December 24, 2025

देश के दिग्गज शिल्पकार राम वंजी सुतार का निधन, 100 वर्ष की थी आयु, बनाई थी ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी

नई दिल्ली। देश और दुनिया को अपनी अद्भुत कृतियों से चकित करने वाले महान मूर्तिकार राम वंजी सुतार का निधन कला जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। लंबी बीमारी के बाद उन्होंने नोएडा स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली। 100 वर्ष की आयु तक सक्रिय और सृजनशील रहे राम सुतार का जाना केवल एक व्यक्ति का निधन नहीं, बल्कि एक युग का अवसान माना जा रहा है। उनके निधन की खबर मिलते ही देशभर के कलाकारों, बुद्धिजीवियों और कला प्रेमियों में शोक की लहर दौड़ गई।
अंतिम संस्कार और शोक का माहौल
राम वंजी सुतार के निधन के बाद परिवार और शुभचिंतकों में गहरा शोक व्याप्त है। उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार नोएडा के सेक्टर-94 में किया जाएगा। उनके पुत्र अनिल सुतार, जो स्वयं एक प्रतिष्ठित शिल्पकार हैं, ने पिता के निधन की जानकारी साझा करते हुए इसे परिवार और कला जगत के लिए अत्यंत दुखद क्षण बताया। उन्होंने कहा कि उनके पिता ने जीवनभर कला को साधना की तरह अपनाया और अंतिम समय तक सृजन की भावना से जुड़े रहे।
जन्म और प्रारंभिक जीवन
राम वंजी सुतार का जन्म 19 फरवरी 1925 को महाराष्ट्र के धुले जिले के गोंदुर गांव में हुआ था। एक साधारण परिवार में जन्मे सुतार का बचपन अभावों में बीता, लेकिन उनके भीतर कला के प्रति गहरा आकर्षण बचपन से ही मौजूद था। मिट्टी और पत्थरों से आकृतियां गढ़ना उनके लिए खेल जैसा था। यही शौक आगे चलकर उनके जीवन का उद्देश्य बन गया।
शिक्षा और कला साधना की शुरुआत
अपनी प्रतिभा को निखारने के लिए राम सुतार ने मुंबई के प्रतिष्ठित जेजे स्कूल ऑफ आर्ट एंड आर्किटेक्चर में दाखिला लिया। यहां उन्होंने मूर्तिकला की विधिवत शिक्षा प्राप्त की और अपने अद्वितीय कौशल के बल पर गोल्ड मेडल हासिल किया। यह उपलब्धि उनके जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। यहीं से उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलनी शुरू हुई और उनके कार्यों की सराहना होने लगी।
एक कलाकार से राष्ट्र निर्माता तक का सफर
राम सुतार केवल मूर्तिकार नहीं थे, बल्कि वे ऐसे कलाकार थे जिन्होंने अपने शिल्प के माध्यम से राष्ट्र की आत्मा को आकार दिया। उन्होंने देश के महान नेताओं और ऐतिहासिक व्यक्तित्वों की ऐसी प्रतिमाएं गढ़ीं, जो केवल पत्थर या धातु नहीं, बल्कि विचार और प्रेरणा का प्रतीक बन गईं। उनकी कृतियों में भावनाओं की गहराई और यथार्थ का अद्भुत संतुलन देखने को मिलता है।
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी: विश्व को दिया भारत का संदेश
राम सुतार की सबसे चर्चित और ऐतिहासिक कृति सरदार वल्लभभाई पटेल की 182 मीटर ऊंची प्रतिमा ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ है। यह दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है, जिसने भारत को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान दिलाई। इस परियोजना में राम सुतार की भूमिका निर्णायक रही। उन्होंने सरदार पटेल के व्यक्तित्व, दृढ़ता और राष्ट्रभक्ति को मूर्ति में इस तरह ढाला कि वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बन गई।
महात्मा गांधी से लेकर अन्य महापुरुषों की प्रतिमाएं
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के अलावा राम सुतार ने महात्मा गांधी की कई प्रतिमाएं भी बनाई हैं, जिनमें गांधीजी की ध्यानमग्न मुद्रा विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त उन्होंने अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की मूर्तियां गढ़ीं, जो भारत की सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध करती हैं। उनकी मूर्तियों में सादगी, गरिमा और गहन भावनात्मक अभिव्यक्ति स्पष्ट रूप से झलकती है।
पद्म भूषण जैसे बड़े सम्मान से भी थे सम्मानित
अपने अतुलनीय योगदान के लिए राम वंजी सुतार को देश के कई प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजा गया। उन्हें पद्म भूषण जैसे बड़े सम्मान से भी सम्मानित किया गया। यह सम्मान उनके कला जीवन की साधना और राष्ट्र के प्रति उनके योगदान का प्रतीक था। बावजूद इसके, वे हमेशा सादगीपूर्ण जीवन जीते रहे और कला को ही अपना सर्वोच्च धर्म मानते रहे।
मनाया था अपना 100वां जन्मदिन
इस वर्ष फरवरी में राम सुतार ने अपना 100वां जन्मदिन मनाया था। उम्र के साथ उनके शरीर के कई अंग कमजोर हो गए थे और वे लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे। हालांकि मानसिक रूप से वे अंत तक सजग और सक्रिय रहे। उम्रजनित परेशानियों के कारण ही अंततः उनका निधन हो गया।
राम वंजी सुतार की अमर विरासत
राम वंजी सुतार का जाना भले ही एक शून्य छोड़ गया हो, लेकिन उनकी कला और कृतियां उन्हें अमर बनाए रखेंगी। उन्होंने पत्थरों में इतिहास को जीवित किया और मूर्तियों के माध्यम से राष्ट्र की चेतना को आकार दिया। आने वाली पीढ़ियां जब भी स्टैच्यू ऑफ यूनिटी या उनकी अन्य कृतियों को देखेंगी, तो राम सुतार का नाम श्रद्धा के साथ याद किया जाएगा। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि सच्ची कला कभी मरती नहीं, वह समय से परे होकर हमेशा जीवित रहती है।

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