November 12, 2025

चुनाव के रिजल्ट के बाद पटना में रखे जाएंगे राजद के विधायक, कर्नाटक शिफ्ट होगी कांग्रेस, विधायकों को बंगाल भेजेगी वीआईपी

पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की मतदान प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और अब राज्य की राजनीति 14 नवंबर को आने वाले नतीजों का इंतजार कर रही है। सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं, लेकिन इसके साथ ही नतीजों के बाद की संभावित राजनीतिक हलचल को लेकर तैयारियां भी शुरू हो गई हैं। सूत्रों के अनुसार, महागठबंधन (इंडिया ब्लॉक) ने चुनाव परिणाम आने से पहले ही “पोस्ट रिजल्ट प्लान” तैयार कर लिया है ताकि किसी भी प्रकार की राजनीतिक अस्थिरता या विधायकों की खरीद-फरोख्त (हॉर्स ट्रेडिंग) की स्थिति से निपटा जा सके।
नतीजों से पहले महागठबंधन की रणनीति
सूत्रों के अनुसार, इंडिया ब्लॉक के नेताओं ने अंदरखाने यह तय किया है कि नतीजों के बाद यदि सरकार बनाने की स्थिति बनती है और किसी तरह के दबाव या प्रलोभन का खतरा दिखता है, तो गठबंधन अपने विधायकों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट करेगा। आरजेडी, कांग्रेस और वीआईपी जैसे दलों ने इस दिशा में अपनी-अपनी योजनाएं बना ली हैं। बड़ी पार्टी आरजेडी ने फैसला किया है कि जीत के तुरंत बाद अपने सभी विधायकों को पटना बुलाया जाएगा और एक सुरक्षित स्थान पर रखा जाएगा। पार्टी का उद्देश्य है कि किसी भी तरह की तोड़फोड़ या संपर्क से विधायकों को बचाया जा सके। सूत्रों का कहना है कि तेजस्वी यादव खुद अपने विधायकों के संपर्क में रहेंगे और होटल या गेस्ट हाउस में उनके ठहरने की व्यवस्था की जाएगी।
कांग्रेस की योजना: विधायकों को भेजेगी कर्नाटक या तेलंगाना
कांग्रेस पार्टी, जो इंडिया गठबंधन की एक प्रमुख सहयोगी है, ने भी अपने विधायकों को लेकर विशेष रणनीति बनाई है। पार्टी ने अपने पर्यवेक्षकों को निर्देश दिया है कि वे अपने-अपने जिलों में जीतने वाले विधायकों को तुरंत अपनी निगरानी में लेकर पटना पहुंचाएं। इसके बाद पार्टी उन्हें कांग्रेस शासित राज्य कर्नाटक या तेलंगाना भेजने की योजना बना रही है। इस कदम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी तरह का “क्रॉस वोटिंग” या पार्टी तोड़ने की कोशिश न हो सके। सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस ने यह भी प्रस्ताव रखा है कि छोटे दलों जैसे आईपी गुप्ता के समूह के विधायकों की निगरानी की जिम्मेदारी भी वह उठा सकती है, ताकि महागठबंधन का एकजुट चेहरा बरकरार रहे।
वीआईपी पार्टी भेजेगी विधायक बंगाल
वहीं, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख मुकेश सहनी ने अपने विधायकों को लेकर अलग रणनीति बनाई है। उन्होंने अपने करीबी सूत्रों के माध्यम से बताया है कि चुनाव परिणाम घोषित होते ही वे अपने विधायकों को विशेष विमान से बंगाल भेज देंगे। मुकेश सहनी का यह फैसला इसलिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि पश्चिम बंगाल में इंडिया गठबंधन की सहयोगी ममता बनर्जी की सरकार है, जहां विधायकों की सुरक्षा सुनिश्चित रहेगी। बताया जा रहा है कि इस बारे में वीआईपी ने पहले से बंगाल सरकार से समन्वय स्थापित कर लिया है।
आरजेडी रखेगी सख्त निगरानी
