November 12, 2025

किसके माथे सजेगा मनेर विधानसभा का ताज, बढ़े वोट प्रतिशत से और रोचक हुआ समीकरण

बिहटा, (मोनु कुमार मिश्रा)। मनेर विधानसभा क्षेत्र का चुनाव इस बार अत्यंत रोचक और अप्रत्याशित हो गया है। यहां महागठबंधन के राजद प्रत्याशी और तीन बार के विधायक भाई वीरेंद्र और एनडीए समर्थित लोजपा (रामविलास) प्रत्याशी जितेंद्र यादव के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिल रहा है। क्षेत्र के जातीय और राजनीतिक समीकरणों में भारी बदलाव दिखाई दे रहे हैं, जिनके कारण इस बार की लड़ाई पहले से कहीं अधिक कड़ी और रोमांचक बन गई है।
मनेर की सियासत में बढ़ी टक्कर
मनेर विधानसभा सीट पर हमेशा से यादव, राजपूत और कुर्मी मतदाताओं की निर्णायक भूमिका रही है। इस बार भी यही तीन वर्ग चुनावी नतीजे तय करने में प्रमुख रहेंगे। राजद प्रत्याशी भाई वीरेंद्र तीन बार के विधायक हैं और क्षेत्र में उनका मजबूत जनाधार है, लेकिन इस बार उनकी राह उतनी आसान नहीं है जितनी पिछली बार थी। एनडीए की ओर से लोजपा (रामविलास) प्रत्याशी जितेंद्र यादव मैदान में हैं, जिन्हें एनडीए का समर्थन मिला है। जितेंद्र यादव ने अपने प्रचार अभियान में विकास और सुशासन का मुद्दा प्रमुख रखा है। उनका दावा है कि वे “मनेर को अपराध और पिछड़ेपन से मुक्त कर आधुनिक विकास की दिशा में ले जाएंगे।”
यादव वोट बैंक में सेंधमारी
राजद का पारंपरिक वोट बैंक माने जाने वाला यादव समुदाय इस बार बिखरता हुआ नजर आ रहा है। लोजपा प्रत्याशी जितेंद्र यादव को यादव समाज के एक हिस्से का समर्थन मिल रहा है। इसमें प्रोफेसर श्रीकांत निराला की सक्रिय भूमिका बताई जा रही है। प्रो. श्रीकांत निराला, जो पिछले चुनाव में भाजपा से बागी होकर मैदान में थे, इस बार लोजपा प्रत्याशी के समर्थन में पूरी ताकत झोंकते नजर आ रहे हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि निराला का प्रभाव यादव समुदाय के भीतर मजबूत है, जिससे राजद प्रत्याशी को नुकसान हो सकता है। वहीं तेजप्रताप यादव की पार्टी से जुड़े शंकर यादव भी इस बार मैदान में सक्रिय हैं। उन्होंने भी यादव मतदाताओं पर असर डाला है। इन दोनों नेताओं की वजह से यादव वोटों में विभाजन की स्थिति बन गई है, जो एनडीए प्रत्याशी के पक्ष में जा सकती है।
निर्दलीय और जनसूराज प्रत्याशी का असर
मनेर की लड़ाई में केवल दो प्रमुख प्रत्याशी ही नहीं, बल्कि कुछ अन्य उम्मीदवार भी समीकरणों को प्रभावित कर रहे हैं। निर्दलीय प्रत्याशी डी. केश कुमार, जो फिलहाल जेल में हैं, उन्हें कुर्मी मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग समर्थन दे रहा है। उनके समर्थक मानते हैं कि डी. केश कुमार “कुर्मी समाज की आवाज़” हैं और वे मनेर के स्थानीय मुद्दों पर गंभीरता से काम करने वाले उम्मीदवार हैं। वहीं जनसूराज पार्टी के उम्मीदवार संदीप कुमार सिंह उर्फ गोपाल सिंह को राजपूत वर्ग का समर्थन मिल रहा है। संदीप सिंह अपने क्षेत्रीय जुड़ाव और सामाजिक कामों की वजह से युवाओं के बीच लोकप्रियता हासिल कर चुके हैं। उन्होंने अपने प्रचार में स्थानीय विकास, शिक्षा और रोजगार को मुख्य मुद्दा बनाया है।
