December 4, 2025

पीएमसीएच में हड़ताल से लोग परेशान, इमरजेंसी और ओपीडी सेवाएं बंद, दो हज़ार से अधिक मरीज लौटे

पटना। बिहार के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल, पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (पीएमसीएच) में जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल ने मरीजों और उनके परिजनों के लिए गंभीर संकट खड़ा कर दिया है। ओपीडी और इमरजेंसी सेवाएं दोनों बंद होने के कारण दूर-दराज़ से इलाज कराने पहुंचे हजारों मरीज मायूस होकर वापस लौटने को मजबूर हुए हैं। स्थिति इतनी बिगड़ गई कि 2 हजार से अधिक मरीज बिना इलाज लौट गए, जबकि लगभग 100 नए मरीजों का भर्ती होना भी संभव नहीं हो सका।
हड़ताल की वजह – डॉक्टरों और परिजनों के बीच मारपीट
हड़ताल की जड़ में बुधवार सुबह की वह घटना है जब 70 वर्षीय सुरेश सिंह की मौत के बाद मरीज के परिजनों और डॉक्टरों के बीच विवाद बढ़ते-बढ़ते मारपीट में बदल गया। सुरेश सिंह को ब्रेन हेमरेज की वजह से तीन दिन पहले भर्ती कराया गया था। उनकी हालत बिगड़ने के बाद सुबह उनकी मृत्यु हो गई। जब परिवार को मौत की जानकारी दी गई, तो परिजनों ने डॉक्टरों से दोबारा जांच की मांग की। इसी बात पर विवाद शुरू हुआ जिसने मारपीट का रूप ले लिया। परिजन अमन सिंह ने आरोप लगाया कि उनकी बहन द्वारा केवल इतना अनुरोध करने पर कि मृतक की बॉडी गरम है, डॉक्टरों ने अभद्र टिप्पणी की और उनकी बहन को मारा। दूसरी ओर जूनियर डॉक्टरों का दावा है कि परिजनों ने महिला डॉक्टरों सहित कई चिकित्सकों के साथ हाथापाई और दुर्व्यवहार किया। दोनों पक्षों ने मामले की शिकायत पीरबहोर थाना में दर्ज कराई है और पुलिस जांच में जुटी है।
जूनियर डॉक्टरों की तीन प्रमुख मांगें
जूनियर डॉक्टरों ने हड़ताल की घोषणा करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि जब तक उनकी तीन मुख्य मांगें पूरी नहीं होतीं, तब तक वे काम पर नहीं लौटेंगे। ये मांगें इस प्रकार हैं— पीएमसीएच के सभी विभागों में तत्काल सुरक्षा व्यवस्था लागू की जाए। डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों पर किसी भी प्रकार की हिंसा की स्थिति में स्वतः संस्थागत एफआईआर दर्ज हो। अस्पतालों में हिंसा रोकने और दोषियों पर कार्रवाई के लिए कड़े कानूनी प्रावधान लागू किए जाएं। डॉक्टर्स का कहना है कि सुरक्षा की मांग वे पहले भी उठा चुके हैं, लेकिन अस्पताल प्रशासन द्वारा अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है, जिससे ऐसी घटनाएं बार-बार सामने आ रही हैं।
मरीजों की परेशानियां बढ़ीं
अस्पताल में हड़ताल के कारण मरीजों की स्थिति बेहद गंभीर हो गई है। कई मरीज अपनी जांच रिपोर्ट दिखाने के लिए आए थे, लेकिन डॉक्टर उपलब्ध न होने के कारण उन्हें वापस जाना पड़ा। वैशाली के जमाल अख्तर तीन दिनों से हार्ट पेशेंट के इलाज के लिए भर्ती थे, लेकिन हड़ताल की वजह से उन्हें बीच में ही लौटना पड़ा। मोतिहारी की देवपतिया देवी पिछले चार दिनों से सीने में दर्द और सांस की समस्या के लिए भर्ती थीं, लेकिन रिपोर्ट दिखाने का मौका न मिलने से वे निराश होकर घर लौट गईं। सोनपुर निवासी मिथिलेश कुमार अपनी पत्नी के डायलिसिस के लिए आए थे, लेकिन अस्पताल में काम पूरी तरह बंद होने से उनकी पत्नी का जीवन जोखिम में पड़ गया। बक्सर से आए कई मरीजों ने बताया कि वे चार-पांच दिनों से अस्पताल में थे, लेकिन हड़ताल के कारण कोई इलाज नहीं हो रहा है और वे मजबूरन घर लौट रहे हैं।
पुलिस कार्रवाई और जांच
घटना की सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और पीड़ित अमन सिंह को डॉक्टरों के विवाद से बाहर निकाला। दोनों पक्षों की शिकायतों पर पुलिस ने केस दर्ज कर लिया है और जांच की जा रही है। थानेदार सज्जाद गद्दी ने बताया कि इमरजेंसी वार्ड में हुए विवाद की जांच कर आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।
अस्पताल में हिंसा कोई नई बात नहीं
पीएमसीएच में इस तरह की घटनाएं पहले भी होती रही हैं। हाल के वर्षों में मरीजों, परिजनों, सुरक्षा गार्डों और डॉक्टरों के बीच कई बार तनाव और हिंसा की घटनाएं सामने आई हैं। कुछ समय पहले जन सुराज नेता मनीष कश्यप पर भी जूनियर डॉक्टरों ने हमला कर उन्हें बंधक बना लिया था, जिसे बाद में माफीनामा लिखवाकर छोड़ा गया। पीएमसीएच में जारी हड़ताल ने राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था की कमजोरियों को फिर उजागर कर दिया है। डॉक्टरों की सुरक्षा और मरीजों की जरूरतों के बीच संतुलन बनाना प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है। जब तक अस्पताल प्रबंधन, सुरक्षा व्यवस्था और कानून व्यवस्था में सुधार नहीं होता, ऐसी घटनाओं के दोहराए जाने की आशंका बनी रहेगी। फिलहाल मरीजों की पीड़ा लगातार बढ़ रही है और स्वास्थ्य सेवाएं पूर्णत: ठप हैं।

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