बिहार कांग्रेस की प्रदेश कमेटी का जल्द होगा पुनर्गठन, 14 सालों के बाद नया बनेगा संगठन
पटना। बिहार में कांग्रेस पार्टी पिछले कई वर्षों से संगठनात्मक कमजोरी का सामना कर रही है। वर्ष 2025 के विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार ने इस कमजोरी को और अधिक स्पष्ट कर दिया। चुनाव परिणामों की समीक्षा के बाद यह समझा गया कि संगठनात्मक ढांचे की अनुपस्थिति ने न केवल चुनावी तैयारी को प्रभावित किया, बल्कि उम्मीदवारों को भी आवश्यक सहयोग नहीं मिल पाया। इसी पृष्ठभूमि में कांग्रेस हाईकमान ने बिहार प्रदेश कमेटी को जल्द पुनर्गठित करने का निर्णय लिया है। यह पुनर्गठन लगभग 14 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद होने जा रहा है, जिससे पार्टी के भीतर नई ऊर्जा का संचार होने की उम्मीद है।
नई दिल्ली में समीक्षा बैठक
विधानसभा चुनावों में हार के तुरंत बाद नई दिल्ली में कांग्रेस हाईकमान द्वारा एक विस्तृत समीक्षा बैठक बुलाई गई। इस बैठक में बिहार कांग्रेस के शीर्ष नेताओं, टिकट प्राप्त उम्मीदवारों और चुनावी रणनीतिकारों की उपस्थिति रही। समीक्षा के दौरान उम्मीदवारों ने खुलकर कहा कि उन्हें चुनाव के समय संगठनात्मक ढांचे और स्थानीय कार्यकर्ताओं का पर्याप्त सहयोग नहीं मिल पाया। इसके अलावा कई क्षेत्रों में बूथ स्तर तक पार्टी की सक्रियता बेहद सीमित रही। इन शिकायतों ने पार्टी नेतृत्व का ध्यान सीधे संगठन की कमजोरी की ओर खींचा।
नेतृत्व को सौंपे गए दायित्व
समीक्षा बैठक के बाद राष्ट्रीय नेतृत्व ने बिहार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम और बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु को संगठन के पुनर्गठन की ज़िम्मेदारी सौंप दी। उन्हें निर्देश दिया गया है कि प्रदेश से लेकर प्रखंड और पंचायत स्तर तक नई कमेटियों के गठन की तैयारी की जाए। यह निर्देश केवल औपचारिक कदम नहीं है, बल्कि कई वर्षों से ठप पड़े संगठनात्मक ढांचे को फिर से जीवित करने का प्रमुख प्रयास है।
14 वर्षों से लंबित पुनर्गठन
यह उल्लेखनीय है कि बिहार कांग्रेस में प्रदेश कमेटी का गठन पिछले लगभग 14 वर्षों से नहीं हुआ है। आखिरी बार वर्ष 2013 में अशोक चौधरी को बिहार कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था। उनके कार्यकाल के दौरान संगठन में विस्तार किया गया और प्रदेश कमेटी का समुचित गठन भी हुआ। लेकिन 2017 में जब उन्हें अध्यक्ष पद से हटा दिया गया और बाद में वे जेडीयू में शामिल हो गए, तब से अब तक किसी नई कमेटी का गठन नहीं हो सका। यह लंबा अंतराल न केवल संगठनात्मक ठहराव का उदाहरण है बल्कि यह भी दिखाता है कि पार्टी राज्य में कमजोर ढांचे के साथ काम कर रही थी।
आगामी घोषणा और तैयारियां
पार्टी सूत्रों के अनुसार नए साल 2026 में मकर संक्रांति के बाद नई प्रदेश कमेटी की घोषणा की जाएगी। हाईकमान ने यह भी कहा है कि इसके पहले उन नेताओं की सूची तैयार की जाए जो संगठनात्मक जिम्मेदारियों को निभाने के योग्य हों। यह सूची प्रदेश भर के सक्रिय और समर्पित कार्यकर्ताओं पर आधारित होगी, ताकि संगठन की जड़ें अधिक मज़बूत की जा सकें। इसके साथ ही युवा नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी जिम्मेदारी देने पर विचार किया जाएगा, जिससे संगठन में नई गति आ सके।
स्थानीय स्तर तक विस्तार की योजना
कांग्रेस का लक्ष्य केवल प्रदेश कमेटी गठन तक सीमित नहीं है, बल्कि संगठन को प्रखंड, पंचायत और बूथ स्तर तक मजबूत बनाना है। पार्टी नेतृत्व का मानना है कि जब तक निचले स्तर के कार्यकर्ता सक्रिय नहीं होंगे, तब तक चुनावी सफलता की संभावना कम ही रहेगी। इसीलिए आने वाले महीनों में जिलों और इलाकों का दौरा किया जाएगा, जहां स्थानीय नेताओं से बातचीत कर संगठनात्मक जरूरतों की पहचान की जाएगी।
राजनीतिक पृष्ठभूमि और भविष्य की दिशा
बिहार की राजनीति हमेशा से जटिल और परिवर्तनशील रही है। कांग्रेस पार्टी लंबे समय से राज्य में अपना खोया प्रभाव वापस पाने की कोशिश कर रही है। अशोक चौधरी के कार्यकाल के बाद पार्टी के कई वरिष्ठ नेता या तो निष्क्रिय हो गए या अन्य दलों में चले गए, जिससे पार्टी के कार्यकर्ताओं में निराशा फैल गई। लेकिन अब पुनर्गठन की प्रक्रिया से एक नई शुरुआत की संभावना पैदा हुई है। यदि संगठनात्मक ढांचा मजबूत होता है, तो न केवल कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ेगा बल्कि आने वाले वर्षों में चुनावी राजनीति में भी इसका सकारात्मक प्रभाव देखने को मिल सकता है। बिहार कांग्रेस का यह निर्णय संगठन को नए सिरे से जीवंत करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। लंबे समय से उपेक्षित प्रदेश कमेटी के पुनर्गठन से कार्यकर्ताओं में नई उम्मीद जगेगी। चुनावी हार ने पार्टी को यह सिखाया है कि मजबूत संगठन ही राजनीतिक सफलता की नींव होता है। यदि इस बार संगठनात्मक पुनर्गठन गंभीरता से लागू किया गया, तो बिहार में कांग्रेस के लिए यह बदलाव का अवसर साबित हो सकता है।


