November 18, 2025

रोहिणी आचार्य का एनडीए पर हमला, कहा- कैबिनेट बीजेपी के कब्जे में, नीतीश अब केवल मुखोटे बने

पटना। बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में कैबिनेट विस्तार के बाद सियासी घमासान तेज हो गया है। बुधवार को सात नए मंत्रियों ने शपथ ली, लेकिन सभी मंत्री भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के कोटे से चुने गए। इस घटनाक्रम को लेकर विपक्ष ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधा है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की वरिष्ठ नेता और लालू प्रसाद यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने इस मुद्दे पर नीतीश कुमार को घेरते हुए उन्हें “महज मुखौटा” करार दिया और कहा कि अब बिहार सरकार पूरी तरह से बीजेपी के नियंत्रण में आ चुकी है। रोहिणी आचार्य ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर एक तीखा बयान जारी किया। उन्होंने लिखा,  नीतीश कुमार जी की कैबिनेट (सरकार) पर विखंडनकारी भाजपा का कब्ज़ा..कैबिनेट विस्तार में अपनी पार्टी के एक भी मंत्री को शपथ नहीं दिला सके नीतीश कुमार.. भाजपा का फरमान मानने को लाचार – बेबस – निरीह, महज मुखौटा नीतीश कुमार.. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी फिर भी कैबिनेट विस्तार पर मुहर लगा रहे हैं। उनका कहना है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब अपनी सरकार पर कोई नियंत्रण नहीं रखते, बल्कि उनकी कैबिनेट पूरी तरह से बीजेपी के इशारों पर चल रही है। उन्होंने नीतीश कुमार को “बेबस और लाचार” बताते हुए कहा कि वह बीजेपी के निर्देशों को मानने के अलावा कुछ नहीं कर सकते। बुधवार को हुए कैबिनेट विस्तार में केवल बीजेपी कोटे के सात मंत्रियों को शामिल किया गया। खास बात यह रही कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के किसी भी विधायक को मंत्री पद नहीं दिया गया। इससे यह साफ संकेत मिला कि कैबिनेट विस्तार में बीजेपी का पूरा वर्चस्व रहा। राजद और अन्य विपक्षी दलों का मानना है कि यह बीजेपी की एक रणनीति है, जिससे वह धीरे-धीरे जेडीयू के राजनीतिक प्रभाव को खत्म कर अपनी पकड़ मजबूत कर सके। इस नए राजनीतिक घटनाक्रम के बाद यह सवाल उठने लगे हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की वर्तमान स्थिति क्या है? क्या वह सच में बिहार सरकार के प्रमुख फैसले ले रहे हैं, या फिर बीजेपी का दबाव उन पर इतना बढ़ चुका है कि उन्हें सिर्फ औपचारिक तौर पर मुख्यमंत्री पद पर बनाए रखा गया है? नीतीश कुमार के पिछले राजनीतिक इतिहास को देखते हुए, यह पहली बार नहीं है जब उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठ रहे हैं। उन्होंने बीते वर्षों में कई बार अपने गठबंधन बदले हैं। 2022 में उन्होंने महागठबंधन (राजद और कांग्रेस) के साथ मिलकर सरकार बनाई थी, लेकिन जनवरी 2024 में अचानक बीजेपी के साथ वापसी कर ली। इस फैसले को लेकर भी उनकी राजनीतिक स्थिरता और विश्वसनीयता पर सवाल उठे थे। बिहार की राजनीति में बीजेपी धीरे-धीरे अपनी पकड़ मजबूत कर रही है। कैबिनेट विस्तार इसका एक बड़ा संकेत माना जा रहा है। राजद और अन्य विपक्षी दलों का मानना है कि नीतीश कुमार की राजनीतिक ताकत अब कमजोर हो चुकी है, और वह बीजेपी के नेतृत्व को मानने के लिए मजबूर हैं। राजद, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल अब इस मुद्दे को 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव के लिए एक बड़ा राजनीतिक हथियार बनाने की तैयारी में हैं। रोहिणी आचार्य के इस बयान से साफ है कि विपक्ष इस मुद्दे को जनता के सामने बड़े पैमाने पर उठाएगा।  राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव पहले ही यह आरोप लगाते रहे हैं कि नीतीश कुमार अब बिहार की राजनीति में कमजोर हो चुके हैं और बीजेपी की कठपुतली बन गए हैं। आगामी लोकसभा चुनाव और बिहार विधानसभा चुनाव में यह मुद्दा कितना प्रभावी साबित होगा, यह आने वाले समय में देखने वाली बात होगी। नीतीश कैबिनेट के हालिया विस्तार ने बिहार की राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। विपक्ष, खासकर राजद, इसे नीतीश कुमार की राजनीतिक मजबूरी और बीजेपी की बढ़ती पकड़ के रूप में देख रहा है। रोहिणी आचार्य का बयान इस बात को और मजबूती देता है कि अब बिहार की राजनीति में सियासी समीकरण तेज़ी से बदल रहे हैं। अगले कुछ महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि नीतीश कुमार अपनी पार्टी की स्थिति को कैसे संभालते हैं और क्या बीजेपी के खिलाफ वह कोई कड़ा कदम उठाते हैं या नही।

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