करप्शन वाले सीओ-बाबुओं को जरूर सजा दीजिए, लेकिन कितने डीएम-एसडीओ कोर्ट में लंबित है भूमि विवाद, यह भी देखिए डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा साहब
- अगर किसी व्यक्ति को सीओ के यहां से नहीं मिलता है इंसाफ, तो डीएम-एसडीओ कोर्ट में लगा सकते हैं फरियाद, लेकिन नहीं होती है नियमित सुनवाई
- भूमि विवाद की समस्या के लिए सिर्फ सीओ नहीं बल्कि एसडीओ तथा डीएम भी जिम्मेदार, नियमित कोर्ट नहीं लगती,नहीं मिलता त्वरित समाधान,जबकि कानून ने दिए हैं बड़े अधिकार
पटना। (बन बिहारी) बिहार की प्रमुख विकराल समस्याओं में से एक भूमि विवाद के लिए सिर्फ अंचल अधिकारी कार्यालय जिम्मेदार नहीं है। बल्कि भूमि विवाद एक ऐसी व्यूह समान समस्या है। जिसके लिए अंचल अधिकारी कार्यालय के साथ-साथ अनुमंडल पदाधिकारी कार्यालय,जिलाधिकारी कार्यालय तथा आयुक्त कार्यालय भी कहीं ना कहीं जिम्मेदार है। बिहार के डिप्टी सीएम तथा भूमि सुधार एवं राजस्व विभाग के मंत्री विजय कुमार सिन्हा लगातार जन संवाद शिविरों में सिर्फ अंचलाधिकारियों को टारगेट कर रहे हैं। जबकि भूमि विवाद के समाधान के लिए संविधान के द्वारा अनुमंडल पदाधिकारी तथा जिलाधिकारी को भी महत्वपूर्ण शक्तियां प्रदान की गई है। अगर नियमित रूप से एसडीओ कोर्ट तथा डीएम कोर्ट में भूमि विवाद से जुड़े मामलों को लेकर सुनवाई तथा निपटान की प्रक्रिया जारी रहती।तो शायद प्रदेश में यह समस्या इतनी विकराल रूप धारण नहीं कर पाती। लेकिन समस्या यह है कि एसडीओ कोर्ट तथा डीएम कोर्ट में भाप्रसे के अधिकारी समय नहीं देते। जिस कारण भूमि विवाद के समस्याएं लगातार लंबित रह जाती है। अगर किसी व्यक्ति को सीओ कार्यालय से समस्या का समाधान नहीं मिलता है, न्याय नहीं मिलता है। तो कानून के हिसाब से एसडीओ कोर्ट तथा डीएम कोर्ट का दरवाजा फरियादी खटखटा सकता है। लेकिन डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा के जन संवाद शिविरों में कार्रवाई की गाज की गूंज सिर्फ सीओ तक आकर समाप्त हो जा रही है।जिसे लेकर बिहार राजस्व सेवा संघ के द्वारा मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा के व्यवहार पर आपत्ति व्यक्त की गई है।साथ ही सामूहिक बहिष्कार के धमकी भी दी गई है। हालांकि बिहार के तमाम अंचल कार्यालय में व्याप्त भ्रष्टाचार से प्रदेश की अधिकांश जनता रूबरू है। बिहार के अंचल कार्यालयों में भ्रष्टाचार दीमक की तरह लग चुका है।लेकिन इसके बावजूद भूमि विवाद की समस्या को हल करने के लिए एसडीओ कोर्ट तथा डीएम कोर्ट को भी नियमित करने और उसके कार्य प्रणाली पर सुधार की आवश्यकता भी बहुत अधिक है। अगर एसडीओ कोर्ट तथा डीएम कोर्ट लगातार सुनवाई करें और त्वरित निपटान करें। तो बिहार में भूमि विवाद की समस्याओं के अंबार पर अंकुश लग सकता है। लेकिन डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा शायद ही एसडीओ तथा डीएम के पदों पर बैठे आईएएस अधिकारियों पर कार्रवाई की बात करें।ऐसे में डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा के द्वारा भूमि विवाद के मामलों में सिर्फ सीओ स्तर के अधिकारियों पर कार्रवाई करने का मसला राजनीतिक रंग ले रहा है। बिहार प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी ने नाम न छापने के शर्त पर बताया कि भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारियों के कार्यशैली के कारण बिहार में विवाद से लेकर विकास तक के कार्य बड़े पैमाने पर लंबित है।लेकिन उनके विरुद्ध इतनी कड़े तेवर से टीका टिप्पणी करने की हैसियत किसी नेता में नहीं।