राजद सूत्रों ने संकेत दिया है कि पार्टी नेतृत्व ने साफ निर्देश दिए हैं कि किसी भी विधायक को परिणाम के बाद “स्वतंत्र रूप से” कहीं आने-जाने की अनुमति नहीं होगी। पार्टी यह नहीं चाहती कि भाजपा या एनडीए खेमे के नेता संपर्क साधकर उसके विधायकों को प्रभावित करने की कोशिश करें। राजद सूत्रों के मुताबिक, “हमने पिछले अनुभवों से सीखा है। इस बार कोई लापरवाही नहीं होगी। हमारे विधायक पूरी तरह पार्टी की निगरानी में रहेंगे, जब तक सरकार के गठन की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती।”
चुनाव में रिकॉर्ड तोड़ मतदान
इस बार बिहार में चुनावी माहौल बेहद गर्म और उत्साहपूर्ण रहा। दूसरे और अंतिम चरण के मतदान में 67.14 प्रतिशत वोटिंग दर्ज की गई, जो अब तक का सबसे ऊंचा मतदान प्रतिशत है। पहले चरण में भी 65.09 प्रतिशत वोट पड़े थे। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अधिक मतदान प्रतिशत सत्ता विरोधी लहर का संकेत भी हो सकता है। वहीं, जन सुराज पार्टी के प्रमुख प्रशांत किशोर का कहना है कि यह मतदान आंकड़ा इस बात की गवाही है कि “बिहार के लोगों ने अब एक नया विकल्प ढूंढ लिया है।”
सत्ता संघर्ष के बीच संभावित परिदृश्य
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यदि किसी भी गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला, तो राज्य में “पोस्ट-पोल पॉलिटिक्स” यानी बाद की सियासी जोड़-तोड़ की स्थिति बन सकती है। ऐसे में सभी दल अपने विधायकों को सुरक्षित रखने की कवायद में जुट गए हैं। एनडीए खेमे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आत्मविश्वास से भरे नजर आ रहे हैं और मान रहे हैं कि जनता ने उनके “सुशासन” पर भरोसा जताया है। दूसरी ओर, तेजस्वी यादव का कहना है कि बिहार अब बदलाव के लिए तैयार है और वे पहली बार मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं।
हॉर्स ट्रेडिंग की आशंका
राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि यदि सीटों का अंतर बहुत कम रहा, तो सरकार बनाने के लिए कुछ विधायकों का रुख निर्णायक बन सकता है। इसी वजह से महागठबंधन ने पहले से ही एहतियाती कदम उठाए हैं। पिछले कुछ वर्षों में महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और गोवा जैसे राज्यों में सत्ता परिवर्तन की घटनाओं को देखते हुए बिहार में भी ऐसी संभावनाओं को खारिज नहीं किया जा सकता। इसलिए गठबंधन दलों की यह रणनीति केवल सुरक्षा नहीं, बल्कि सत्ता की मजबूती का हिस्सा है। 14 नवंबर को जब बिहार के चुनाव परिणाम सामने आएंगे, तो यह स्पष्ट होगा कि राज्य की सत्ता पर कौन काबिज होगा। लेकिन उससे पहले ही राजनीतिक दलों ने अपने-अपने विधायकों को “सुरक्षित” रखने की पूरी तैयारी कर ली है। आरजेडी पटना में अपने विधायकों को रोकने की योजना पर काम कर रही है, कांग्रेस उन्हें दक्षिण के राज्यों में शिफ्ट करेगी और वीआईपी बंगाल भेजने की तैयारी में है। बिहार की राजनीति में यह एहतियाती रणनीति दिखाती है कि यहां केवल चुनावी नतीजों की लड़ाई नहीं, बल्कि सत्ता की हर सीट के लिए सियासी चौसर बिछ चुकी है। अब सबकी निगाहें 14 नवंबर पर हैं, जब यह तय होगा कि नीतीश कुमार की सत्ता बरकरार रहती है या तेजस्वी यादव का सपना साकार होता है।

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