December 31, 2025

पटना में यूरिया की कालाबाजारी से किसान परेशान, मनमाना दाम लेते हैं दुकानदार, बेखबर बना प्रशासन

पटना। जिले के बाढ़ अनुमंडल में इन दिनों किसानों को यूरिया और डीएपी खाद के लिए भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। खेती के इस अहम मौसम में खाद की जरूरत सबसे ज्यादा होती है, लेकिन इसी समय खाद की कालाबाजारी और मनमानी कीमतों ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। किसानों का आरोप है कि कृषि विभाग द्वारा तय की गई सरकारी दरों को खुलेआम नजरअंदाज किया जा रहा है और दुकानदार अपनी मनमर्जी से दाम वसूल रहे हैं। इससे खासकर छोटे और सीमांत किसान आर्थिक दबाव में आ गए हैं।
सरकारी दरें और हकीकत
कृषि विभाग के अनुसार 45 किलो नीम लेपित यूरिया की सरकारी कीमत 266.50 रुपए निर्धारित है। वहीं 50 किलो डीएपी का मूल्य 1350 रुपए तय किया गया है। लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल अलग नजर आ रही है। किसानों का कहना है कि दुकानों पर यूरिया 300 से 350 रुपए प्रति बोरी के हिसाब से बेचा जा रहा है। कई जगहों पर छोटे किसानों से प्रति किलो यूरिया के लिए 10 रुपए तक वसूले जा रहे हैं, जिससे एक बोरी की कीमत 450 रुपए तक पहुंच जाती है। डीएपी की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है, जहां 1500 से 1700 रुपए तक किसानों को चुकाने पड़ रहे हैं।
खाद की कमी और भटकते किसान
कई इलाकों में खाद की उपलब्धता ही सबसे बड़ी समस्या बन गई है। किसानों का कहना है कि दुकानों पर अक्सर यूरिया उपलब्ध नहीं होने की बात कही जाती है। एक दुकान से दूसरी दुकान तक भटकने के बावजूद उन्हें खाद नहीं मिल पा रही है। मजबूरी में किसान ऊंची कीमत पर खाद खरीदने को तैयार हो जाते हैं, क्योंकि फसल की बुआई और सिंचाई का समय निकलता जा रहा है।
जबरन घोल और पाउडर खरीदने की मजबूरी
किसानों ने यह भी आरोप लगाया है कि कुछ दुकानदार यूरिया या डीएपी देने के साथ-साथ जबरन लिक्विड यूरिया या किसी अन्य घोल और पाउडर को खरीदने के लिए मजबूर करते हैं। इसके लिए अलग से पैसे लिए जाते हैं। किसानों का कहना है कि उन्हें इन घोलों के उपयोग और लाभ के बारे में न तो सही जानकारी दी जाती है और न ही विभाग की ओर से कोई जागरूकता अभियान चलाया गया है। कई किसान तो यह भी नहीं जानते कि ये घोल उनकी फसल के लिए जरूरी हैं या नहीं।
दुकानों पर हालात का जायजा
बाजितपुर रोड स्थित एक खाद दुकान का जब जायजा लिया गया तो वहां यूरिया के साथ एक लिक्विड खाद खरीदना अनिवार्य बताया गया। इसके लिए कुल 450 रुपए की मांग की गई। महिला दुकानदार ने साफ शब्दों में कहा कि यदि लिक्विड यूरिया नहीं लिया गया तो खाद नहीं दी जाएगी। दुकानदार का दावा था कि गोदाम से खाद लाने, परिवहन, अनलोडिंग और गोदाम किराए में प्रति बोरी करीब 70 रुपए का अतिरिक्त खर्च आता है, जिसे ग्राहकों से वसूला जाता है।
बिल देने से इनकार और गंभीर आरोप
खरीदारी के बाद जब बिल की मांग की गई तो दुकानदार ने साफ इनकार कर दिया। उसने यह भी दावा किया कि दुकान चलाने के लिए अधिकारियों को रिश्वत देनी पड़ती है। दुकानदार का कहना था कि पूरे बाढ़ अनुमंडल में कोई भी दुकानदार यूरिया या डीएपी का बिल नहीं देता, चाहे वह एक ट्रक खाद ही क्यों न खरीदे। इस तरह के आरोप व्यवस्था की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं।
अन्य बाजारों की स्थिति
सकसोहरा बाजार पुल के पास स्थित दुकानों का भी जब जायजा लिया गया तो हालात कुछ अलग नहीं दिखे। एक दुकानदार ने डीएपी का दाम 1700 रुपए बताया और यूरिया उपलब्ध नहीं होने की बात कही। यूरिया के लिए आग्रह करने पर वह केवल 15 किलो देने को तैयार हुआ, वह भी 10 रुपए प्रति किलो की दर से। दूसरे दुकानदार ने कहा कि उसके पास यूरिया और डीएपी दोनों नहीं हैं। तीसरे दुकानदार ने यूरिया के साथ पाउडर खाद लेने पर 400 रुपए मांगे और बिना पाउडर के खाद देने से इनकार कर दिया। वहीं डीएपी के लिए उसने 1600 रुपए की मांग की।
ग्रामीण इलाकों में भी वही हाल
नवादा गांव के एक दुकानदार ने बताया कि उसके यहां यूरिया खत्म हो चुकी है। डीएपी के लिए उसने तीन अलग-अलग रेट बताए, जो 30, 32 और 38 रुपए प्रति किलो बताए गए। उसने भी यही कहा कि यूरिया के साथ घोल लेना जरूरी है, अन्यथा खाद नहीं दी जाएगी। इससे साफ है कि ग्रामीण इलाकों में भी किसान इसी समस्या से जूझ रहे हैं।
राजनीतिक प्रतिक्रिया और मांग
मामले को लेकर कांग्रेस के पटना ग्रामीण अध्यक्ष गुरजीत सिंह और वरिष्ठ नेता विजय सिंह ने प्रशासन से जांच और सख्त कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि किसानों का शोषण किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए और दोषी दुकानदारों पर तत्काल कार्रवाई होनी चाहिए।
प्रशासन का रुख
अनुमंडल कृषि पदाधिकारी विभा कुमारी का कहना है कि यदि किसानों की ओर से लिखित आवेदन मिलता है तो संबंधित दुकानदारों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। हालांकि किसानों का कहना है कि आवेदन की प्रक्रिया लंबी और जटिल है, जिससे वे शिकायत करने से कतराते हैं। कुल मिलाकर, प्रशासन की निष्क्रियता और निगरानी की कमी के कारण किसान लगातार परेशानी झेल रहे हैं और खाद की कालाबाजारी पर लगाम लगती नहीं दिख रही है।

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