उनका इशारा सीधे-सीधे डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा की ओर था। वर्तमान कानून के मुताबिक भूमि विवाद के मामलों में भूमि कानून के तहत, डीएम (जिला मजिस्ट्रेट) कोर्ट भूमि विवादों के निपटारे, राजस्व रिकॉर्ड (जैसे रोक सूची) को अपडेट करने और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर जब विवाद में तत्काल कार्रवाई (जैसे धारा 144) की आवश्यकता हो या अवैध कब्जे का मामला हो, हालांकि कई मामलों में उच्च न्यायालय और दीवानी अदालतों की भूमिका भी होती है, पर डीएम के पास जमीन के रिकॉर्ड में हेरफेर (जैसे खेसरा हटाना/जोड़ना) का अधिकार होता है और वे आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 144/ बीएनएसएस की धारा 164 के तहत कार्रवाई कर सकते हैं।
राजस्व और प्रशासनिक शक्तियाँ:
रोक सूची (Prohibited List) का प्रबंधन: DM के पास जमीन की रोक सूची (prohibited list) से किसी खेसरा (plot) या नाम को हटाने या जोड़ने का अधिकार है, जो भूमि विवादों को सुलझाने में मदद करता है।
कानून-व्यवस्था: वह जिले में भूमि विवादों के कारण उत्पन्न होने वाली कानून-व्यवस्था की स्थिति (जैसे हिंसा या शांति भंग) पर नज़र रखते हैं और तत्काल कार्रवाई कर सकते हैं, जैसे धारा 144 लगाना।
अवैध कब्जे पर कार्रवाई: DM को अवैध कब्जों को हटाने का आदेश देने का अधिकार है, जैसा कि पटना हाई कोर्ट ने एक मामले में दिया था।
आपराधिक प्रक्रिया के तहत शक्तियाँ (CrPC / BNSS):
धारा 145 (अब BNSS की धारा 164): भूमि विवादों के कारण शांति भंग होने की स्थिति में, मजिस्ट्रेट (DM) संपत्ति को कुर्क (attach) कर सकते हैं और रिसीवर नियुक्त कर सकते हैं, ताकि शांति बनी रहे।
धारा 144 (CrPC): सार्वजनिक अव्यवस्था या तत्काल खतरे को रोकने के लिए निषेधाज्ञा (prohibitory orders) जारी कर सकते हैं, जिससे निर्माण कार्य या अवैध जमावड़ा रोका जा सके।
भूमि विवादों का समाधान:
DM के पास भूमि विवादों को सुलझाने के लिए प्रशासनिक और न्यायिक दोनों शक्तियाँ होती हैं, जो उन्हें राजस्व रिकॉर्ड और कब्जे से जुड़े मामलों में महत्वपूर्ण बनाती हैं।
एसडीओ कोर्ट के कार्य और अधिकार:
राजस्व वादों की सुनवाई: भूमि से जुड़े राजस्व वाद (जैसे लगान, भूमि का प्रकार, अधिकार विलेख) की सुनवाई करना।
अपीलीय प्राधिकारी: अपने उप-मंडल में अन्य राजस्व अधिकारियों (जैसे तहसीलदार, नायब तहसीलदार) के आदेशों के खिलाफ अपील सुनना और निर्णय देना।
भूमि रिकॉर्ड का प्रबंधन: भूमि के रिकॉर्ड (जैसे खाता, खेसरा, रैकबा) को सही करने और अपडेट करने से संबंधित मामलों की निगरानी करना।
बंटवारा और उत्परिवर्तन (Mutation): भूमि के बंटवारे और दाखिल-खारिज (नाम बदलने) के मामलों में आदेश देना।
अवैध कब्जे पर कार्रवाई: कुछ मामलों में अवैध कब्जे या अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया में शामिल होना, हालांकि कुछ मामलों में सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ सकता है, खासकर जब स्वामित्व का सीधा सवाल हो।
भूमि कानून के तहत, एसडीओ कोर्ट (Sub-Divisional Officer Court) राजस्व मामलों और भूमि विवादों के लिए एक महत्वपूर्ण न्यायिक मंच है, जो भूमि के स्वामित्व, कब्जे, लगान, बंटवारे, दाखिल-खारिज (mutation) और सीमा विवाद (boundary disputes) जैसी राजस्व संबंधी याचिकाओं की सुनवाई करती है, खासकर जब मामला राजस्व संहिता (Revenue Code) के तहत आता है, और यह जमीन से जुड़े कई मामलों के लिए एक अपीलीय अदालत भी है।
कब एसडीओ कोर्ट जाएं:
जब आपकी जमीन के रिकॉर्ड (जमाबंदी, खतियान) में कोई गड़बड़ी हो।
जब भूमि के स्वामित्व या कब्जे को लेकर विवाद हो और मामला राजस्व से जुड़ा हो।
जब भूमि के बंटवारे की आवश्यकता हो या दाखिल-खारिज (Mutation) करवाना हो।
जब किसी अन्य राजस्व अधिकारी के आदेश से असंतुष्ट हों।


