरेटिव बैंक की गतिविधियों को संदिग्ध बताते हुए इसकी जांच कराने को कहा था, पर रिजर्व बैंक के निर्देश पर भी कोई कार्रवाई नहीं की गई।
राजद नेता ने कहा कि इस घोटाले के आरोपित भारतीय प्रशासनिक सेवा के अवकाश प्राप्त अधिकारी केपी रमैया को किनका संरक्षण मिलते रहा है और वीआरएस लेकर वे किस दल से चुनाव लड़े थे, ये सब बातें सर्वविदित है। इसके बावजूद सीबीआई द्वारा मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री से इस घोटाले के संबंध में पूछताछ नहीं किया जाना ही जांच की निष्पक्षता पर सवाल उठना स्वाभाविक है।
इस आधार पर किसी को क्लीन चिट नहीं दिया जा सकता कि उसके द्वारा ही सीबीआई जांच की अनुशंसा की गई थी। यह तो मजबूरी में उठाया गया कदम है चूंकि रिजर्व बैंक का स्पष्ट निर्देश है कि 30 करोड़ से उपर की गड़बड़ी होगी तो जांच सीबीआई करेगी। यहां तो सवाल यह है कि रिजर्व बैंक के स्पष्ट आदेश के बाद भी एसआईटी के नाम पर काफी दिनों तक इस घोटाले को लटका कर क्यूं रखा गया।
राजद नेता ने कहा कि उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि सृजन घोटाले को मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री का संरक्षण प्राप्त था और इसी से बचने के लिए उन्हें जनादेश के साथ विश्वासघात कर भाजपा के साथ सरकार बनने को मजबूर होना पड़ा।


