बिहार में विधायकों और विधान पार्षदों को टेलीफोन भत्ते में बड़ी राहत, सरकार हर महीने करेगी 8300 रुपये का भुगतान
पटना। बिहार विधानमंडल के सदस्यों के लिए संचार सुविधाओं पर होने वाले खर्च को देखते हुए सरकार ने टेलीफोन भत्ते की व्यवस्था में बड़ा बदलाव किया है। नई संशोधित नियमावली के अनुसार अब विधायक और विधान पार्षद हर महीने 8,300 रुपये की एकमुश्त राशि प्राप्त करेंगे। यह राशि सीधे उनके भत्ते के रूप में दी जाएगी और इसके लिए किसी बिल, रसीद या वाउचर जमा करने की आवश्यकता नहीं होगी। इस प्रावधान से विधानमंडल के सभी सदस्य पहले की जटिल प्रक्रिया से मुक्त हो जाएंगे।
पहले की व्यवस्था और उससे जुड़ी चुनौतियाँ
अब तक टेलीफोन भत्ते के लिए विधायकों और पार्षदों को अपने फोन बिल जमा करने होते थे। इसका सत्यापन और प्रोसेस कई बार लंबा समय लेता था। अक्सर बिल की जांच में देरी होने से भत्ता मिलने में कठिनाइयाँ सामने आती थीं। कुछ मामलों में बिल वाउचर अपूर्ण होने पर भुगतान रुका रह जाता था। लेकिन नई प्रणाली ने इन सभी औपचारिकताओं को समाप्त कर दिया है। अब सदस्यों को हर महीने सीधे निर्धारित राशि मिल जाएगी, जिससे बिल प्रक्रिया की जटिलता पूरी तरह खत्म हो जाएगी।
हर सदस्य को 8,300 रुपये मासिक भुगतान
संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी ने विधानसभा में बिहार विधानमंडल (सदस्यों का वेतन, भत्ता और पेंशन) (संशोधन) नियमावली 2025 की प्रति सदन के पटल पर रखते हुए इस बदलाव की औपचारिक घोषणा की। संशोधन लागू होते ही सभी विधायकों और विधान पार्षदों को फोन खर्च के लिए 8,300 रुपये प्रतिमाह मिलने लगेगा। इस बदलाव के बाद एक वर्ष में यह राशि 99,600 रुपये तक पहुंच जाएगी। सरकार का कहना है कि यह परिवर्तन संचार साधनों की बढ़ती जरूरत को देखते हुए किया गया है। आज के समय में जनप्रतिनिधि केवल फोन कॉल तक सीमित नहीं होते, बल्कि इंटरनेट, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, सोशल मीडिया और डिजिटल संवाद पर भी निर्भर रहते हैं। ऐसे में बढ़ता संचार खर्च एक वास्तविकता है, जिसे सरकार ने ध्यान में रखा है।
भत्ते के उपयोग में पूरी स्वतंत्रता
नई व्यवस्था के बाद विधायक अब इस राशि का उपयोग अपनी सुविधा के अनुसार कर सकेंगे। चाहे वे कई मोबाइल फोन नंबर चलाना चाहें, उच्च गति इंटरनेट पैक लेना चाहें या अपने कार्यालय स्टाफ के नंबर सक्रिय रखना चाहें, इस पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा। उन्हें किसी भी प्रकार का हिसाब सरकार को नहीं देना होगा। इससे उन्हें अपने क्षेत्र में जनता से सीधे और निरंतर जुड़ाव बनाए रखने में आसानी होगी। सरकार का तर्क है कि विधायकों का काम अब अधिक व्यापक हो चुका है। उन्हें अपने क्षेत्र के लोगों, अधिकारियों, मीडिया और राजनीतिक गतिविधियों से लगातार जुड़े रहना होता है, ऐसे में संचार साधनों पर निर्भरता काफी बढ़ गई है। इसलिए उन्हें अधिक लचीली और सरल व्यवस्था देना जरूरी था।
प्रशासनिक बोझ कम होगा
नई प्रणाली से सरकार और प्रशासनिक तंत्र पर भी बोझ कम होगा। पहले बिल जांच, सत्यापन, अनुमोदन और भुगतान में जो समय लगता था, अब वह सब प्रक्रियाएं समाप्त हो जाएंगी। इससे न केवल समय की बचत होगी बल्कि कई प्रशासनिक स्तरों पर फाइल प्रोसेसिंग का दबाव भी घटेगा। संसदीय कार्य मंत्री ने बताया कि यह प्रणाली पारदर्शी और सरल है, जिससे सदस्यों के कार्य निष्पादन में सहूलियत बढ़ेगी। यह राशि उनके आधिकारिक और व्यक्तिगत दोनों तरह के संचार को मजबूत करेगी।
क्या यह खर्च जनता के अनुरूप है—उठते सवाल
हालांकि इस नई व्यवस्था के साथ कुछ सवाल भी उठ रहे हैं। लगभग एक लाख रुपये सालाना का टेलीफोन भत्ता जनता की प्राथमिकताओं के अनुरूप है या नहीं, इस पर चर्चा होना स्वाभाविक है। कई लोगों का मानना है कि जहां राज्य में विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार जैसे मुद्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता है, वहीं जनप्रतिनिधियों के भत्ते बढ़ाना उचित नहीं लगता। दूसरी ओर सरकार का कहना है कि संचार आधुनिक राजनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है और विधायकों को अपने कार्यक्षेत्र में लोगों की समस्याएं जानने तथा उनसे संपर्क में रहने के लिए पर्याप्त साधनों की आवश्यकता होती है। इस नजरिए से यह खर्च उनकी कार्यक्षमता को बढ़ाने वाला है। टेलीफोन भत्ते में इस बदलाव के बाद बिहार के विधायकों और विधान पार्षदों को हर महीने निर्धारित राशि मिलना शुरू हो जाएगी, जिससे उनका कामकाज और संचार व्यवस्था अधिक सरल होगी। बिल-वाउचर प्रणाली समाप्त होने से प्रशासनिक जटिलताएँ कम होंगी और जनप्रतिनिधियों को अधिक सुविधा मिलेगी। हालांकि इस खर्च के औचित्य को लेकर बहस जारी है, लेकिन सरकार इसे सुशासन और प्रभावी संवाद का आवश्यक हिस्सा मानती है। यह निर्णय विधायकों के संचार ढांचे को मजबूत करने की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है और आने वाले समय में इसके प्रभाव पर जनता और विशेषज्ञ दोनों की नजरें बनी रहेंगी।