बढ़े मतदान प्रतिशत ने बनाए समीकरण दिलचस्प
इस बार मनेर विधानसभा क्षेत्र में मतदान प्रतिशत पिछले चुनावों की तुलना में काफी अधिक दर्ज किया गया है। मतदान में महिलाओं की भागीदारी विशेष रूप से उल्लेखनीय रही। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अधिक मतदान से सत्ता विरोधी लहर का संकेत मिलता है, जिससे एनडीए को फायदा हो सकता है। हालांकि राजद खेमे का दावा है कि अधिक मतदान का लाभ महागठबंधन को मिलेगा क्योंकि जनता नीतीश सरकार से नाराज है और बदलाव चाहती है।
पिछला चुनाव और इस बार की स्थिति
2020 के विधानसभा चुनाव में मनेर सीट पर राजद उम्मीदवार भाई वीरेंद्र ने शानदार जीत दर्ज की थी। उन्हें 94,223 वोट मिले थे, जो कुल मतों का 47.7 प्रतिशत था। वहीं भाजपा उम्मीदवार निखिल आनंद को 61,306 वोट (31.04 प्रतिशत) प्राप्त हुए। इस बार मुकाबला और भी कड़ा है क्योंकि एनडीए ने इस सीट पर लोजपा (रामविलास) को उतारा है, जिससे जातीय समीकरणों में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। लोजपा प्रत्याशी यादव वर्ग में अपनी पकड़ मजबूत करने में जुटे हैं, जबकि राजद अपने पारंपरिक वोट बैंक को बचाने की कोशिश में है।
मतदाताओं की प्राथमिकता
ग्रामीण इलाकों में मतदाता विकास, सड़क और रोजगार के मुद्दों पर खुलकर बात कर रहे हैं। वहीं शहरी क्षेत्र के मतदाता सफाई, जलजमाव और बिजली जैसी समस्याओं से परेशान हैं। कई मतदाताओं ने कहा कि इस बार वोट जाति नहीं, काम के आधार पर दिया गया है। महिलाओं का कहना है कि वे उस प्रत्याशी को वोट देंगी जो शिक्षा और सुरक्षा के मुद्दों को प्राथमिकता देगा। युवाओं का रुझान इस बार बेरोजगारी और पलायन जैसे मुद्दों की ओर है।
राजनीतिक विश्लेषकों की राय
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मनेर का मुकाबला बेहद करीबी रहने वाला है। यादव वोटों के बिखराव से राजद प्रत्याशी को नुकसान हो सकता है, वहीं एनडीए प्रत्याशी जितेंद्र यादव को अतिरिक्त लाभ मिल सकता है। इसके बावजूद भाई वीरेंद्र के वर्षों पुराने जनसंपर्क और स्थानीय पकड़ को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। वे लगातार जनता के बीच सक्रिय रहे हैं और उनकी साख अब भी मजबूत है। मनेर विधानसभा का चुनाव इस बार जातीय और राजनीतिक समीकरणों के बीच फंसा हुआ है। एक ओर राजद के मजबूत उम्मीदवार भाई वीरेंद्र हैं, तो दूसरी ओर एनडीए समर्थित लोजपा प्रत्याशी जितेंद्र यादव पूरी ताकत से मैदान में डटे हैं। अधिक मतदान ने मुकाबले को और दिलचस्प बना दिया है। अब 14 नवंबर को यह तय होगा कि मनेर की गद्दी पर इस बार किसका ताज सजेगा — अनुभवी भाई वीरेंद्र का या नए उत्साह से भरे भाई जितेंद्र का। जनता का फैसला अब मतपेटियों में बंद है और सबकी निगाहें 14 नवंबर की गिनती पर टिकी हैं।

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