सोशल मीडिया से नीतीश को लालू की नसीहत, कहा- बिहार के लिए मांगने से कुछ नहीं मिलेगा, अपना हक छीनना पड़ेगा
पटना। बिहार में मौजूदा समय में बिहार के सियासी गलियारे में काफी खींचतान देखने को मिल रहा है। विशेष राज्य के मुद्दे को लेकर विपक्ष जहां एक तरफ सरकार पर हमलावर है वहीं नीतीश के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार भी अपने विपक्षियों को जमकर जवाब दे रही है। इसी कड़ी में बुधवार को राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने अपने सोशल मीडिया हैंडल से बिहार के विशेष राज्य के दर्जे को लेकर बड़ी बातें लिखी। अपने सोशल मीडिया हैंडल पर किए गए लंबे चौड़े पोस्ट में उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को यह नसीहत दी कि अब केंद्र के सरकार गठन में बिहार की महत्वपूर्ण भूमिका है और अब बिहार के लिए मांगने से कुछ नहीं मिलेगा बल्कि उन लोगों से अपना हम लोगों को मिलकर जबरन लेना पड़ेगा। लालू प्रसाद यादव का यह बयान बिहार की राजनीति में खासा मायने रखता है। उन्होंने स्पष्ट रूप से इशारा किया कि बिहार के विकास और राज्य के हितों की रक्षा के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। लालू यादव ने नीतीश कुमार को यह संदेश दिया कि केंद्र से राज्य के लिए संसाधन या अधिकार मांगने से कुछ हासिल नहीं होगा। इसके बजाय, बिहार को उसके अधिकार और हिस्से के लिए जोरदार तरीके से लड़ाई लड़नी होगी।
दिल्ली के सामने गिड़गिड़ाने से कभी कुछ नहीं मिलता
लालू यादव ने अपने रेलमंत्री कार्यकाल के दौरान छपरा के दरियापुर में बने बेला रेल पहिया कारखाना का हवाला देते हुए नीतीश कुमार से पूछा है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार के 10 वर्षों में बिहार को घोषणाओं के अलावा क्या मिला है। लालू ने कहा है कि 2014 से 2024 तक 31, 39 और 30 सांसद लेकर भी दिल्ली के सामने गिड़गिड़ाने से इनको कुछ नहीं मिलता है। लालू ने सोशल साइट एक्स पर ट्वीट में कहा नीतीश बताएं, एनडीए के 10 वर्षों में बिहार को कोरी घोषणाओं के अलावा क्या मिला? हमने तो 22 सांसदों के दम पर 2004 से 2009 के बीच 5 वर्ष में ही बिहार को 1 लाख 44 हज़ार करोड़ की सहायता राशि दिलाई। लेकिन ये तो 2014 में 31, 2019 में 39 और 2024 में 30 सांसद लेकर भी दिल्ली के सामने हाथ जोड़, गिड़गिड़ा कर झोली फैलाते हैं, लेकिन तब भी इन्हें कुछ नहीं मिलता। राजधानी में हक मांगना नहीं छीनना पड़ता है।
नीतीश को राज्य के हितों की रक्षा के लिए दृढ़ता से कदम उठाने होंगे
लालू यादव का यह बयान ऐसे समय में आया है जब बिहार में कई मुद्दों पर राज्य और केंद्र सरकार के बीच तनाव चल रहा है। बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग लंबे समय से उठाई जा रही है, लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली है। लालू यादव के इस बयान के माध्यम से यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि नीतीश कुमार को राज्य के हितों की रक्षा के लिए और अधिक दृढ़ता से कदम उठाने होंगे।
यूपीए-1 के समय 2004 से 2009 के बीच हमने विशेष आर्थिक सहायता आवंटित करवाया
लालू यादव ने एक लंबे पोस्ट में लिखा है- यूपीए-1 में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी होने के बल पर हमने 2004 से 2009 के बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी के सहयोग से विकास कार्यों के लिए बिहार को 1 लाख 44 करोड़ की विशेष आर्थिक सहायता राशि आवंटित ही नहीं बल्कि दिलाई थी। यूपीए-1 में केंद्र से मिले सहयोग के कारण बिहार में ग्रामीण सड़कें, पुल-पुलिया, बिजली, रेलवे लाइनें, मनरेगा के तहत रोजगार, रेलवे स्टेशन, तथा सारण और मधेपुरा में रेल कारखानों का जाल बिछा दिया था। हमारे द्वारा यूपीए काल में दिए गए सहयोग राशि से नीतीश कुमार ने अपना चेहरा खूब चमकाया। चूंकि हम प्रचार नहीं बल्कि जमीनी काम करते थे। आरजेडी सुप्रीमो ने बेला रेल पहिया कारखाना की उपलब्धियों का जिक्र करते हुए कहा है कि अब तक यहां रिकॉर्ड 2 लाख से अधिक पहियों का उत्पादन हो चुका है। उन्होंने कहा कि अब मेड इन बिहार रेल पहिये देश के विकास में अहम योगदान दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह भारतीय रेलवे के इतिहास में पहली बार था कि बिना किसी विदेशी सहयोग के एक अत्यधिक परिष्कृत कारखाना देश में स्थापित हुआ था। यह रेलवे की इन-हाउस क्षमता और विशेषज्ञता के कारण संभव हुआ। लालू यादव के इस बयान के पीछे उनका राजनीतिक दृष्टिकोण भी झलकता है। वे चाहते हैं कि बिहार की जनता यह समझे कि उनके राज्य के अधिकारों के लिए जोरदार संघर्ष जरूरी है। लालू यादव का यह भी मानना है कि बिहार की समस्याओं का समाधान केवल संघर्ष और दबाव बनाने से ही हो सकता है।
लालू के पोस्ट ने बिहार में नई सियासी संभावनाओं को दिया जन्म
नीतीश कुमार और लालू यादव का राजनीतिक सफर कई उतार-चढ़ाव से भरा हुआ है। दोनों नेताओं के बीच एक समय गहरी दोस्ती थी, लेकिन राजनीति के बदलते समीकरणों के कारण उनके रिश्तों में खटास आई। हालांकि, हाल के वर्षों में दोनों नेताओं के बीच दूरियां कम हुई हैं, और वे फिर से एक राजनीतिक गठबंधन का हिस्सा बने हैं। इस पृष्ठभूमि में लालू यादव का यह बयान, उनके बीच संबंधों को और मजबूत करने के प्रयास के रूप में भी देखा जा सकता है। लालू यादव के इस संदेश को बिहार की जनता ने भी गंभीरता से लिया है। उनके बयान से यह संकेत मिलता है कि वे बिहार के विकास के लिए चिंतित हैं और चाहते हैं कि राज्य अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करे। लालू यादव की इस नसीहत को नीतीश कुमार किस रूप में लेते हैं, यह देखने वाली बात होगी। इस बयान ने बिहार की राजनीति में नई चर्चा को जन्म दे दिया है। अब यह नीतीश कुमार पर निर्भर करता है कि वे इस सलाह को किस प्रकार से स्वीकार करते हैं और बिहार के हक के लिए किस प्रकार की रणनीति अपनाते हैं। राज्य के विकास और जनता के अधिकारों की रक्षा के लिए आगे आने वाले समय में नीतीश कुमार और उनकी सरकार पर गहरी नजर रहेगी।


